बिहार बोर्ड ( कक्षा 12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024 ) PART – 3 Inter Exam – 2024

Class 12 History Objective & Subjective Question Answer 2024 ] : हमारे प्रिय छात्र-छात्राएं अगर आप इस बार इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 में सम्मिलित हो रहे हैं और अगर आप बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास का लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर को अभी तक नहीं पढे हैं और आप बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न को पढ़ना चाहते हैं तो इस पोस्ट में आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है ( कक्षा 12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024 ) PART – 3 क्योंकि यह सभी प्रश्न आपके इंटर बोर्ड परीक्षा इतिहास में बहुत बार आ चुका है इसलिए इन सभी प्रश्नों को एक बार जरूर ध्यान दें।

इतिहास ( लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) PART – 3

बिहार बोर्ड 2024 परीक्षा का लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024

[ 1 ] श्रीमद भगवत गीता का एक संक्षिप्त परिचय दें।

Ans :- महर्षि वेदव्यास ने श्रीमद्भागवत गीता की रचना की थी। इसमें कुरुक्षेत्र के मैदान में के श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को कर्म करने की प्रेरणा दी गई है इसमें कहा गया है। कि धर्म के रास्ते पर चलते हुए मनुष्य को अपना कर्म करना चाहिए। कर्म फल की चिंता ना करें। क्योंकि ईश्वर आपके कर्मों का फल अवश्य देगा। अर्जुन को छतरी उचित कर्म युद्ध करने की प्रेरणा दी गई। जिसके परिणाम स्वरूप महाभारत युद्ध हुआ।


[ 2 ] महाभारत के लेखक कौन था ?

Ans :- ऐसा माना जाता है कि महाभारत की मूल कथा के रचयिता भाट सारथी थे। जिन्हें सूत कहा जाता था। यह सूत क्षत्रिय युद्धों के साथ युद्ध क्षेत्र में जाते थे। व उनकी विजय एवं उपलब्धियों को काव्य रूप में प्रस्तुत करते थे। मूल महाभारत में प्रारंभ में 10,000 से कम अश्लोक थे बाद में यह बढ़कर 100000 से भी अधिक हो गया इसके रचयिता महर्षि वेदव्यास है।


[ 3 ] महाभारत युद्ध पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

Ans :- महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच गुरु साम्राज्य के सिहासन की प्राप्ति के लिए लड़ा गया था। यह प्राचीन कालीन भारत का सबसे बड़ा युद्ध था। यह युद्ध 18 दिनों तक चला था। इसमें कौरवों की तरफ से भीष्म पितामह करण द्रोणाचार्य कृपाचार्य, अश्वत्थामा, धृतराष्ट्र के सौ पुत्र इत्यादि थे तो पांडवों की तरफ से पांच पांडव अभिमन्यु घटोत्कच इत्यादि थे। अर्जुन के सारथी भगवान कृष्ण थे। इसमें पांडवों की विजय हुई।


[ 4 ] राजतंत्र और वर्ण में संबंध स्थापित करें।

Ans :- प्राचीन भारत में सैद्धांतिक रूप से राजतंत्र और वर्ण में गहरा संबंध था। अर्थशास्त्र और धर्म सूत्रों में राजतंत्र और वर्ण व्यवस्था का उल्लेख किया गया है। धर्म सूत्रों के अनुसार सम्राट क्षेत्रीय वर्ग से ही होना चाहिए। और उनके सलाहकार ब्राह्मण पुरोहित होना चाहिए प्रशासन में ब्राह्मणों का सर्वोच्च स्थान प्राप्त था। गौतम के अनुसार राजा तथा वेद के ज्ञानी ब्राह्मण यह दोनों संसार को नैतिक व्यवस्था के नियामक है। यह भी कहा गया है, कि राजा सभी का स्वामी होता है किंतु ब्राह्मण नहीं। इस प्रकार प्राचीन भारत में सैद्धांतिक रूप से क्षत्रिय को ही आदर्श राजा के रूप में मान्यता प्राप्त था। इसी प्रकार पुरोहित व सलाहकार के रूप में ब्राह्मण स्थापित थे। वैश्य और शुद्र के कर्तव्य निर्धारित थे। और वे राजपाल से दूर रहकर कृषि कार्य एवं सेवा का दायित्व निभाते थे।


