Bihar Board Class 12 Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) Long Question Answer 2024 ( 15 Marks ) | PART – 2

दोस्तों आज के इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 12 मनोविज्ञान का महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया गया है। दोस्तों यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा में ( 15 Marks ) के पूछे जाते हैं। तथा जितने भी क्वेश्चन दिए गए हैं कक्षा 12वीं मनोविज्ञान लंबे प्रश्न उत्तर पीडीएफ डाउनलोड सभी पिछले साल पूछे जा चुके हैं ,तो दोस्तों यह सभी प्रश्न उत्तर आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए शुरू से अंत तक दिए गए प्रश्न उत्तर को जरूर पढ़ें।


Psychology ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2

Q12. व्यक्तित्व के प्रकार उपागम का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ व्यक्तित्व के प्रकार से तात्पर्य व्यक्तित्व के एक से वर्ग से होता है जिनके सदस्यों के गुण एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। क्रेश्मर (Krestschmer, 1925) ने शारीरिक रचना के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार बतलाए हैं-कृशकाय (Athenic), पुष्टकाय (Athletic) तथा स्थूलकाय (Pyknic)। लंबे तथा दबले-पतले शरीर वाले व्यक्ति को कृशकाय कहा गया। ऐसे लोग चिडचिडा मिजाज के होते हैं।

पष्टकाय व्यक्ति का शरीर औसत कद का होता है। ऐसे व्यक्ति में एक सामान्य व्यक्ति के शीलगुण पाये जाते हैं। मोटे तथा नाटे शरीर वाले व्यक्ति को स्थूलकाय कहते हैं। ऐसे लोग शान्तिप्रिय तथा खुशमिजाज होते हैं। शेल्डन (Sheldon, 1942) ने क्रेश्मर की तरह शारीरिक रचना के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया—गोलाकृति (Endomorphy), आयताकृति (Mesomorphy) तथा लम्बाकृतिक (Mesomorphy)। मोटे-नाटे तथा गोल शरीर वाले व्यक्ति को गोलाकृतिक कहा गया। ऐसे लोग खशमिजाज तथा सामाजिक होते हैं।

संतुलित शारीरिक रचना वाले व्यक्ति को आयताकृतिक की संज्ञा दी गयी। ऐसे लोग काम करना पसंद करते हैं। लम्बे तथा दुबले-पतले शरीर वाले व्यक्ति को लम्बाकृतिक कहते हैं। ऐसे लोग संकोचशील तथा तुनुक मिजाज होते हैं। कार्ल युग (Carl Jung) ने व्यक्तित्व के दो प्रकार बतलाए हैं अंतर्मुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality) तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality)| अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति एकांतप्रिय तथा आत्मकेंद्रित होता है। ऐसे लोग अपना अधिकांश समय कल्पना एवं चिंतन में व्यतीत करते हैं और सामाजिक क्रियाकलाप से अपने को अलग रखते हैं। बहिर्मुखी
व्यक्तित्व वाले व्यक्ति सामाजिक एवं व्यवहार कुशल होते हैं।


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Q13. व्यक्तित्व के आकारात्मक मॉडल से आप क्या समझते हैं? व्याख्या करें।

उत्तर ⇔ फ्रायड (Freud) ने अपने व्यक्तित्व सिद्धांत में मानव मन को तीन भागों में विभाजित किया है, जो निम्नलिखित हैं

(A) चेतन (Conscious) — चेतन से तात्पर्य मन के वैसे भाग से होता है जिसमें वर्तमान की सारी अनुभूतियाँ एवं संवेदनाएँ होती है। फलतः चेतन व्यक्तित्व का लघु एवं सीमित पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
(B) अर्द्धचेतन (Subconscious)—अर्द्धचेतन से तात्पर्य वैसे मानसिक स्तर से होता है जो न तो पूर्णत: चेतन होता है और न ही पूर्णतः अचेतन। इसमें वैसी इच्छाएँ, विचार-भाव आदि होते हैं परंतु प्रयास करने पर वे हमारे चेतन मन में आ जाते हैं। इसका आकार चेतन से कुछ बड़ा होता है।
(C) अचेतन (Unconscious)—अचेतन, व्यक्तित्व मन के आकारात्मक पहलू का सबसे बड़ा भाग है। ब्राउन (Brown) के अनुसार ‘अचेतन मन का वह भाग है, जिसमें ऐसे विचार या मानसिक क्रियाएँ रहती हैं जिनका प्रत्याहवान व्यक्ति स्वेच्छा से नहीं कर पाता है, स्वतः प्रकट होती हैं या उन्हें सम्मोहन तथा अन्य प्रयोगात्मक प्रतिनिधियों के द्वारा जाना जा है।” फ्रायड ने अचेतन के अस्तित्व को दिन-प्रतिदिन के कुछ व्यवहारों के आधार पर की कोशिश की है। जैसे—विस्मरण का विश्लेषण, बोलने की भूलें, स्वप्न, समस्या का समाधान आदि। इस प्रकार मानव मन के तीन स्तर हैं, इनमें अचेतन की भूमिका सबसे महत्त्वपर्ण इसका मानव व्यवहार तथा व्यक्तित्व पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।


