Geography Class 12th ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) 2024 Bihar Board ( 15 Marks ) PART- 5

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Geography :- दोस्तों आज के इस पोस्ट में कक्षा 12 भूगोल ( Geography  ) का महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया हुआ है। दोस्तों यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा में ( 15 Marks ) के पूछे जाते हैं। Geography Class 12th ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) 2024 ( 15 Marks )  तथा यह सभी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए शुरू से अंत तक दिए गए प्रश्न उत्तर को जरूर पढ़ें।

NOTE……..

दोस्तों इस पोस्ट में कक्षा 12 भूगोल का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया हुआ है जो कि आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए अति आवश्यक है और यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024  में हमेशा पूछे जा चुके हैं इसलिए इन सभी प्रश्नों पर विशेष ध्यान दें


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Q41. प्रवास के सामाजिक जनांकिकीय परिणाम क्या-क्या हैं ?

उत्तर प्रवास सामाजिक परिवर्तन में सहायक होता है। इससे विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का अंतर्मिश्रण होता है, जिससे लोगों के मानसिक स्तर का विस्तार होता है तथा संकीर्ण विचारों का अन्त होता है। यह परिवर्तन विशेष रूप से नगरीय क्षेत्रों में होता है, जहाँ मिश्रित संस्कृति का विकास होता है। इतना ही नहीं, प्रवास के माध्यम से नवीन प्रौद्योगिकियों, परिवार नियोजन, बालिका शिक्षा इत्यादि से संबंधित नये विचारों का नगरीय क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों की ओर विसरण होता है। किन्तु, ग्रामीण-नगरीय प्रवास के कारण व्यक्ति अपने परिवार से अलग हो जाता है और स्वतंत्र जीवन व्यतीत करने के क्रम में कभी-कभी गुमनामी, खिन्नता, अपराध और औषध दुरुपयोग (drugabuse) जैसी असामाजिक क्रियाओं में फंस जाता है। पुरुष बाह्य प्रवास के कारण स्त्रियाँ गाँवों में छूट जाती हैं, जिससे उनपर अतिरिक्त शारीरिक और मानसिक दबाव पड़ता है। उच्च ‘प्रशिक्षित लोगों के बाह्य प्रवास के कारण गाँव उनकी सेवाओं से बंचित रह जाता है। . मानव प्रवास उद्गम तथा गंतव्य दोनों स्थानों की जनांकिकी को भी प्रभावित करता है। यह जनसंख्या का पुनर्वितरण करता है। ग्रामीण नगरीय प्रवास नगरों में जनसंख्या की वृद्धि में योगदान देता है। यह दोनों क्षेत्रों की आयु एवं लिंग संरचना में गम्भीर असंतुलन पैदा कर देता है। नगरों में कार्यशील आयु के पुरुषों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे नगर का लिंग अनुपात काफी कम हो जाता है। इसके विपरीत गाँवों में लिंग अनुपात बढ़ जाता है तथा यहाँ आश्रित जनसंख्या (Dependant population) की अधिकता हो जाती है।

Q42. भारत के 15 प्रमख राज्यों में मानव विकास के स्तरों में किन कारणों ने भिन्नता उत्पन्न की है?

उत्तर मानव विकास सूचकांक की दृष्टि से विश्व के 172 देशों में भारत का स्थान 127वाँ है और इसे मध्यम मानव विकास दर्शाने वाले देशों में रखा गया है। भारत के विभिन्न राज्यों में भी मानव विकास के स्तरों में भिन्नता पायी जाती है। भारत के योजना आयोग ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मानव विकास सूचकांक का परिकलन किया है।
                                                                              इसके अनुसार 0.638 संयुक्त सूचकांक मूल्य के साथ केरल कोटिक्रम में सर्वोच्च है। इसके बाद क्रमशः पंजाब, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और हरियाणा (सभी 0.5 से अधिक) आते हैं। दूसरी ओर, देश के 15 प्रमुख राज्यों में बिहार (0.367) का स्थान सबसे नीचे हैं। बिहार के अतिरिक्त, असम, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और उड़ीसा (0.386 से 0.404) भी कोटिक्रम में नीचे हैं। भारत में मानव विकास के स्तरों में प्रादेशिक भिन्नता के कई कारण हैं, जिनमें साक्षरता, आर्थिक विकास और उपनिवेशकाल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ मुख्य हैं। केरल भारत का सबसे अधिक साक्षर (90.92%) राज्य हैं। इसी प्रकार पंजाब (69.68%), तमिलनाडु (73.47%), महाराष्ट्र (77.27%) और हरियाणा (68.59%) भी अधिक साक्षर राज्य हैं। साक्षरता के उच्च स्तर मानव विकास सूचकांक के उच्च स्तर के कारण हैं। दूसरी ओर, बिहार में कुल साक्षरता दर भारत के सभी राज्यों से निम्न (47.53%) है और यह मानव विकास में भी निम्नतम स्तर पर है। मानव विकास के निम्न स्तर वाले अन्य राज्य असम (64.28%), उत्तरप्रदेश (57.36%), मध्यप्रदेश (64.11%) और उड़ीसा (63.61%) में भी साक्षरता का स्तर निम्न है। इन निम्न स्तर वाले राज्यों में पुरुष और स्त्री साक्षरता के बीच अधिक अंतर है। इसी प्रकार, आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में मानव विकास सूचकांक का मूल्य असम, बिहार, मध्यप्रदेश जैसे पिछड़े राज्यों की तुलना में ऊँचा है। उपनिवेश काल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ अब भी भारत की अर्थव्यवस्था और समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