[ 5 ] वैदिक साहित्य पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।

Ans :- वैदिक आर्यों द्वारा रचित साहित्य का अध्ययन निम्नलिखित शिक्षकों के अंतर्गत किया गया है-

(i) वेद :-  वेद आर्यों का प्राचीनतम ग्रंथ है वेद चार प्रकार के होते हैं। ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद इन चारों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है।
(ii) ब्राह्मण ग्रंथ :- यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन करने वाले ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथ कहलाते हैं इनमें वैदिक मंत्रों की व्याख्या के साथ यज्ञ के विषयों का प्रतिपादन किया गया है।
(iii) आरण्यक :- वनों तथा अरण्यों में रहकर विभिन्न ऋषि यों ने जिस साहित्य की रचना की आरण्यक कहलाते हैं।
(iv) उपनिषद :- इनमें आर्यों का आध्यात्मिक और दार्शनिक चिंतन देखने को मिलता है।


[ 6 ] प्राचीन काल में महिलाओं के संपत्ति संबंधित अधिकार का वर्णन कीजिए।

Ans :- ऋग्वेद काल में परिवार की संपत्ति पर पिता का अधिकार होता था। पिता की मृत्यु के बाद ही यह अधिकार पुत्र को मिलता था महाभारत में स्त्री को चल संपत्ति पर अधिकार था। और वह स्वयं भी चल संपत्ति समझे जाते थे। और उसे किसी अन्य को उपहार स्वरूप दिया जाता था। महाभारत में युधिष्ठिर ने दूध क्रीड़ा के समय अपनी पत्नी द्रौपदी को दांव पर लगाया। और हार गया था परिवारिक संपत्ति पर स्त्री का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं था।


[ 7 ] ऋगवैदिक काल में नारी की दशा कैसी थी?

Ans :- ऋगवैदिक काल में नारी को बड़ा आदर और सम्मान प्राप्त था वह अपनी योग्यता के अनुसार शिक्षा ग्रहण करते थे विश्व आरा, घोषा, अपाला इत्यादि तो इतनी विदुषी स्त्रियां हुई है कि उन्होंने ऋग्वेद के मंत्रों की रचना की। स्त्रियां गृहस्वामिनी मानी जाती थी। और सभी धार्मिक कार्यों में अपने पति के साथ भाग लेती थी। पर्दे की प्रथा नहीं थी। स्त्रियां स्वच्छ रूप से घूम फिर सकती थी इस काल में सती प्रथा नहीं थी। बहु- विवाह का प्रचलन नहीं था। और स्त्रियों को सैनिक शिक्षा भी दी जाती थी। वह अपने पति के साथ युद्ध भूमि में भी जाती थी।


[ 8 ] प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।

Ans :- ऋग्वेद के पुरुष सूक्त तथा महाभारत के शांति पूर्व से जानकारी मिलती है कि ब्रह्मा ( विराट, पुरुष ) के मुख से ब्राह्मण, बाहु से छत्रिय, जंघा से वैश्य तथा पैरों से शूद्र वर्ण की उत्पत्ति हुई। प्रारंभ में चतुर वर्ण व्यवस्था का आधार कर्म था। ब्राह्मण का कार्य कर्मकांड संपन्न कराना था। राजा छत्रिय होता था। जिसका कार्य रक्षा करना था। वैश्य का कार्य व्यापार था। इन तीनों वर्ग को सम्मिलित रूप से द्विज कहा जाता था। शुद्र वर्ण का कार्य इन तीनों वर्णो की सेवा करना था। कालांतर में यह व्यवस्था कर्म के स्थान पर जन्म पर आधारित हो गई।


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[ 9 ] वैदिक काल में आश्रम व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।

Ans :- वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था के साथ-साथ आश्रम व्यवस्था भी भारतीय समाज का अंग बन गई थी। मनुष्य की आयु को 100 वर्ष मानकर प्रत्येक आश्रम के लिए 25 वर्ष के समान अवस्था निश्चित की गई थी। यह चार आश्रम इस प्रकार थे।