Q14. मन के गत्यात्मक पक्षों की विवेचना करें। अथवा, व्यक्तित्व के गत्यात्मक पहलू की व्याख्या करें।

उत्तर ⇔ ब्राउन (Brown) के शब्दों में “व्यक्तित्व के गत्यात्मक पहलू का अर्थ वह साधन है जिसके द्वारा मूल प्रवृत्तियों में उत्पन्न संघर्षों का समाधान होता है।” फ्रायड (Freud) ने मन के गत्यात्मक या संरचनात्मक मॉडल को ही व्यक्तित्व संरचना का आधार माना है। इनके अनुसार ये संरचनाएँ निम्नलिखित हैं

(A) इड(Id)—इड मन के गत्यात्मक पहलू का पहला प्रतिनिधि है। इसमें उन-प्रवृत्तियों की भरमार होती है जो जन्मजात होती है तथा जो असंगठित, कामुक, आक्रमकतापूर्ण तथा नियम विरुद्ध होती है। बच्चों में इड की प्रवृत्तियों की भरमार रहती है। इड की प्रवृत्तियाँ आनंद के नियम (Pleasure Principle) से संचालित होती है।

(B) ईगो (Ego) ईगों का विकास इड से होता है। ईगो मन का वह भाग होता है जिसका संबंध वास्तविकता से होता है। यह वास्तविकता सिद्धांत (reality principle) द्वारा निर्धारित होता है तथा वातावरण की वास्तविकता के साथ इसका संबंध होता है।
ईगों को व्यक्तित्व का कार्यपालक शाखा (executive branch) भी कहा गया है।

(C) सुपर ईगो (Super Ego)—सुपर-ईगो मन के गत्यात्मक पहलू का तीसरा भाग है। यह समाजीकरण तथा आदर्शों का प्रतिनिधित्व करता है। सुपर ईगो को व्यक्तित्व का नैतिक शाखा माना गया है जो व्यक्ति को उचित-अनुचित से अवगत कराता है। यह आदर्शवादी सिद्धांत (idealistic principle) द्वारा नियंत्रित होता है।इस प्रकार व्यक्तित्व संरचना के ये तीनों प्रतिनिधि व्यक्ति और पर्यावरण के बीच अभियोजन हेतु अलग-अलग ढंग से संतुलन स्थापित कराती है। इन तीनों शक्तियों के बीच तक संतुलन कायम रहता है। व्यक्ति का व्यक्तित्व संगठित और अनुकूल अभियोजन के योग्य रहता है।


Q15. व्यक्तित्व विकास की अवस्थाओं का वर्णन करें। अथवा, फ्रायड ने किस तरह से व्यक्तित्व विकास की व्याख्या की है? अथवा, फ्रायड के मनोलैंगिक विकास की पाँच अवस्थाओं का वर्णन करें। अथवा, सिग्मंड फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या किस तरह से की है।

उत्तर ⇔ फ्रायड के अनुसार व्यक्तित्व विकास पाँच विभिन्न अवस्थाओं में होता है। चूँकि इन विकास का मनोलैंगिक अवस्थाओं में व्यक्ति का विकास लैंगिक विकास के परिणामस्वरूप होता है। अतः इसे व्यापार का मनोलैंगिक अवस्था भी कहा जाता है जो इस प्रकार हैं।

