Bihar Board Class 12 Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) Long Question Answer 2024 ( 15 Marks ) | PART – 3

दोस्तों आज के इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 12 मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया गया है। दोस्तों यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा में ( 15 Marks ) के पूछे जाते हैं। तथा जितने भी क्वेश्चन दिए गए हैं कक्षा 12वीं मनोविज्ञान लंबे प्रश्न उत्तर पीडीएफ डाउनलोड सभी पिछले साल पूछे जा चुके हैं ,तो दोस्तों यह सभी प्रश्न उत्तर आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए शुरू से अंत तक दिए गए प्रश्न उत्तर को जरूर पढ़ें।


Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3

Q24. मनोवृत्ति का निर्माण किस तरह से होता है?

उत्तर ⇔ मनोवृति संज्ञानात्मक, भावनात्मक तथा व्यवहारपरक तत्वों का एक संगठन होता है, जिसके निर्माण में निम्नलिखित कारकों की भूमिका होती है

(i) परिवार एवं स्कूली वातावरण (IFamily and school cnvironment)
(ii) व्यक्तिगत अनुभूतियाँ (Personal experienccs)
(iii) संदर्भ समूह (Rctrence group)
(iv) संचार माध्यम (Channel of communcation)
(v) रूढियुक्तियाँ (Sterotype)


Q25. मन स्नायुविकृति तथा मनोविकृति में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर ⇔ (i) मन:स्नायु विकृति एक साधारण मानसिक रोग है। इसमें रोगी के व्यवहार में कोई खास अंतर नहीं होता। परंतु मनोविकृति एक जटिल तथा असाध्य मानसिक रोग है। इसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व विच्छिन्न हो जाता है।
(ii) मन:स्नायु विकृति के रोगी में भाषा तथा चिन्तन दोषपूर्ण नहीं होता। परंतु मनोविकृति के रोगी में भाषा तथा चिंतन की प्रक्रिया असंगत, अतार्किक तथा निरर्थक होते हैं।
(iii) मनःस्नायु विकृति के रोगी में आत्मनियंत्रण एवं आत्मसंयम पाया जाता है। परंतु मनोविकृति के रोगी का संबंध वास्तविकता से नहीं रहता।
(iv) मनःस्नायु विकृति के रोगियों का संबंध वास्तविकता से बना रहता है। परंतु मनोविकृति के रोगियों को समाज की चिन्ता नहीं रहती।
(v) मनःस्नायु विकृति के लक्षण अस्थायी होते हैं। परंतु मनोविकृति के लक्षण स्थायी होते हैं।
(vi) मनःस्नायु विकृति के रोगियों की चिकित्सा सम्मोहन, संकेत, मनोविश्लेषण आदि प्रविधियों से सरलतापूर्वक किया जा सकता है। परंतु Psychosis के रोगियों की चिकित्सा में उपरोक्त पद्धतियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(vii) मन:स्नायु विकृति के रोगी को अपने हालत का ज्ञान रहता है। परंतु मनोविकृति – के रोगी को अपने हालत का ज्ञान नहीं रहता। . इस प्रकार स्पष्ट है कि मन:स्नायु विकृति और मनोविकृति में बहुत अंतर है। यह अंतर मात्रा
का होता है। इसके स्वरूप, लक्षण, निदान एवं उपचार आदि में भेद है।


Q26. दुश्चिता विकार के अर्थ एवं प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ चिन्ता विकृति का तात्पर्य बाधात्मक, संवेगात्मक तथा क्रियात्मक प्रक्रियाओं को साधारण असामान्यताएँ हैं और जिसके मौलिक लक्ष्यों का संबंध चिन्ता से होती है। इसके निम्नलिखित प्रमुख प्रकार है

(i) दुर्भीति–एक भय है जो अविवेकी होता है और उसका संबंध ऐसी वस्तु या परिस्थिति .से होता है जो वस्तुतः हानिप्रद या खतरनाक नहीं होती है। इसीलिए इसे असामान्य भय कहते हैं।

• लक्षण से डरना, अकेले घर से बाहर जाने में डर आदि।

(ii)आंतरिक विकृति (Panic) इस विकति का अर्थ है एक प्रकार का चिन्ता विकृति । जिस कारण व्यक्ति आंतरिक आत्मय का अनुभव करता है। तीव्र तथा स्वतः प्रवर्तित चिन्ता, अव्यक्तित्व का अभाव।