(i) ब्रह्माचर्य आश्रम ( 25 वर्ष तक ) :- इस आश्रम में व्यक्ति अपने गुरु के आश्रम में रहकर ब्रम्हचर्य का पालन करते हुए विद्या ग्रहण करता था।
(ii) गृहस्थश्रम ( 25 – 50 वर्ष) :- अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद व्यक्ति विवाह करके गृहस्थ धर्म का पालन करता था।
(iii) वानप्रस्थ आश्रम (50-75 वर्ष ) :- इस आश्रम में व्यक्ति सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर तथा जंगल में रहकर एकांत स्थान में आत्म चिंतन तथा जीवन की गुढ़ बातों पर ध्यान करता था।
(iv) संयास आश्रम ( 75 – 100 वर्ष ) :- यह अंतिम आश्रम था इसमें व्यक्ति अपने कोटि को छोड़कर सन्यासी बन जाता था। और कठिन तप द्वारा मुक्ति मोक्ष की कामना करता था।


[ 10 ] गोत्र से आप क्या समझते हैं ?

Ans :- लगभग 1000 ईसा पूर्व में गोत्र प्रथा अस्तित्व में आया प्रत्येक गोत्र किस ऋषि के नाम पर होता था। उस गुट के सदस्य उसी ऋषि के वंशज माने जाते थे। एक ही गोत्र के सदस्य आपस में विवाह नहीं कर सकते हैं। विवाह के बाद स्त्रियों का गोत्र पिता के स्थान पर पति का गोत्र माना जाता था। परंतु सातवाहन इसके बाद कहे जा सकते हैं। पुत्र के नाम के आगे माता का गोत्र माना जाता था। उदाहरण के लिए गौतम पुत्र शातकर्णी अर्थात विवाह के बाद भी सातवाहन रानियों ने अपने पति के स्थान पर पिता का गोत्र ही अपनाया।


[ 11 ] वैदिक काल की सभा व समिति के बारे में आप क्या जानते हैं

Ans :- वैदिक काल में राजा सर्वोच्च अधिकारी और शक्ति संपन्न होता था। परंतु वह निरंकुश व स्वेच्छाचारी नहीं हो सकता था। उस पर दौर जनतांत्रिक संस्थाओं सभा और समिति का नियंत्रण रहता था सभा संपूर्ण जनता के प्रतिनिधियों के संस्था थे। तथा समिति वयोवृद्ध तथा उच्च फुल व्यक्तियों की संस्था से थी। जिम्मर के अनुसार समिति संपूर्ण जाति की केंद्रीय सभा और सभा गांव की प्रतिनिधि संस्था थी। ऐसा प्रतीत होता है। कि समिति समस्त जन या विष संस्था थी। जिसमें राजा का चुनाव होता था। सभा समिति से छोटी होती थी। जिसमें समाज के वयोवृद्ध व प्रतिष्ठित व्यक्ति होते थे। उत्तर वैदिक काल में राजाओं की शक्तियों में वृद्धि हो गई थी। तथा इन संस्थाओं का महत्व कम होने लगा था।


[ 12 ] चार्वाक दर्शन के विषय में आप क्या जानते हैं?

Ans :- वैदिक कर्मकांड से जब जनता त्रस्त होने लगी इंसान आगामी जन्म के फेर में पकड़कर वर्तमान जन्म में चिंतित रहने लगे ऐसे में चार्वाक मुनि ने अपना दर्शन लोगों को दिया कि जब तक जियो सुख से जियो और कर्ज लेकर घी पियो, इस प्रकार भौतिकवादी चार्वाक ने मानव को परलोक की चिंता छोड़ इहलोक में आनंद पूर्वक जीवन जीने का मार्ग बताया। उनका कहना था ना आत्मा है ना पुनर्जन्म है और ना ही कोई परलोक है। परलोक की चिंता छोड़ कर सामने जो भी सुख है उनका उपभोग करो।


[ 13 ] शैवमत के बारे में आप क्या जानते हैं ?