(i) मखावस्था (Oral Stage)—व्यक्तित्व की यह पहली अवस्था है जो जन्म से लक करीब 2 साल तक का हाता है। इस अवस्था में मख लैंगिक तप्ति का केंद्र होता है। इस अवस्था के व्यवहारों का प्रभाव बाद के जीवन में देखा जाता है क्योंकि इस अवस्था में होनेवाला सामान्य विकास सामान्य व्यक्तित्व का नींव रखता है।
(ii) गुदावस्था (Anal Stage)— यह अवस्था 2 साल से 3 साल की आयु के बीच की होती है। इस अवस्था में लैंगिक सुख मुख से हटकर शरीर के गदा क्षेत्र में केंद्रित हो जाता है। इसी समय बच्चे का यथार्थ से पहला परिचय होता है। फ्रायड के अनुसार इस अवस्था में ही व्यक्ति की जीवनशैली निर्धारित हो जाती है।
(iii) लिंग प्रधानवस्था (Phallic Stage)—व्यक्ति विकास की इस तीसरी अवस्था 4 से 6 साल की आयु में होती है। इस अवस्था में बच्चे का लैंगिक सुख उसका ज्ञाननेन्द्रियाँ (gential organs) होता है। इसी समय बच्चे को लिंग भिन्नता का भी ज्ञान होने लगता है।
(iv) अव्यक्तावस्था (Latency Stage) —- अव्यक्तावस्था मनोलैंगिक विकास की चौथी अवस्था है जो 6 या 7 वर्ष की आयु से प्रारंभ होकर लगभग 12 वर्षों की आयु तक चलती है। इस अवस्था में विभिन्न काम जनित क्रियाएँ प्रायः शांत रहती है। इस अवस्था में बौद्धिक विकास तथा नैतिक विकास होता रहता है क्योंकि इस अवस्था तक सुपर ईगो पूरी तरह स्थापित हो जाता है।
(v) जननेन्द्रियावस्था (Genital Stage)-जननेन्द्रियावस्था मनोलैंगिक विकास की अंतिम अवस्था है जो 13 वर्ष की आयु से प्रारंभ होकर प्रौढ़ावस्था तक चलती है। इस अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक दृष्टि से परिपक्व हो जाता है और वह विषमलिंगी के साथ जुड़कर लैंगिक सुख प्राप्त करने लगता है। इस प्रकार फ्रायड के अनुसार मनुष्य के जीवन के मनोलैंगिक विकास की प्रारंभिक अवस्थाओं में उसके व्यक्तित्व निर्माण पर और प्रौढ़ व्यवहार प्रणाली पर अत्यधिक असर पड़ा है।


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Q16. टाइप-ए तथा टाइप-बी प्रकार के व्यक्तित्व में अंतर करें।

उत्तर ⇔ टाइप-ए तथा टाइप-बी व्यक्तियों में निम्नलिखित अंतर हैं

(ii) टाइप-ए प्रकार के व्यक्ति बातचीत करते समय काफी जल्दी-जल्दी तथा तेज अवाज में बोलते हैं। इसके विपरीत टाइप बी प्रकार के व्यक्ति बातचीत संयम तथा आराम से करते हैं।
(ii) टाइप ‘ए’ प्रकार के व्यक्ति किसी प्रश्न का उत्तर तुरंत छोटा तथा सटीक देता है। जबकि टाइप ‘बी’ प्रकार के व्यक्ति रूक कर तथा लम्बा उत्तर देते हैं।
(iii) टाइप ‘ए’ प्रकार के व्यक्ति आक्रामक स्वभाव के होते हैं। इसके विपरीत टाइप ‘बी’ प्रकार के व्यक्ति स्नेही स्वभाव के होते हैं।
(iv) टाइप ‘ए’ व्यक्ति कठोर, परिश्रमी तथा अतिअभिलाषी होते हैं। जबकि टाइप ‘बी’ व्यक्ति अपने स्थिति से संतुष्ट होते हैं।
(v) टाइप ‘ए’ व्यक्ति सदैव समय के दबाव में रहते हैं क्योंकि ये एक साथ कई कार्य करते हैं। दूसरी तरफ टाइप ‘बी’ व्यक्ति बहुत कम ऐसा करते हैं।
(vi) टाइप ‘ए’ व्यक्ति प्रतियोगिता तथा प्रतिस्पर्धा में अपने आपको हमेशा व्यस्त र – जबकि टाइप ‘बी’ व्यक्ति आराम से अपना कार्य करते हैं।
(vii) टाइप ‘ए’ व्यक्ति किसी कार्य मे देरी पर अधीर हो जाते हैं जबकि टाइप शांत रहते हैं। इस प्रकार, स्पष्ट हुआ कि टाइप ‘ए’ तथा टाइप ‘बी’ दोनों प्रकार के व्यक्तित्व में कई