Geography Class 12th ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) 2024 ( 15 Marks ) PART- 5

Q43. सेवा सेक्टर (ततीयक व्यवसाय) क्या है?

उत्तर तृतीयक व्यवसाय वह क्रियाकलाप है जो किसी मूर्तवस्तु का उत्पादन न कर केवल सेवा प्रदान करता है। इसमें मिस्त्री, प्लंबर, रसोइया, वकील, शिक्षक आदि के व्यवसाय सम्मिलित है। व्यापार, परिवहन, संचार और सेवाएँ कुछ अन्य तृतीयक कार्यकलाप हैं।
वास्तव में, तृतीयक सेवाएँ हैं, जिनके प्रमुख वर्ग निम्नलिखित हैं
(i)वाणिज्यिक सेवाएँ-विज्ञापन, कानूनी सेवाएँ, जन-संपर्क और परामर्श,
(ii) वित्त, बीमा, भूमि और भवन जैसी अचल संपत्ति का क्रय-विक्रय,
(iii)उत्पादक और उपभोक्ता को जोड़ने वाले थोक और फुटकर व्यापार, रख-रखाव, सौंदर्य प्रसाधक तथा मरम्मत के कार्य जैसी सेवाएँ,
(iv)परिवहन और संचार-रेल, सड़क, जहाज, वायुयान, डाक-तार सेवाएँ,
(v) मनोरंजन – रेडियो, दूरदर्शन, फिल्म और साहित्य,
(vi)  विभिन्न स्तरीय प्रशासन अधिकारी, पुलिस, सेना तथा अन्य जन-सेवाएँ और,
(vii) लाभ रहित सामाजिक कार्यकलाप-शिशु चिकित्सा, पर्यावरण, ग्रामीण विकास आदि से जुड़े संगठन।

Q44. उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? इन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है? ‘

उत्तर 1991 में भारत में अभूतपूर्व आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था, विदेशी मुद्रा का भंडार समाप्त हो रहा था, नये ऋण नहीं मिल रहे थे और विदेशी निवेश वापस होने लगे थे। इन समस्याओं के समाधान के लिए जुलाई, 1991 में नई आर्थिक नीति लागू की गई, जिसके अन्तर्गत नई औद्योगिक नीति भी लागू हुई। इस नीति के तीन मुख्य लक्ष्य हैं उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (भू-मंडलीकरण)।
(i) उदारीकरण (Liberatisation) उदारीकरण आर्थिक विकास की एक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा उद्योगों और व्यापार को लालफीताशाही के अनावश्यक प्रतिबंध से मुक्त किया जाता . है। इसके अन्तर्गत 6 उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसेंस से मुक्त कर दिया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र में घाटे में चलने वाले कुछ उद्योगों को निजी क्षेत्र में दे दिया गया है तथा कुछ उद्योगों के शेयर वित्तीय संस्थाओं, सामान्य जनता और कामगारों को दिये गये, विदेशी पूंजी निवेश पर से प्रतिबंध हटाया गया, विदेशी तकनीक के प्रवेश का उदारीकरण हुआ और औद्योगिक स्थानीयकरण में भी उदारता प्रदान की गई। इससे उद्योगों को बड़ा लाभ हुआ।
(ii) निजीकरण (Privatisation) निजीकरण का अर्थ है देश के अधिकतर उद्योगों के स्वामित्व, नियंत्रण तथा प्रबंध का निजी क्षेत्र में किया जाना। इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की प्राथमिकता को खत्म कर दिया गया और निजी क्षेत्र को महत्त्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई। सार्वजनिक क्षेत्र में मजबूरन कुछ अलाभकारी उद्योगों को
लेना पड़ा।
(iii) वैश्वीकरण (Globalisation) वैश्वीकरण का अर्थ मुक्त व्यापार तथा पंजी और श्रम की मुक्त गतिशीलता द्वारा देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकत करना है। दूसरे शब्दों में, विदेशी पूँजी निवेश तथा विदेशी व्यापार को (आयात निर्यात के बंधों को यथासंभव समाप्त करके) प्रोत्साहित करना है। भारत में इस नीति के अंतर्गत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए अर्थव्यवस्था को खोला गया, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को खत्म किया गया तथा भारतीय कंपनियों को विदेशी कंपनियों के पास उद्योगों का तो विकास हुआ, किन्तु विकसित और विकासशील राज्यों के बीच अंतर बहुत बढ़ गया है। उदाहरणस्वरूप 1991-2000 में कल औद्योगिक में विकसित महाराष्ट्र के लिए, 17% गुजरात के लिए, 7% आंध्रप्रदेश का 23% औद्योगिक रूप से विकसित महाराष्ट्र के लिए जबकि सबसे अधिक जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के लिए केवल 8% और 7 उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए केवल 1% था वास्तव में आर्थिक रूप से कमजोर राज्य खुले बाजार में औद्योगिक निवेश को आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं

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Q45.चतुर्थक क्रियाकलापों का विवरण दें

उत्तर चतुर्थ क्रियाकलाप ज्ञान से संबंधित क्रियाकलापों जैसे शिक्षा सूचना शोध और विकास की सेवा का एक विशिष्ट वर्ग है चतुर्थ क्रियाकलाप से तात्पर्य उन उच्च बौद्धिक व्यवसायियों से है जिनका दायित्व चिंतन तथा शोध और विकास के लिए नए विचार देना है इस वर्ग की विशेषता लोगों का उच्च वेतनमान और पदोन्नति के लिए उनका बहुत अधिक गतिशील होना है चतुर्थक क्रियाकलापों में से कुछ निम्नलिखित है सूचना का ग्रहण उत्पादन और प्रकीर्णन अथवा सूचना का उत्पादन भी चतुर्थ क्रियाकलाप अनुसंधान और विकास पर केंद्रित होते हैं और विशिष्ट कृत ज्ञान प्रौद्योगिकी कुशलता और प्रशासकीय समर्थ से संबंध सेवाओं के उन्नत नमूने के रूप में  देखे जाते हैं चतुर्थ क्रियाकलाप वास्तव में सेवाओं का विकसित और उन्नत रूप है चतुर्थक क्रियाकलापों को बाहर स्त्रोतन  के माध्यम से भी किया जा सकता है

Q46. भारत में जलप्रदूषण के कारणों और परिणामों का वर्णन करें। अथवा, भारत की गंगा और यमुना दो सर्वाधिक प्रदूषित नदियाँ हैं। कैसे? इस कथन का परीक्षण करें।