Ans :- भगवान शिव से संबंधित धर्म को “शैव” कहा जाता है। ऋग्वेद में शिव को रुद्र कहा जाता था। हड़प्पा सभ्यता में भी शिव के प्रत्येक मिले हैं। अतः यह एक प्राचीन धर्म था कौटिल्य के अर्थशास्त्र से पता चलता है। की मौर्य काल में शिव पूजा प्रचलित थे। गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय का प्रधानमंत्री वीरसेन शैव उपासक था। उसने उदयगिरि पहाड़ी पर शिव गुफा का निर्माण कराया था। गुप्त काल में ही भूमरा का शिव मंदिर एवं नचना कुठार का पार्वती मंदिर निर्मित किया गया। इस काल के पुराणों में लिंग पूजा का उल्लेख मिलता है। संभवत: लिंग रूप में शिव पूजा का आरंभ गुप्त काल में ही हुआ। हर्षवर्धन के काल में आया चीनी यात्री हेनसांग वाराणसी को शैवधर्म का प्रमुख केंद्र बताता है। राजपूत काल में भी सब धर्म उन्नति प्रथा चंदेल शासकों ने खजुराहो में कंदरिया महादेव मंदिर का निर्माण कराया। कालिदास भवभूति सुबंधु एवं वाहन भट्ट जैसे विद्वान शैवधर्म के ही उपासक थे।


[ 14 ] शैवमत के मुख्य संप्रदाय कौन-कौन से थे?

Ans :- सहमत के संप्रदायों में लिंगायत संप्रदाय, कापालिक संप्रदाय और पाशुपत संप्रदाय प्रमुख थे –

(i) लिंगायत संप्रदाय :- लिंगायत संप्रदाय का संस्थापक वासव एवं उनका भतीजा चन्ना वासव था। यह निष्काम कर्म में विश्वास करते थे एवं शिव को परम तत्व मानते थे।

(ii) कापालिक संप्रदाय :- यह भाई रब को शिव का अवतार मानते थे। और उनकी उपासना करते थे।

(iii) पाशुपत संप्रदाय :- यह शैवों का प्राचीनतम संप्रदाय है इसके संस्थापक लकुलीश थे। इस संप्रदाय का प्रमुख मंदिर नेपाल में काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ का मंदिर है।


[ 15 ] बौद्ध धर्म के महायान और हीनयान के सिद्धांत में क्या अंतर है ?

Ans :- हीनयान संप्रदाय महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं पर आधारित है यह संप्रदाय महात्मा बुध को एक महापुरुष के रूप में स्वीकारता है। हीनयान में ज्ञान को प्रमुख स्थान दिया गया है। तथा व्यक्ति को निर्वाण की प्राप्ति करना उद्देश बताया गया है। महायान संप्रदाय में महात्मा बुध इसके अतिरिक्त बोधिसत्व की शिक्षाओं को शामिल किया गया है। तथा महात्मा बुध को एक सर्वशक्तिमान देवता मान लिया गया है। महायान संप्रदाय में ज्ञान के स्थान पर करुणा को अधिक महत्व दिया गया है। महायान संप्रदाय के अनुयाई बोधिसत्व को आदर्श मानते हुए गृहस्थ जीवन को अधिक महत्व दिया है।


[ 16 ] लिंगायत संप्रदाय की दो विशेषताओं का वर्णन करें।

Ans :- लिंगायत समुदाय की दो विशेषताएं निम्नलिखित है –

(i) लिंगायत भारतवर्ष के प्राचीनतम सनातन हिंदू धर्म का एक हिस्सा है यह मत भगवान शिव की स्तुति आराधना पर आधारित है।

(ii) लिंगायत के ज्यादातर अनुयायी दक्षिण भारत में इस संप्रदाय की स्थापना 12 शताब्दी में बसवण्णां ने की थी।


[ 17 ] महात्मा बुध की शिक्षाएं क्या थी?

Ans :- महात्मा बुध बौद्ध धर्म के संस्थापक थे इनकी मुख्य शिक्षाएं निम्नलिखित है-

(i) चार आर्य सत्य है – दुख, दूर:, समुदाय, दुख निरोध, दुख निषेध गामिनी क्रिया
(ii) अष्टांगिक मार्ग :- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प,सम्यक वाणी,  सम्यक कर्मात, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक समाधि।
(iii) मनुष्य को मध्यम मार्गी होना चाहिए।
(iv) मनुष्य को अहिंसा का पालन करना चाहिए।
(v) जातिवाद यज्ञ परंपरा आदि में अविश्वास रखना चाहिए।


[ 18 ] महावीर के उपदेशों का वर्णन करें।

Ans :- महावीर जैन की शिक्षाएं बड़ी सरल तथा सादा है यह कर्म उच्च आदर्शों तथा आवागमन के सिद्धांतों पर आधारित है इनमें अहिंसा तपस्या त्रिरत्न पर विशेष बल दिया गया है संक्षेप में इनके मुख्य सिद्धांत इस प्रकार हैं –