Q17. व्यक्तित्व मापन के स्याही धल्या प्रक्षेपण परीक्षण के गुण दोषों का वर्णन कर

उत्तर ⇔ इस परीक्षण का निर्माण रोशार्क (Rorschach, 1890-1922) ने किया। इसलिए दो रोशार्क-परीक्षण (Rorschach test, RT) भी कहा जाता है । इसमें 10 कार्ड हैं। प्रत्येक कार्ड पर स्याही के अस्पष्ट धब्बे बने हुए हैं। इनमें पाँच धब्बे काले रंग के बने हुए हैं, 2 धब्बे लाल तथा 3 धब्बे कई रंगों के बने हुए हैं। जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व को मापना होता है, उसे पहले एक कार्ड दिया जाता है और कहा जाता है कि उसे उस कार्ड में जो कुछ दिखाई पड़े अथवा स्याही ” के धब्बे जिस चीज के समान दीख पड़ें; उन्हें उसी रूप में बतला दे।

गुण (Merits)—प्रयोज्य के द्वारा दी गयी प्रतिक्रियाओं के स्थान (location), निर्धारक (determinant), विषय-वस्तु (contents) तथा मौलिकता एवं संगठन के आधार पर अंक (scores) प्राप्त किये जाते हैं । इन अंकों से पता चलता है कि प्रयोज्य के व्यक्तित्व में कौन-कौन से शीलगुण हैं। यह भी ज्ञात होता है कि व्यक्तित्व के सभी शीलगुण किस सीमा तक संगठित या असंगठित हैं। इस परीक्षण का एक गुण यह है कि इसकी स्कोरिंग प्रणाली (Scoring system)काफी वैज्ञानिक है। इसलिए व्यक्तित्व का समुचित मापन संभव होता है।

दोष (Demerits)

(i) यह एक आत्मनिष्ठ परीक्षण (subject test) है। इसलिए इस बात की संभावना हमेशा बनी रहती है कि प्रयोज्यं जानबूझ कर गलत उत्तर दें।
(ii) गिलमर (Gilmer) के अनुसार इस परीक्षण से व्यक्तित्व के संगत घटकों (contents) का समुचित मापन नहीं हो पाता है।
(iii) इस परीक्षण के आधार पर प्राप्त सूचनाओं की व्याख्या करना बहुत कठिन है।
(iv) इस परीक्षण की स्कोरिंग प्रणाली के वैज्ञानिक होते हुए भी यह काफी जटिल है, जिससे स्कोरिंग के गलत हो जाने की संभावना बनी रहती है। इन दोषों को ध्यान में रखते हुए कोरचिन (2003) ने व्यक्तित्व के मापन के संबंध में कहा है कि इस परीक्षण को केवल एक सहायक परीक्षण के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।


Q18. मैसलो के व्यक्तित्व के मानवतावादी उपागम या सिद्धांत का मूल्यांकन करें

उत्तर ⇔ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन मैसलो ने किया। कारण, रोजर्स ने आत्मकार्यान्वयन शब्द का व्यवहार अवश्य किया। किन्तु इसका विधिवत अध्ययन मैसलो ने ही किया तथा इसका विशेषताओं का उल्लेख किया।

गुण (Merits)

(i) यह सिद्धान्त व्यक्तित्व की समग्रता पर बल देता है जो गेस्टाल्टवादा सिद्धान्त के अनुकूल है।
(ii) इस सिद्धान्त का भी इस सिद्धान्त का आत्मकार्यान्वयन से संबंधित विचार काफी मूल्यवान है।
(iii) इस सिद्धान्त का शोध का मूल्य (heuristic value) अधिक है।
(iv) यह सिद्धान्त व्यक्तित्व के प्रेरणात्मक पक्ष की व्याख्या करने में सफल हो रन में सफल है।
(v) यह सिद्धान्त उच्च आदर्श तथा उच्च सामर्थ्य वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व की व्याख्या करने में अधिक सफल है।