(iii) मनोवृत्ति बाध्यता विकृति-मनोग्रसित एक मानसिक क्रिया या विचार है जो रोगी के इच्छा के विरुद्ध होता है तथा रोगी का इस पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। लक्षण . अनावश्यक विचारों की पुनरावृत्ति, संदेह, अतार्किक कार्यों की पुनरावृत्ति।
(iv) सामान्यीकृत चिन्ता विकृति–इस विकृति में व्यक्ति उत्तेजना परिस्थिति के बिना प्रभावित हुए ही चिन्ता से ग्रसित रहता है। लक्षण—व्यक्ति उत्तेजित तथा बेचैन रहता है तथा विश्राम करने में सक्षम नहीं होता है, रोगी में कई शारीरिक लक्षण विकसित होते हैं जैसे पसीना आना, हृदय गति बढ़ना, श्वास गति में तेजी इत्यादि। ) उत्तरआघातीय प्रतिबल विकृति-यह चिन्ता विकति का एक प्रकार है जिसके कारण व्यक्ति पूर्व घटित विशिष्ट प्राकृतिक या मानव घटना से संबद्ध संवेगात्मक तथा मनोवैज्ञानिक समस्याओं से उसका समायोजन बिगड़ जाता है। लक्षण—विषाद, गंभीर तनाव, सांवेगिक शुन्यता आदि।


Q27. मनोदशा विकृति के प्रकारों एवं लक्षणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ मनोदशा विकार (mood disorder) से तात्पर्य एक ऐसी मानसिक विकृति (mental disorder) से है जिसमें व्यक्ति के भाव (feeling), संवेग (emotion) एवं संबंधित मानसिक दशाओं मे इतना उतार-चढ़ाव होता है कि वह अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में समायोजन (adujstment), का सामान्य स्तर बनाकर नहीं रख पाता है और उसकी सामाजिक एवं पेशेवर जिंदगी में तरह-तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।

मनोदशा विकृति के मुख्य तीन प्रकार हैं –

(i) उन्माद विकार-उन्माद विकार एक बहुत ही कम होने वाला मनोदशा या भाव दशा विकार है। परंतु फिर भी जिन व्यक्तियों में यह विकार हो जाता है, वे अत्यधिक उत्तेजित  रहते हैं, वे बातें अधिक करते हैं।

(ii) विषाद विकार-इस विकृति में व्यक्ति में उदासी एवं विषाद् (depression) होता है। इसके अतिरिक्त इसमें भूख, नींद एवं शारीरिक वजन में कमी होते पाई जाती है।

(iii) द्विध्रुवीय विकार-द्विध्रुवीय विकार से तात्पर्य वैसी विकृति से होती है जिसमें व्यक्ति या रोगी में बारी-बारी से विषाद (depression) तथा उन्माद (mania) दोनों ही तरह । की अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं। यही कारण है कि
इसे उन्मादी-विषादी विकार भी कहा जाता है।


Q28. प्रतिबल के स्रोतों का वर्णन करें। [2019A] अथवा, प्रतिबल के मुख्य कारणों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇔ व्यक्ति में विभिन्न तरह की घटनाओं एवं परिस्थितियों से प्रतिबल उत्पन्न होती ‘प्रातबल का स्रोत कहा जाता है। प्रतिबल के प्रमुख स्रोते निम्नांकित हैं

(i) तनावपूर्ण घटनाएँ व्यक्ति की जिन्दगी में तरह-तरह की घटनाएँ घटती रहती है। व्यक्ति इन घटनाओं के प्रति ठीक ढंग से समायोजन नहीं कर पाता है तो वे तनाव उत्पन्न कर है। जीवन की ऐसी घटनाओं में प्रियजनों की मृत्यु, अप्रत्याशित दुर्घटना, परिवार के सदस्य में गंभीर बीमारी, तलाक, नौकरी का छूटना, पदावनति, घर के सदस्य का गुम हो जाना आदि प्रमुख

(ii) दैनिक उलझने दिन-प्रतिदिन की छोटी-छोटी उलझनों से भी प्रतिबल उत्पन्न होला है। ऐसे उलझनों तथा घटनाओं में अवाज, शोरगुल, अपराध, पास-पड़ोस में होने वाले झगडा सामान को खरीदना, समयाभाव से उत्पन्न उलझन, आर्थिक
उत्तरदायित्व का उलझन, कार्य । असंतुष्टि, भविष्य में नौकरी से हटाए जाने की संभावना आदि प्रमुख है।