(A) त्रिरत्न :- जैन धर्म में 3 रत्नों के पालन पर जोर दिया गया है-
(i) सम्यक विश्वास
(ii) सम्यक ज्ञान
(iii) सम्यक आचरण

(B) पांच महाव्रत :- महावीर स्वामी ने गृहस्थो को जीवन को पवित्र बनाने के लिए पांच महाव्रत बताए हैं। सत्य, अहिंसा, असत्ये अपरिग्रह, ब्रह्माचार्य।

(C) 24 तीर्थंकरों की पूजा :- जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों की पूजा का विधान है जैन धर्म के अनुयाई इनमें अटूट विश्वास तथा अखंड श्रद्धा भक्ति रखते हैं।

(D) मोक्ष प्राप्ति तथा निर्वाण :- हिंदू एवं बौद्ध धर्म की भांति जैन धर्म में भी मोक्ष प्राप्ति अथवा निर्वाण को जीवन का चरम लक्ष्य माना गया है।


[ 19 ] गोपुरम से आप क्या समझते हैं?

Ans :- गोपुरम मंदिरों के प्रवेश द्वार को कहा जाता है विजयनगर शासकों ने मंदिर में गोपुरम का निर्माण करवाया यह अत्यधिक विशाल एवं ऊंचे होते थे। यह संभवत सम्राट की ताकत की याद दिलाती है। जो ऊंची मीनार बनाने में सक्षम होती है।


[ 20 ] गांधार शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Ans :- कुंशाल काल में गंधार क्षेत्र में मूर्ति कला की नई शैली का विकास हुआ। इसलिए इसे गांधार कला के नाम से जाना जाता है। गांधार कला के अंतर्गत बुध और बोधिसत्व की मूर्तियां का व्यापक पैमाने पर निर्माण किया गया था। इन मूर्तियों के निर्माण में सलेटी पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस कला में निर्मित बुध की मूर्तियां मुद्रा की दृष्टि से भारतीय हैं किंतु निर्माण शैली यूनानी है। इन मूर्तियों में बुध यूनानी देवता अपोलो की भांति बनाया गया है। मुखों और वस्तुओं का निर्माण यूनानी शैली में किया गया है। गांधार शैली में बनी मूर्तियों में बौद्ध धर्म की भावना प्रदर्शित नहीं होती है। संक्षेप में गंधार कला की विशेषताओं में मूर्तियों का विषय बौद्ध धर्म से संबंधित है लेकिन निर्माण शैली यूनानी है।


[ 21 ] सांची के स्तूप पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Ans :- सांची का स्तूप विश्व के प्रमुख सांस्कृतिक धरोहर में से एक है यह स्तूप मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक नगरी विदिशा के समीप सांची की पहाड़ी पर स्थित है। यह स्तूप आज भी अच्छी हालत में है। जबकि अन्य करीब-करीब नष्ट हो गए हैं। इस महा स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के द्वारा कराया गया था। महा स्तूप में भगवान बुध के द्वितीय स्तूप में अशोक कालीन धर्म प्रचारकों के एवं तृतीय स्तूप में बुध के दो शिस्यो सारिपुत्र एवं महामोदग्ल्यान  के प्रमुख अवशेष रखे हुए हैं। सांची के स्तूप का वर्णन लंका की बौद्ध पुस्तकें दीप वंश एवं महा वंश में मिलता है। सांची के स्तूप पर खुदे हुए लेख में बड़े बड़े अमीर एवं व्यापारिक द्वारा दिए गए दान का वर्णन मिलता है। इसी दान से सांची का स्तूप निर्मित किए गए थे।


[ 22 ] त्रिरत्न से आप क्या समझते हैं ?