सीमाएँ (Limitations)

(i) यह एक आत्मनिष्ठ दष्टिकोण है।
(ii) मैसलो के आत्मकार्यान्वयन के प्रत्यय को सभी संस्कृतियों तथा सभी सामाजिक आर्थिक स्थिति के लोगों पर समान रूप से थोपना गलत है। (iii) मैसलो द्वारा प्रस्तुत आवश्यकता श्रृंखला (need hierarchy) दोषपूर्ण है। इन आवश्यकताओं का क्रम समय, परिस्थिति तथा व्यक्ति के अनुकूलन बदल सकता है, (iv) यह सिद्धान्त सामान्य व्यक्तित्व की व्याख्या करने में सफल नहीं है।
अतः व्यक्तित्व के सिद्धान्त की हैसियत से यह सिद्धान्त केवल एक सहायक सिद्धान्त के रूप में ही स्वीकृत हो सकता है।


Q19. आत्म से आप क्या समझते हैं? आत्म-सम्मान की विवेचना करें।

उत्तर ⇔ आत्म से तात्पर्य अपने को एक वस्तु के रूप में देखते हुए स्वयं के बारे में विचारों . एवं अनुभूतियों की समग्रता विकसित करने से होती है। आत्म में उन सभी गुणों की एक सूची होती है, जिनके माध्यम से व्यक्ति अपने आप को वर्णन करता है। आत्म-सम्मान आत्म का एक भावात्मक पहलू है। पिनट्रिच एवं शुंक (Pintrich & Shunk,1996) के अनुसार आत्म सम्मान स्व. (self) के प्रति एक भावात्मक या संवेगात्मक प्रतिक्रिया होती है। व्यक्ति अपने बारे में कितना धनात्मक या नकारात्मक भाव रखता है, को ही आत्म-सम्मान कहा जाता है। अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि उच्च आत्म-सम्मान होने पर व्यक्ति बहुत सारे धनात्मक व्यवहार करता है एवं अपनी उपलब्धियों से काफी खुश होता है। आत्म-सम्मान के कम होने पर व्यक्ति में मनोवैज्ञानिक समस्याएँ जैसे चिन्ता, विषाद आदि उत्पन्न हो जाते हैं। विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ कि 6 से 7 साल की आयु होते-होते बच्चों में कम-से-कम चार क्षेत्रों में आत्म-सम्मान का भाव विकसित हो जाता है। वे चार क्षेत्र हैं—शैक्षिक . क्षमता, सामाजिक क्षमता, शारीरिक खेलकूद संबंधित क्षमता तथा शारीरिक रंग-रूप। अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि आत्म-सम्मान का दिन-प्रतिदिन के व्यवहार से अधिक संबंध होता है।


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Q20. आत्म के प्रकारों का वर्णन करें। अथवा, आत्म क्या है? इसके प्रकारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ व्यक्ति जिस प्रकार दूसरे व्यक्ति के बारे में एक विशेष धारणा रखता है, उसी प्रकार वह अपने आप के बारे में भी एक निश्चित धारणा रखता है। इसी धारणा को आत्म कहा जाता है। आत्म या स्व (Self) के निम्नलिखित प्रकार हैं-

(i) व्यक्तिगत-आत्म (Personal-self)—इसमें व्यक्ति अपने स्व या आत्मा के संबंध में एक विशेष धारणा रखता है कि वह अच्छा है या बुरा, स्वस्थ है या अस्वस्थ है। उसके इसी सोच, या धारणा को व्यक्तिगत धारणा या आत्मा कहा जाता है। व्यक्ति के व्यक्तिगत समायोजन पर व्यक्तिगत आत्मा का निश्चित प्रभाव पड़ता है।

(ii) सामाजिक-आत्म (Social-self-सामाजिक आत्म का अर्थ वह आत्म है । सामाजिक संबंधों से संबद्ध होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार तथा अपने समा” के बारे में एक विशेष धारणा बनाए रखता है। इसलिए इसे पारिवारिक आत्म संबंधन आत्म भी कहा जाता है। सांस्कृतिक-आत्म (Cultural-self)—इस आत्म का संबंध संस्कृति से होता है। प्रायः इसके दो रूप देखे जाते हैं। भारतीय परिवेश में सांस्कृतिक आत्म का अर्थ अपने आप के साथ-साथ अपनी संस्कृति से संबद्ध रखना तथा संस्कृति के साथ सकारात्मक पात रखना है।