उत्तर प्राकृतिक या मानवीय क्रियाओं के फलस्वरूप जल की गुणवत्ता में हुए निम्नीकरण को जल-प्रदूषण कहा जाता है, जो आहार, मानव तथा अन्य जीवों के स्वास्थ्य, कृषि, मछली पालन या मनोरंजन के लिए अनुपयुक्त या खतरनाक होते हैं। भारत में जनसंख्या की वृद्धि तथा औद्योगिक विस्तार के कारण जल के अविवेकपूर्ण उपयोग से नदियों, नहरों, झीलों तथा
तालाबों में जल की गुणवत्ता में बहुत अधिकं निम्नीकरण हुआ है। इनमें निलंबित कण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ अधिक मात्रा में समाहित हो गये हैं, जल में स्वतः शुद्धिकरण की क्षमता नहीं रह गयी है और यह उपयोग के योग्य नहीं रह गया है। जल प्रदूषण प्राकृतिक (अपरदन, भूस्खलन, पेड़-पौधे और मृत पशु के सड़ने-गलने) और मानवीय (कृषि, उद्योग और सांस्कृतिक गतिविधि) स्रोतों से होता है। इनमें उद्योग सबसे बड़ा प्रदूषक है।
                                           उद्योगों के अवांछनीय उत्पाद जैसे औद्योगिक कचरा, प्रदूषित अपशिष्ट जल, जहरीली गैसें, रासायनिक अवशेष इत्यादि बहते जल या झीलों में बहा दिये जाते हैं, जिससे जल प्रदूषित हो जाता है। चमड़ा उद्योग, कागज और लुग्दी उद्योग, वस्त्र तथा रसायन उद्योग सर्वाधिक जल-प्रदूषक हैं। कानपुर और मोकामा का चमड़ा उद्योग गंगा को और दिल्ली का विविध औद्योगिक कचरा यमुना को प्रदूषित कर रहा है। इसी प्रकार कृषि में अकार्बनिक उर्वरक, कीटनाशक इत्यादि के उपयोग से भी जल-प्रदूषण होता है । ये प्रदूषक जल के साथ भू-जल तक पहुँच जाते हैं और धरातलीय जल के साथ-साथ भूमिगत जल को भी प्रदूषित कर देते हैं। घरेलू कचरा और अपशिष्ट तथा लाशों के विसर्जन से भी जल-प्रदूषण होता है। कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना तथा माता के घरेलू कचरे गंगा और हुगली को तथा दिल्ली का घरेलू कचरा यमुना को प्रदूषित रहे हैं। दिल्ली के निकट यमुना में 17 खुले नाले मल-जल डालते हैं। इसके अतिरिक्त धार्मिक मेलों, पर्यटन इत्यादि.सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण भी जल प्रदूषित होता है।
“जल प्रदूषण से विभिन्न प्रकार की जल-जनित बीमारियाँ, जैसे—दस्त, आँतों की कृमि, होगडटिस इत्यादि होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग एक चौथाई संचारी बीमारी जल-जनित होती है।

Q47. भारत में भू-संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी हैं? उनका निदान कैसे किया जाए?
उत्तर भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए भू-संसाधन की महत्ता अधिक है, किन्तु देश के भू-संसाधन अनेक पर्यावरणीय समस्याओं से भरे हैं, जिनमें कृषि भूमि की गुणवत्ता का निम्नीकरण, प्राकृतिक आपदा, मिट्टी अपरदन, जल जमाव, लवणीकरण इत्यादि मुख्य हैं। इन समस्याओं का समाधान करके कृषि का विकास किया जा सकता है।
(I) कृषियोग्य भूमि का निम्नीकरण (Degradation)जनसंख्या की अधिकता के | कारण भारतीय कृषि भूमि का लगातार उपयोग हो रहा है, जिससे इसकी गुणवत्ता का ह्रास हुआ है और उर्वरता कम हो गई है। इसका समाधान फसल बदलकर और कुछ समय के लिए खेत को परती छोड़कर किया जा सकता है।
(ii) प्राकृतिक आपदा (Natural Calamity) भारतीय कृषि क्षेत्र का एक तिहाई भाग ही सिंचित है। इतने बड़े देश में एक ओर कुछ क्षेत्र वर्षाऋतु में बाढ़ से प्रभावित रहते हैं, तो दूसरे क्षत्र सूखा ग्रस्त। सखा और बाढ भारतीय कृषि के जुड़वा संकट हैं। उचित जल प्रबंधन द्वारा नहरों आर नलकूपों का निर्माण करके इस समस्या का समाधान हो
 सकता है।
(iii) मिट्टी अपरदन (Soil Erosion) भारत में बड़े पैमाने पर मैदानी भागों में सतही अपरदन और पर्वतीय और पठारी भागों में अवनालिका अपरदन से मिट्टी का ऊपरी उपजाऊ तत्त्व कर अन्यत्र चला जाता है और पथरीली अनुपजाऊ भूमि सतह परं आ जाती है। खेतों के किनारे बनाना और वृक्षारोपण तथा पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीनुमा खेती
करके इसका समाधान हो सकता है।
(iv) जल-जमाव (Water logging) निकास के अभाव में कृषि भूमि का एक बहुत बड़ा भाग जलजमाव वाष्पीकरण लवणता और मृदा क्षारता  के कारण बंजर हो चुका है।  जल निकास का प्रबंध करके इसका समाधान किया जा सकता है।
(v) कीटनाशक रसायनों का अत्यधिक प्रयोग (Over-use of pesticides)इससे मृदा परिच्छेदिका में जहरीले तत्त्वों का सांद्रण हो गया है और भूमि में पुनः उर्वरकता पाने की प्राकृतिक प्रक्रिया अवरुद्ध हो गई है। जैविक खाद का प्रयोग इसका समाधान है। – कृषि तथा बंजर भूमि की अधिकता, भूमि पर आधिपत्य में असमानता, छोटे खेत और विखंडित जोत, वित्तीय संस्थाओं की बाध्यताएँ एवं ऋणग्रस्तता, वाणिज्यीकरण का अभाव और अधिसंरचना की कमी अन्य समस्याएँ हैं।