Ans :- महावीर जैन के अनुसार संचित कर्मों से छुटकारा पाने के लिए तथा नए कर्मों को संचित होने से रोकने के लिए मनीष पॉल निम्नलिखित तीन रत्नों का पालन करना चाहिए।

(i) सम्यक विश्वास :- जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को असत्य अंश का परित्याग करना तथा सत्य को ग्रहण करना चाहिए इसके अतिरिक्त उन्हें 24 तीर्थ करो में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए तथा बड़ी श्रद्धा भक्ति से उनकी पूजा करनी चाहिए।

(ii) सम्यक ज्ञान :- जैनियों का विश्वास है कि संपूर्ण विश्व भौतिक एवं आध्यात्मिक अंशो से मिलकर बना है। भौतिक अंश असत्य अनित्य तथा अंधकार में है। जबकि आध्यात्मिक अंश नीति तथा प्रकाशमय है।

(iii) सम्यक आचरण :- सम्यक आचरण से अभिप्राय यह है, कि मनुष्य को इंद्रियों का दास ना बनकर सदाचार का जीवन व्यतीत करना चाहिए, और इसके लिए उसे अहिंसा सत्य तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।


[ 23 ] निर्वाण से आप क्या समझते हैं ?

Ans :- बौद्ध धर्म में जीवन का परम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति माना है। जीवन मरण चक्र से मुक्ति ही निर्वाण हैं। बौद्ध धर्म के निर्वाण का सिद्धांत वैदिक धर्म के निर्वाण के सिद्धांत से पुनः भिन्न है। वैदिक धर्म अनुसार सत्कर्म उसे व्यक्ति में निहित आत्मा परमात्मा में विलीन हो जाती है। और पूर्व जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है, अर्थात मृत्यु पर ही निर्वाण संभव है। जबकि बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण इसी जन्म में प्राप्त किया जा सकता है जबकि महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है।


[ 24 ] बुद्ध के चार आर्य सत्य का उल्लेख करें।

Ans :- महात्मा बुद्ध ने चार आर्य सत्य पर बल दिया जो निम्नलिखित है-

(i) संसार दु:खमय – महात्मा बुध के अनुसार मानव जीवन दुखों का घर है बीमारी, बुढ़ापा मृत्यु इत्यादि मानव जीवन के भीषण दु:ख है।

(ii) दु:ख समुदाय – बुद्ध के अनुसार दुखों का मूल कारण मानव जीवन ही है दुखों का मूल कारण तृष्णा है।

(iii) दु:ख निरोध – यदि मानव की तृष्णा समाप्त हो जाए तो दुखों का निवारण हो सकता है।

(iv) दु:ख निरोध का मार्ग – महात्मा बुध के अनुसार इन सांसारिक दुखों से छुटकारा पाने के लिए अष्टांगिक मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।


[ 25 ] बौद्ध संगीति का क्यों बुलाई गई है चतुर्थ बौद्ध संगीति का क्या महत्व है ?

Ans :- महात्मा बुध की मृत्यु के बाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों में मतभेद एवं आंतरिक संघर्ष शुरू हो गया था। इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए समय-समय पर बौद्ध समितियों अथवा सभाओं का आयोजन किया गया। इस प्रकार 4 संगीतियां अथवा सभा में बुलाई गई थी। इसमें चतुर्थ बौद्ध संगीति जिसका आयोजन कनिष्क के शासन काल में कश्मीर के कुंडल वन विहार में बुलाया गया था। सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इस संगीति के सभापति महान बौद्ध विद्वान अश्वघोष थे। इस संगीति के अवसर पर बौद्ध धर्म दो संप्रदाय हीनयान और महायान में विभाजित हो गया। इस संगीत के अवसर पर त्रिपिटक पर भाष्य से लिखे गए।

Inter Board Exam 2024 Objective & Subjective Question Answer

 1. Hindi 100 Marks ( हिंदी )
 2. English 100 Marks ( अंग्रेज़ी )
 3. PHYSICS ( भौतिक विज्ञान )
 4. CHEMISTRY ( रसायन विज्ञान )
 5. BIOLOGY ( जीवविज्ञान )
 6. MATHEMATICS ( गणित )
 7. GEOGRAPHY ( भूगोल )
 8. HISTORY ( इतिहास )
 9. ECONOMICS ( अर्थशास्त्र )
 10. HOME SCIENCE ( गृह विज्ञान )
 11. SANSKRIT ( संस्कृत )
 12. SOCIOLOGY ( समाज शास्‍त्र )
 13. POLITICAL SCIENCE ( राजनीति विज्ञान )
 14. PHILOSOPHY ( दर्शन शास्‍त्र )
15. PSYCHOLOGY ( मनोविज्ञान )