पाठ-7 परंपरा के मूल्यांकन ( गोधूलि भाग-2 गध खंड ) Subjective Question 2024 || Parampara ka Mulyankan Subjective Question Answer 2024

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NOTE…… बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2024 हिंदी परंपरा के मूल्यांकन का लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024 को बिहार बोर्ड के ऑफिशियल गेस पेपर से अलग करके दिया गया है यह लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर आपके मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए संभावित प्रश्न उत्तर है इसलिए इसे ज्यादा से ज्यादा याद करने की कोशिश करें तभी आपको कक्षा 10 हिंदी में अच्छे नंबर से पास हो सकेंगे।

परंपरा के मूल्यांकन ( लघु उत्तरीय प्रश्न )

Bihar board class 10 Hindi Parampara ka mulyankan subjective question

Q1. परंपरा के मूल्यांकन में साहित्य के वर्गीय आधार का विवेक लेखक क्यों महत्वपूर्ण मानता है ?

Ans :- परंपरा का मूल्यांकन में साहित्य का आधार विवेकपूर्ण है, क्योंकि इसका महत्व साहित्य से ही पता चलता है।


Q2. परंपरा का ज्ञान किन के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है और क्यों ?

Ans :- परंपरा का ज्ञान साहित्यकारों के लिए सबसे ज्यादा अवश्य है। क्योंकि इसी ज्ञान की आधार पर साहित्य का रचना करते हैं।


Q3. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभासित हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता की दृष्टि द्वारा प्रभासित होती है ?

Ans :- लेखक का मानना है, कि मानव कि चेतना का संबंध आर्थिक क्रियाकलाप पर निर्भर करता है। वह अधिक आधार पर स्वाधीनता का प्रमाण समाज से प्रस्तुत करता है।


Q4.साहित्य की परम्परा का ज्ञान किनके लिए सबसे ज्यादा आवश्यक है?

Ans :- जो लोग रूढ़ियों के अनुचर नहीं हैं, उन्हें तोड़कर, क्रांतिकारी साहित्य की रचना करना चाहते हैं तथा साहित्य युग-परिवर्तन की आकांक्षा रखते हैं, उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।


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Q5. कौन अपने सिद्धांतों को ऐतिहासिक भौतिकवाद के नाम से पुकारते हैं ?

Ans :- जो लोग वर्गविहीन शोषणमुक्त समाज की रचना कर समाज में मौलिक परिवर्तन की इच्छा रखते हैं, वे ही अपने सिद्धान्तों को ऐतिहासिक भौतिकवाद’ के नाम से पुकारते हैं।


Q6. संपत्तिशाली वर्गों की देखरेख में रचे गये साहित्य के संबंध में लेखक ने क्या कहा ?

Ans :- संपत्तिशाली वर्गों की देखरेख से निर्मित साहित्य के संबंध में लेखक । ने कहा है कि ऐसे साहित्य को भी परख कर देखना चाहिए कि यह विकासशील
वर्ग का साहित्य है या हासमान वर्ग का।


Q7. लेखक के अनुसार किस बात को बार-बार कहने में हानि नहीं है।

Ans :- लेखक के अनुसार इस बात को बार-बार कहने में हानि नहीं है कि साहित्य केवल विचारधारा नहीं है, यह विचारधारा के अतिरिक्त मनष्य के इन्द्रियबोध और उसकी भावना को भी कलात्मकता के साथ अभिव्यक्त करता है।


Q8. जाति अस्मिता का लेखक इस प्रसंग में उडने करता है और उसका क्या महत्त्व बताता है ?

Ans :- जातीय स्मिता का लेख यूनान के साहित्य में मिलते हैं। जिसका साहित्यकारों ने समाजिक शक्ति के रूप में रुस निरंकुश जार के खिलाफ प्रस्तुत किया था।


Q9. जाति और राष्ट्रीय अस्मिता ओके स्वरुप का अंतर करते हुए लेखक दोनों में क्या समानता बताता है ?

Ans :- जाति और राष्ट्रीय अस्मिता ओके स्वरुप कवि अंतर बतलाया है, कवि का ऐसा मानना है, कि समाजवाद और पूंजीवाद के द्वारा मध्य वर्गीय का स्वसन किया जाता है। जबकि दोनों में समानता क्या है। कि दोनों को साहित्य की जानकारी है।


Q10. बहू जाती है राष्ट्र की हैसियत से कोई भी देश भारत का मुकाबला क्यों नहीं कर सकता है ?