Q48. भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइये।

उत्तर भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की गुणवत्ता तथा उत्पादकता में कमी है। इसे “भूमि विकृति” भी कहते हैं। भू-निम्नीकरण दो प्रक्रियाओं द्वारा होता है—प्राकृतिक एवं मानव जनित। प्राकृतिक कारकों द्वारा विकृत भूमि प्राकृतिक खड्ड, रेतीली भूमि. बंजर चट्टानी क्षेत्र, तीव्र ढाल वाली और हिमानीकृत भूमि है। प्राकृतिक और  मानवीय कारकों द्वारा विकृत भूमि में जल-जमाव और दलदलीय क्षेत्र, लवणता और क्षारता से प्रभावित तथा झाडियों सहित या रहित भूमि शामिल है। भारत में सकल कृषि रहित भूमि 17.98% है, जिनमें 2.18% बंजर और कृषि अयोग्य बंजर तथा 15.8 % निम्नीकृत है। निम्नीकृत भूमि प्रकृति जनित 2.4%, प्रकृति एवं मानव जनित 7.5% और मानव जनित 5.88% है।

भू-निम्नीकरण को कई उपायों से कम किया जा सकता है

(i) जल संभरण प्रबंधनयह कार्यक्रम भूमि, जल तथा वनस्पतियों के बीच संबद्धता को पहचानकर प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन एवं सामुदायिक सहभागिता से लोगों की आजीविका को सुधारता है। यह निम्नीकरण को रोकने तथा भूमि की गुणवत्ता को सुधारने में सफल सिद्ध होगा। इस कार्यक्रम ने अकेले झबुआ जिले (मध्य प्रदेश) की लगभग 20% भूमि
का उपचार किया है और उन्हें दलदल, जल-जमाव, लवणता और क्षारता से छुटकारा दिलाया है।
(ii) चारागाह प्रबंधन एवं वन रोपणचारागाह भूमि और अन्य व्यर्थ भूमि पर चारा लगाकर भूमि का उपयोग बढ़ाया जा सकता है। पर्वतीय ढालों पर वनरोपण द्वारा भूमि अपरदन को कम किया जा सकता है।
(iii) जैविक खाद का प्रयोग किसानों को जैविक खाद के महत्त्व तथा रासायनिक पदार्थों के उचित उपयोग के बारे में प्रशिक्षण देना चाहिए। सड़ी-गली सब्जियों और फलों तथा पशुओं | के मल-मूत्र को उचित प्रोद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तन किया जा सकता है।
(iv) गंदे पानी का उपचार और उपयोग नगरीय तथा औद्योगिक गंदे पानी को साफ करके सिंचाई के लिए प्रयोग करना चाहिए।
(v) नगरों के ठोस एवं तरल अपशिष्ट का प्रबंधनगंदी बस्तियों के लोगों को सुलभ शौचालय की सुविधा देकर भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है। प्लास्टिक के बने पदाथा को जल के प्रवाह में नहीं जाने दिया जाए। इससे जल और भूमि दोनों का प्रदूषण कम होगा।