(iii) अभिघातज अनुभूतियाँ व्यक्ति की जिन्दगी में कुछ अभिघातज अनुभूतियाँ होती है, जिनसे भी प्रतिबल उत्पन्न होता है। जैसे-अचानक मकान में आग लग जाना, सड़क दुर्घटना, भूकंप आना, सुनामी, बलात्कार का शिकार होना, आदि। इस तरह की परिस्थिति या घटना समाप्त होने के बहुत बाद भी इसके मात्र याद से ही व्यक्ति में प्रतिबल उत्पन्न होने लगता है।

(iv) अभिप्रेरकों का द्वन्द्व जब दो या दो से अधिक अभिप्रेरक एक ही समय में अपने-अपने लक्ष्य की ओर व्यक्ति को खींचने लगते हैं, तो इससे व्यक्ति में द्वन्द्व उत्पन्न होता है. जिसके चलते व्यक्ति प्रतिबल का शिकार हो जाता है। जैसे यदि कोई छात्र न तो गणित पढ़ना चाहता है और न ही भौतिकी परंतु माता-पिता के दबाव के कारण उसे किसी एक को पढ़ना पड़ता है। इस द्वन्द्वात्मक परिस्थिति से प्रतिबल उत्पन्न होगा। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति में प्रतिबल के
उत्पन्न करने के कई स्रोत है।


Q29. सामान्य अनुकूलन संलक्षण क्या है? इसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ जब व्यक्ति दबाव में होता है, तो उसके शरीर पर जो प्रभाव पड़ते हैं, उसका एक विशेष पैटर्न होता है, जिसे सामान्य अनुकूलन संलक्षण कहा जाता है। इस संलक्षण का प्रतिपादन हंस सेल्ये (Hans Selye, 1974) द्वारा किया
गया। इस संलक्षण के माध्यम से सेली दबाव के दौरान शरीर द्वारा किए जानेवाले प्रतिक्रियाओं के एक पैटर्न को बतलाने की कोशिश किया है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं

(A) सचेत प्रतिक्रिया की अवस्था(Phase of alarm reactions)—जब व्यक्ति के सामने कोई दबाव कारक आता है, तो उसका अनुकम्पी तंत्रिकातंत्र उत्तेजित होकर एड्रीनल-पीयूस कॉर्टेक्स तंत्र को उत्तेजित कर देता है जिसके फलस्वरूप रक्त में कुछ विशेष हॉरमोन्स की अधिकता हो जाती है और हृदय गति, रक्तचाप तथा रक्त में चीनी का स्तर बढ़ जाता है। इससे शरीर उस विशेष परिस्थिति से निबटने के लिए तैयार हो जाता है।

(B) प्रतिरोध की अवस्था (Phase of resistance)-जब व्यक्ति के सामने दबावकारक स्थिति अभी भी मौजूद होता है, तो दूसरी अवस्था आरंभ होती है जिसे प्रतिरोध की अवस्था कहा जाता है। इससे व्यक्ति का शरी अनुकम्पी तंत्रिका तंत्र की क्रियाओं के साथ समायोजन करत हुए प्रतिबल हारमोन्स का स्राव जारी रखता है ताकि दबावकारक के प्रभाव को शरीर कुछ रोक सके।

(C) परिश्रांति की अवस्था (Phase of exhausion)-जब व्यक्ति का सामना उसी दबाव कारक से या कोई अन्य नया दबाव कारक के साथ अभी भी बना रहता है, तो व्यक्ति के पास इससानबटन क लिए जा ससाधन होते हैं, वे समाप्त हो जाते हैं। फलतः व्यक्ति का प्रतिरोध स्तर तेजी से नीचे गिरने लगता है तथा उसमें दबाव संबद्ध बीमारियाँ उत्पन्न होने की संभावना तीव्र हो जाती है। निष्कर्ष स्वरूप हम कह सकते हैं कि तनाव का प्रभाव व्यक्ति में न केवल मनोवैज्ञानिक बल्कि शारीरिक दोनों प्रकार की प्रतिक्रियाएँ पैदा करता है।


Q30. असामान्य व्यवहार के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ असामान्य व्यवहार के निम्नलिखित कारण है