Ans :- पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जिसे बहुजातीय राष्ट्र की हैसियत से देखा जाता है। यहां धर्म जाति भाषा क्षेत्र के आधार पर बैठे हुए हैं। परंतु भारतीय संस्कृति से बंधे हुए है।


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Q11. किस तरह समाजवाद हमारे राष्ट्रीय आवश्यकता है? इस प्रसंग में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।

Ans :- भारतीय राष्ट्रीय भावना का विचार हेतु समाजवाद का होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि समाज के बिना देश का विकास संभव नहीं है।


Q12. निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वपन देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? विचार करे।

Ans :- लेखक के समापन में कवि एक ऐसा स्वप्न देखता है, कि भारत देश का परंपरा रहा है। सपनों का साकार करना इसे पूरे करने के लिए देशवासियों तथा साहित्यकारों की अहम भूमिका मानी जा सकती है।


Q13. साहित्य का कौन-सा पक्ष अपेक्षाकृत स्थायी होता है ? इस संबंध में लेखक की राय स्पष्ट करें।

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन से पवाद है। सम्बद्ध है। ‘आर्थिक जीवन के अलावा मनुष्य एक प्राणी के रूप में भी अपना दिन बिताता। है। साहित्य में उसकी बहुत-सी आदिम भावनाएँ प्रतिफलित होती हैं। ये भावनाएँ उसे प्राणिमात्र से जोड़ती हैं। डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य विचारधारा मात्र नहीं है। इसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ भी व्यंजित होती हैं। यह साहित्य का स्थायी पक्ष है।


Q14. साहित्य के निर्माण में प्रतिभा का भूमिका स्वीकार करते हुए लेखक किन खतरों से आगाह करता है ?

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य के निर्माण में प्रतिभाशाली मनुष्यों की भूमिका निर्णायक है।
प्रतिभाशाली मनुष्यों की अद्वितीय उपलब्धियों के बाद कुछ नया और उल्लेखनीय – करने की सम्भावना बनी रहती है। कला पूर्णतः निर्दोष भी नहीं होती।


Q15. “साहित्य में विकास प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती, जैसे समाज में लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य में विकास-प्रक्रिया उसी तरह सम्पन्न नहीं होती जैसे समाज में। सामाजिक विकास-क्रम में सामंती सभ्यता की अपेक्षा पूँजीवादी सभ्यता को अधिक प्रगतिशील कहा जा सकता है और पूँजीवादी सभ्यता के मुकाबले समाजवादी सभ्यता को। औद्योगिक उत्पादन और कलात्मक सौन्दर्य में बराबर बदलाव आता रहता है।


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Q16. साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। इस मत को प्रमाणित करने के लिए लेखक ने कौन-से तर्क और प्रमाण उपस्थित किए।

Ans :- साहित्य निरपेक्ष रूप से स्वाधीन नहीं होता। साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है। साहित्य में सबका हित छिपा होता है। साहित्य से देश जाग उठता है। साहित्य से गुलाम देश की आजादी के लिए करवटें बदलने लगता है। साहित्य स्वाधीनता की प्रेरणा देता है। यह साहित्य की स्वाधीनता पूर्णतः निरपेक्ष नहीं हुआ
करती वरन् सापेक्ष होती है।


Q17. किस तरह समाजवाद हमारी राष्ट्रीय आवश्यकता है ? इस प्रसंग ‘ में लेखक के विचारों पर प्रकाश डालें।

Ans :- भारत के लिए समाजवाद राष्ट्रीय आवश्यकता है।पूँजीवादी व्यवस्था में शक्ति का इतना अपव्यय होता है कि उसका कोई हिसाब नहीं है। देश के साधनों का सबसे अच्छा उपयोग समाजवादी व्यवस्था में ही संभव है। अनेक छोटे-बड़े राष्ट्र, जो भारत से ज्यादा पिछड़े हुए थे, समाजवादी व्यवस्था कायम करने के बाद पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा शक्तिशाली हो गए हैं, और उनकी प्रगति की रफ्तार किसी भी पूँजीवादी देश की अपेक्षा तेज है। भारत की राष्ट्रीय क्षमता का पूर्ण विकास समाजवादी व्यवस्था में संभव है।


Q18. परंपरा का ज्ञान किनके लिए सबसे अधिक आवश्यक है

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा ने अपने निबंध ‘परम्परा का मूल्यांकन’ में समाज, साहित्य और परम्परा के पारस्परिक संबंधों की सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक मीमांसा की है। परम्परा का ज्ञान उन लोगों-लेखकों-चिंतकों के लिए ज्यादा आवश्यक है जो – साहित्य में युग-परिवर्तन करना चाहते हैं। जो लोग लकीर के फकीर नहीं हैं, जो रूढ़ियाँ तोड़कर क्रांतिकारी साहित्य रचना चाहते हैं। उनके लिए साहित्य की परम्परा का ज्ञान सबसे ज्यादा आवश्यक है।


Q19. ‘परंपरा का मूल्यांकन’ निबंध का समापन करते हुए लेखक कैसा स्वप्न देखता है ? उसे साकार करने में परंपरा की क्या भूमिका हो सकती है ? विचार करें।