Q21. आत्म के संज्ञानात्मक एवं व्यवहारात्मक पक्ष का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ आत्म की अभिव्यक्ति के दो पक्ष होते हैं जिन्हें संज्ञानात्मक पक्ष (cognitive aspect) तथा व्यवहारात्मक पक्ष (behavioural aspects) कहा जाता है। संज्ञानात्मक पक्ष का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी आत्म के अनुकूल ही किसी उद्यीपन के संबंध में धारणा बनाता है। अत: आत्म के संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक पक्षों को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है

(i) आत्म-सम्मान (Self-esteem) आत्म का एक संज्ञानात्मक पक्ष है आत्म सम्मान जिसके कारण व्यक्ति अपने आपको सम्मानित समझता है। इसलिए वह ऐसा व्यवहार करता है जिससे उसे सम्मान मिलता है और ऐसा व्यवहार नहीं करता है, जिससे उसको सम्मान मिलने की संभावना नहीं होती है। उच्च व्यवहारों पर इस आत्मा पक्ष का गहरा प्रभाव देखा जाता है।
(ii) आत्म-सक्षमता (Self-efficiency) आत्म का एक महत्त्वपूर्ण संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक पक्ष आत्म-सक्षमता है। आत्म सक्षमता का सुंदर उदाहरण बैण्डुरा (Bandura) के प्रेक्षणात्मक अधिगम में मिलता है। उन्होंने आक्रमणात्मक व्यवहार (aggressive behaviour) के अधिगम में देखा कि समान आक्रामक व्यवहारों का निरीक्षण करने के बाद कुछ बच्चों ने उसी तरह का आक्रामक व्यवहार करना सीख लिया। कुछ बच्चों ने नहीं सीखा।

(i) आत्म-नियमन (Self-regulation) आत्म-नियमन का तात्पर्य व्यक्ति के अपने व्यवहार को संगठित करने की योग्यता से है। कारण, ऐसे लोगों में वातावरण के अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की योग्यता पाई
जाती है।


Q22. व्यक्तित्व के शीलगुण या विशेषक उपागम का वर्णन करें।

उत्तर ⇔ विशेषक उपागम या सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व की रचना भिन्न-भिन्न शीलगुण से हुई है। अत: व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक मौलिकं तत्त्वों (basic components) को विशेषक या शीलगुण कहते हैं। ये मौलिक तत्त्व या
शीलगुण अपेक्षाकृत स्थिर (relatively stable) होते हैं और विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार द्वारा प्रकट होते हैं। (क) आलपोर्ट का दृष्टिकोण-आलपोर्ट ने शीलगुणों को तीन वर्गों में विभाजित किया

(i) मूल-शीलगुण (cardinal traits),
(ii) केंद्रीय शीलगुण (central traits) तथा
(iii) अनुषगा शीलगुण (secondary traits)। मूल शीलगुण का तात्पर्य ऐसे विशेषकों से है, जिनका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर व्यापक रूप से पड़ता है। केंद्रीय शीलगुणों का तात्पर्य ऐसे विशेषकों से है, जा मूल शीलगुणों
की तरह व्यापक नहीं भी होने पर व्यक्ति के विशिष्ट व्यवहार (characteristic behaviour) को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

(ख) कैटेल का दृष्टिकोण-कैटेल

(i) Faet pitcrjo (surface traits) 77911 citra y caur (source traits)! * व्यक्तित्व-शीलगुणों को दो भागों में विभाजित अनसार शीलगुण का अर्थ मानसिक संरचना
“पा (imental structure) है, एक मानिकस अनमान Cinference) है, जो व्यवहार के निरीक्षण राक्षण से प्रकट होता है और जो व्यवहार में स्थिरता या संगति (consistency) उत्पन्न करता है।

(ग) आइजिंक ने व्यक्ति की व्याख्या तीन द्विधवीय (hinatandimension) के रूप में किया है और प्रत्येक विमा में कई तरह के विशिष्ट शीलगण होते हैं. जो व्यवहार का निर्धारण करत हैं। वे तीन विमाएँ हैं