(A) जैविकीय कारण (Biological Causes)– असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में जैविक कारको का अह भूमिका होती है। ऐसे कारक जन्म या उससे पहले से ही व्यक्ति में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मौजूद रहते हैं और असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति करते हैं। ऐसे कारकों में गुणसूत्रीय असामान्यता, दोषपूर्ण जीन्स, अंतस्रावी असंतुलन, जैवरसायन- असंतुलन आदि मुख्य है।
(B) मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological Causes) असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति का कारण मनोवैज्ञानिक भी होता है। बहुत सारे मनोवैज्ञानिक एवं अंतरवैयक्तिक कारक हैं जो असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन कारकों में आरंभिक वंचन, अपर्याप्त जनकता तथा रोगात्मक पारिवारिक संरचना आदि प्रधान हैं। असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति की व्याख्या करने के लिए मनोवैज्ञानिकों द्वारा कुछ विशेष मॉडल का भी वर्णन किया गया है। इन मॉडलों में मनोगतिकी मॉडल, व्यवहारवादी मॉडल, संज्ञानात्मक मॉडल तथा मानवतावादी-अस्तित्वपरक मॉडल प्रमुख है।
(C) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण असामान्य व्यवहार की उत्पत्ति में सामाजिक सांस्कृतिक कारकों का भी अहं भूमिका होती है। इन कारकों में निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर, आर्थिक कठिनाइयाँ एवं बेरोजगारी, घटिया सामाजिक संबंध की समस्याएँ आदि प्रमुख है। विभिन्न अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि घटिया सामाजिक संबंध से विषाद, वैवाहिक समस्याओं से मद्यपानता तथा मनोविदालिता, निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर से दुश्चिंता विकृति आदि होने की संभावना अधिक होती है। उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि असामान्यताओं के अनेक कारण है।


Q31. सामान्य और असामान्य व्यवहारों में अंतर स्पष्ट करें।

उत्तर ⇔ सामान्य तथा असामान्य व्यवहारों में गुण तथा प्रकार दोनों का अंतर होता है। सामान्य तथा असामान्य व्यवहारों में निम्नलिखित अंतर हैं।

(i) सामान्य व्यक्ति परिस्थिति के अनुरूप व्यवहार करता है। जैसे दुख में रोना तथा सुख में हँसना। इसके विपरीत असामान्य व्यक्ति दुख में हँसता है और सुखद परिस्थिति में रोता है।
(ii) सामान्य व्यक्ति के व्यवहार में उसका अपना हित छिपा रहता है। लेकिन असामान्य व्यक्ति की जीवन-शैली असंतुलित होती है।
(iii) सामान्य व्यक्ति समाज की उन्नति तथा हित के लिए निरंतर प्रत्यनशील रहता है परंतु असामान्य व्यक्ति में इस गुण का अभाव रहता है।
(iv) सामान्य व्यक्ति का व्यवहार लक्ष्य निर्देशित होता है और लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह प्रयत्न करता है। लेकिन असामान्य व्यक्ति में इस गुण का अभाव रहता है।
(v) सामान्य व्याक्रा का व्यवहार अपने आसपास के लोगों के साथहोता है। कभी वह अपने व्यवहार से दूसरे को प्रभावित कर परिस्थिति को अनुकूल बना लेता है और कभी दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होकरपरिस्थिति अनुकूल खुद बन जाता है। ताकि आपस का संबंध संतुलित रह सके। इसके विपरीत असामान्य व्यक्ति का व्यवहार में मिल जुल कर रहने की क्षमता का अभाव रहता है
(vi) सामान्य व्यक्ति को अपने सही और गलत व्यवहारों का ज्ञान रहता है। लेकिन असामा व्यक्ति को इसका ज्ञान नहीं रहता है। सामान्य व्यक्ति अपने गलत व्यवहारों के लिए पश्चाताप करता है। लेकिन असामारा व्यक्ति में इसका अभाव रहता है। इस प्रकार सामान्य और असामान्य व्यवहारों में कई अंतर हैं।


Q32. अंतरसमूह संघर्ष के कारणों का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ अंतर समूह संघर्ष के निम्नलिखित कारण हैं