Q49. भारत में जलविद्युत-शक्ति के विकास की आवश्यक दशाओं का वर्णन करें।

उत्तर जलविद्युत उत्पादन के लिए कुछ विशेष भौगोलिक दशाओं का होना आवश्यक है। भारत में इसके लिए भौतिक और आर्थिक दोनों ही दशाएँ अनुकूल हैं। ये आवश्यक भौगोलिक दशाएँ निम्नलिखित हैं
(i) पर्याप्त जल मिलना भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों, हिमालय के पर्वतीय भाग तथा नीघाट पर्वत में पर्याप्त वर्षा होती है और नदियों में सालों भर पानी भरा रहता है। हिमालय निकलनेवाली नदियाँ बड़ी-बड़ी हैं, जिन्हें सहायक नदियों से भी जल मिलता है।
(ii) जल का निरंतर प्रवाहित होते रहना जल के निरंतर प्रवाहित होने से पनबिजली का पाटन सालों भर होता है। भारत में हिमालय से निकलनेवाली नदियाँ सदा प्रवाही हैं, क्योंकि इन्हें ी में बर्फ के पिघलने से जल मिलता है। यह सुविधा दक्षिण की पठारी नदियों में नहीं है, फिर भी वहाँ बाँध और विशाल जलाशय बनाकर उनमें वर्षाकालीन जल एकत्रित
कर जलाभाव की पर्ति की जा सकती है।
(iii) जल का तीव्र वेग से गिरना भारत में जल-वेग के लिए आदर्श स्थिति मिलती है। देश के पर्वतीय और पठारी भागों में जल तीव्र गति से बहता है और अनेक जलप्रपात पाये जाते हैं। इससे जल-विद्युत का उत्पादन सरल हो जाता है। इसके अतिरिक्त बहुउद्देशीय योजनाओं के अंतर्गत कृत्रिम बाँध बनाकर भी जल को तीव्र गति से गिराया जाता है।
(iv) विद्युत की माँग का व्यापक क्षेत्रभारत में जल-विद्युत् का बाजार काफी विस्तृत है। यह एक विकासशील देश है, जहाँ घरेलू उपयोग के अतिरिक्त कृषि-मशीन, औद्योगिक मशीन, रेलगाड़ी इत्यादि में जलविद्युत की माँग दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
(v) शक्ति के अन्य साधनों का अभाव भारत में कोयला, पेट्रोलियम इत्यादि शक्ति के साधन सीमित क्षेत्रों में उपलब्ध हैं। उत्तर-पश्चिमी और दक्षिणी भारत में आर्थिक विकास के लिए जलविद्युत का विकास लाभप्रद होगा।
(vi) तकनीक एवं पूँजी भारत में जलविद्युत के विकास के लिए उपर्युक्त तकनीक और पर्याप्त पूँजी भी उपलब्ध हैं।

Q50. भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर साधारणतयां नगरीय जीवन को सुख और सुविधा संपन्न तथा रोजगार के अवसर के उपयुक्त माना जाता है। इसके विपरीत गाँवों में सुविधाओं और रोजगार के अवसर की कमी रहती है। इस कारण अधिकाधिक संख्या में लोगों का गाँवों से नगरों की ओर प्रवास होता है। अत्यधिक और अनियंत्रित ग्रामीण-नगरीय प्रवास के कारण नगरीय सेवाओं और सुविधाओं पर अत्यधिक बोझ पड़ता है, जिसके कारण नगर के भीतरी भाग में भूमि की कीमत बढ़ जाती है और गाँवों से आये हुए या कम आय वाले लोग जहाँ-तहाँ झुग्गी-झोपड़ियों और गंदी-बस्तियों का निर्माण करते हैं। ये गंदी या मलीन बस्तियाँ समस्याओं के महाजाल में फंसी रहती हैं। भारत के जनगणना विभाग के अनुसार भारत के 607 नगरों में  झुग्गी-झोपड़ियाँ हैं, जिनमें 4 करोड़ लोग या कुल नगरीय जनसंख्या का 23.6% रहती है। यह देश की कुल जनसंख्या का 4% है। महाराष्ट्र की 6% और मुम्बई की 49% जनसंख्या झुग्गियों में रहती है, जहाँ धारावी एशिया की विशालतम गंदी बस्ती है।
                                               गंदी बस्तियों के अन्तर्गत झुग्गी और झोपड़पट्टी के अतिरिक्त नगर के पुराने घने आबाद क्षेत्र तथा अनियोजित नये बसे क्षेत्र आते हैं। भारत की गंदी बस्तियाँ न्यूनतम वांछित आवासीय क्षेत्र होते हैं, जहाँ जीर्ण-शीर्ण मकान, स्वास्थ्य की निम्नतम सुविधाएँ, खुली हवा, पेयजल, प्रकाश तथा शौच सुविधाओं जैसी आधारभूत सुविधाओं का अभाव पाया जाता है। यह क्षेत्र बहुत ही भाड़-भाड़, पतली सकरी गलियों और खुले नालों वाला होता है। यहाँ के लोग कम वेतन वाले मसगठित क्षेत्र में काम करते हैं, अतः ये अल्प पोषित होते हैं और बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। यह अपने बच्चों के लिए उचित शिक्षा का खर्च वह नहीं कर सकते हैं गरीबी के कारण ये नशीली दवाओं, शराब, अपराध, गुंडागर्दी, कुरीति आदि का शिकार हो जाते हैं

बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल का लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024

S.N  भूगोल ( लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 20 Marks 
1 Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6
7. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 7
8. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 8