Ans :- साहित्य की परम्परा का पूर्ण ज्ञान समाजवादी व्यवस्था में ही सम्भव है। समाजवादी संस्कृति पुरानी संस्कृति से नाता नहीं तोड़ती, वह उसे आत्मसात करके आगे बढ़ती है। अभी हमारे देश की निरक्षर निर्धन जनता नए और पुराने साहित्य की महान् उपलब्धियों के ज्ञान से वंचित है। लेखक का स्वप्न है – जब भारत की जनता साक्षर होगी, साहित्य पढ़ने का उसे अवकाश होगा, सुविधा होगी, तब व्यास और वाल्मीकि के करोड़ों नए पाठक होंगे। वे अनुवाद में ही नहीं, उन्हें संस्कृत में भी पढ़ेंगे। और तब इस देश में इतने बड़े पैमाने पर सांस्कृतिक आदान-प्रदान होगा कि सुब्रह्मयम भारती की कविताएँ मूलभाषा में उत्तर भारत के लोग पढ़ेंगे और रवीन्द्रनाथ की रचनाएँ मूलभाषा में तमिलनाडु के लोग पढ़ेंगे। यहाँ की विभिन्न भाषाओं में लिखा हुआ साहित्य जातीय सीमाएँ लाँघकर सारे देश की संपत्ति बनेगा।


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Q20. राजनीतिक मूल्यों से साहित्य के मूल्य अधिक स्थायी कैसे होते हैं ?

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा के अनुसार साहित्य के मूल्य, राजनीतिक मूल्यों की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं। साहित्यकार श्रेष्ठतर जीवन मूल्यों में जीते-रचते हैं। राजनीतिक निम्नतर कार्य करने में नहीं हिचकते हैं।
साहित्यकार समाज का अगुआ होता है, तो राजनीतिज्ञ पिछलगुवा। अंग्रेज कवि टेनीसन ने लैटिन कवि वर्जिल पर एक बड़ी अच्छी कविता लिखी। इसमें उन्होंने कहा कि रोमन साम्राज्य का वैभव समाप्त हो गया पर वर्जिल के काव्य सागर की ध्वनि-तरंगें हमें आज भी सुनाई देती हैं, और हृदय को आनंद विह्वल कर देती हैं। जब ब्रिटिश साम्राज्य का कोई नामलेवा और पानीदेवा न रह जाएगा, तब शेक्सपियर, मिल्टन और शेली विश्व संस्कृति के आकाश में वैसे ही जगमगाते नजर आएँगे जैसे पहले। उनका प्रकाश पहले की अपेक्षा करोड़ों नई आँखें देखेंगी।


Q21. लेखक मानव चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते हुए भी उसकी सापेक्ष स्वाधीनता किन दृष्टांतों द्वारा प्रमाणित करता है ?

Ans :- डॉ० रामविलास शर्मा द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद मनुष्य की चेतना को आर्थिक संबंधों से प्रभावित मानते ।। हुए उसकी सापेक्ष स्वाधीनता स्वीकार करता है। आर्थिक संबंधों से प्रभावित होना एक बात है, उनके द्वारा चेतना का निर्धारित होना दूसरी बात है। भौतिकवाद का अर्थ भाग्यवाद नहीं है। यदि मनुष्य परिस्थितियों का नियामक नहीं हैं तो परिस्थितियों द्वारा अनिवार्यतः निर्धारित नहीं हो जाता। दोनों का संबंध द्वन्द्वात्मक है। साहित्य सापेक्ष रूप में स्वाधीन होता है।


Q22. व्याख्या करें।

(क) / बंगाल से / पंजाब की तुलना कीजिए तो ज्ञात हो जाएगा कि साहित्य की परंपरा का ज्ञान कहां ज्यादा है। कहां कम है। और इस न्यूनाधिक ज्ञान के सामाजिक परिणाम क्या होते हैं।

Ans :- प्रस्तुत पंक्तियां मातृभाषा हिंदी गोधूलि भाग 2 के कवि रामविलास शर्मा द्वारा रचित परंपरा का मूल्यांकन शीर्षक कहानी से ली गई है।
कवि के अनुसार बंगाल का विभाजन लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में सन 1905 ईसवी में हुआ था। इस विभाजन का मुख्य उद्देश्य बंगालियों के बीच फूट डालना था। परंतु बंगाली भाषा के आधार पर एक है। उन्हें अपनी परंपरा एवं संस्कृति का ज्ञान है। इन्हें क्षेत्र तथा भाषा के आधार पर अलग नहीं किया जा सकता है।
अतः कवि का ऐसा मानना है, कि जब व्यक्ति को परंपरा का ज्ञान हो जाता है, तो वह अपने राष्ट्रपति संस्कृति से जुड़ जाते हैं।


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