(i) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological factors) मनोवैज्ञानिक कारकों में ध्वंसात्मक प्रवृत्ति (destructive instinct), निराशा या कुण्ठा प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा तथा असुरक्षा का भाव (fecling of insecurity) प्रमुख कारक है।
(ii) विरोधी मानक (Opposing norms)—प्रत्येक समूह के अलग-अलग मानक होते हैं जो अंतर समूह संघर्ष का कारण बनता है।
(iii) सामाजिक मूल्य (Social value)—प्रत्येक समूह के मूल्य एक-दूसरे समूह से भिन्न होता है जिसके कारण अंतर समूह संघर्ष होता है।
(iv)विरोधी लक्ष्य (Opposing goals)—अंतर समूह संघर्ष का एक प्रमुख कारण विरोधी लक्ष्य होता है।
(v) धार्मिक विश्वास में भिन्नता राजनैतिक कारण


Q33. प्राथमिक समूह की विशेषताओं का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ प्राथमिक समूह उसे कहते हैं जिसमें सदस्यों के बीच आमने-सामने का संबंध होता है। उनके बीच घनिष्ठ पारस्परिक संबंध (interpersonal relationship) होता है। प्राथमिक समूह की विशेषतायें और प्राथमिक समूह का आकार (size) प्रायः छोटा होता है। प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच सुख दुःख बाँटने का भाव अधिक पाया जाता है। प्राथमिक समूह में अधिक स्थायित्व (stability) पाया जाता है। प्राथमिक समूह के सदस्यों में घनिष्ठ पारस्परिक संबंध (impersonal relationship) होता है। इस प्रकार के समूह के सदस्यों में अहम् आवेष्टन (ego involvement) अधिक पाया जाता है।


Q34. प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह के बीच अंतरों की विवेचना करें।

उत्तर ⇔ प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह के मध्य एक प्रमुख अंतर यह है कि प्राथमिक समूह पूर्व-विद्यमान होते हैं जो प्रायः व्यक्ति को प्रदत्त किया जाता है जबकि द्वितीयक समूह में होते हैं जिसमें व्यक्ति अपने पसंद से जुड़ता है। अतः परिवार, जाति एवं धर्म प्राथमिक समूह है जबकि राजनीतिक दल की सदस्यता द्वितीयक समूह का उदाहरण है। प्राथमिक समूह में मुखोन्मुख अंत: क्रिया होती है, सदस्यों में घनिष्ठ शारीरिक सामीप्य होता है और उनमें एक उत्साहपूर्वक सांवेगिक बंधन पाया जाता है। प्राथमिक समूह व्यक्ति के प्रकार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं और विकास की आरंभिक अवस्थाओं में व्यक्ति के मूल्य एवं आदर्श के विकास में इनकी बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके विपरीत, द्वितीयक समूह वे होते हैं जहाँ सदस्यों में संबंध अधिक निर्वैयक्तिक, अप्रत्यक्ष एवं कम आवृत्ति वाले होते हैं। प्राथमिकता समूह में सीमाएँ कम पारगम्य होती हैं, अर्थात् सदस्यों के पास इसकी सदस्यता वरण या चरण करने का विकल्प नहीं रहता है, विशेष रूप से द्वितीयक समूह की तुलना में जहाँ इसकी सदस्यता को छोड़ना और दूसरे समूह से जुड़ना आसान होता है।


BSEB inter Exam Question Answer Pdf Download 2024

 1. Hindi 100 Marks ( हिंदी )
 2. English 100 Marks ( अंग्रेज़ी )
 3. PHYSICS ( भौतिक विज्ञान )
 4. CHEMISTRY ( रसायन विज्ञान )
 5. BIOLOGY ( जीवविज्ञान )
 6. MATHEMATICS ( गणित )
 7. GEOGRAPHY ( भूगोल )
 8. HISTORY ( इतिहास )
 9. ECONOMICS ( अर्थशास्त्र )
 10. HOME SCIENCE ( गृह विज्ञान )
 11. SANSKRIT ( संस्कृत )
 12. SOCIOLOGY ( समाज शास्‍त्र )
 13. POLITICAL SCIENCE ( राजनीति विज्ञान )
 14. PHILOSOPHY ( दर्शन शास्‍त्र )
15. PSYCHOLOGY ( मनोविज्ञान )

नमस्कार दोस्तों यहां पर नीचे के पोस्ट में कक्षा 10 का विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान (class 10 science and social science) का बहुत ही महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन लघु उत्तरीय प्रश्न तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर (short answer question and long answer question) दिया गया है। अगर आप भी मैट्रिक परीक्षा 2024 की तैयारी कर रहे हैं, तो यह सभी प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यही सब प्रश्न आपके मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2024 में पूछे जाएंगे। इसलिए शुरू से अंत तक बने रहें।