(i) बर्हिमुखता—अंतर्मुखता
(ii) स्नायुविकृति बनाम सांवेगिक स्थिरता तथा (iii) मनोविक्षिप्तता बनाम मैत्रीपूर्णता।


Q23. व्यक्तित्व मापन के एक उपकरण के रूप में साक्षात्कार विधि के गुणों एवं दोषों का वर्णन करें। [2019A)

उत्तर ⇔ साक्षात्कार एक ऐसा व्यवहारात्मक विश्लेषण विधि है जिसमें व्यक्तित्व मापन आमने-सामने की परिस्थिति में कुछ प्रश्नों को पूछकर उत्तरदाता द्वारा दी गयी प्रतिक्रियाओं का विश्लेषण के आधार पर व्यक्तित्व आकलन किया जाता है।
साक्षात्कार मूलतः दो तरह के होते हैं संरचित साक्षात्कार तथा असंरचित साक्षात्कार।

साक्षात्कार विधि के निम्नांकित गुण है :

1. साक्षात्कार बधि द्वारा व्यक्तित्व के व्यक्तित्व का केवल अवलोकन ही नहीं होता है, बल्कि इसके द्वारा व्यक्तित्व का गहन अध्ययन भी संभव होता है।
2. साक्षात्कार विधि का दूसरा प्रमुख गुण है कि इस विधि द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का केवल अवलोकन ही नहीं होता है, बल्कि इसके द्वारा व्यक्तित्व का गहन अध्ययन भी संभव होता है।
3. इस विधि द्वारा बालकों तथा अशिक्षित व्यक्तियों का भी अध्ययन संभव है क्योंकि इससे उसके विचारों, अनुभवों तथा मनोवृत्तियों का भलीभाँति अध्ययन किया जा सकता है।
4. इस विधि द्वारा अतीत की घटनाओं का भी अध्ययन संभव है।

इस विधि की कुछ दोष भी हैं जो निम्नांकित है

1. साक्षात्कार विधि एक जटिल विधि है। इस विधि की सफलता के लिए आवश्यक तैयारी तथा सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित करना एक जटिल कार्य है।
2. इस विधि में साक्षात्कारकर्ता पूर्णतः तटस्थ न होकर अपनी निजी भावनाओं और अभिवृत्तियों से प्रभावित होते हैं। अतः व्यक्तित्व मूल्यांकन में वस्तुनिष्ठता का अभाव हो जाता है।
3. साक्षात्कार विधि का एक दोष यह भी है कि इसमें बहुत अधिक समय एवं महँगी विधि है। इस प्रकार उपर्युक्त सीमाओं के बावजूद आज भी साक्षात्कार विधि व्यक्तित्व के संबंध में विश्वसनीय एवं स्वाभाविक जानकारी देने में सक्षम है।


BSEB inter Exam Question Answer Pdf Download 2024

 1. Hindi 100 Marks ( हिंदी )
 2. English 100 Marks ( अंग्रेज़ी )
 3. PHYSICS ( भौतिक विज्ञान )
 4. CHEMISTRY ( रसायन विज्ञान )
 5. BIOLOGY ( जीवविज्ञान )
 6. MATHEMATICS ( गणित )
 7. GEOGRAPHY ( भूगोल )
 8. HISTORY ( इतिहास )
 9. ECONOMICS ( अर्थशास्त्र )
 10. HOME SCIENCE ( गृह विज्ञान )
 11. SANSKRIT ( संस्कृत )
 12. SOCIOLOGY ( समाज शास्‍त्र )
 13. POLITICAL SCIENCE ( राजनीति विज्ञान )
 14. PHILOSOPHY ( दर्शन शास्‍त्र )
15. PSYCHOLOGY ( मनोविज्ञान )

नमस्कार दोस्तों यहां पर नीचे के पोस्ट में कक्षा 10 का विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान (class 10 science and social science) का बहुत ही महत्वपूर्ण ऑब्जेक्टिव क्वेश्चन लघु उत्तरीय प्रश्न तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर (short answer question and long answer question) दिया गया है। अगर आप भी मैट्रिक परीक्षा 2024 की तैयारी कर रहे हैं, तो यह सभी प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि यही सब प्रश्न आपके मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2024 में पूछे जाएंगे। इसलिए शुरू से अंत तक बने रहें।