Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) Question Answer 2024 ( 15 Marks ) | PART – 3

दोस्तों अगर आप बिहार बोर्ड के छात्र हैं। और कक्षा 12वीं की तैयारी कर रहे हैं। तथा अभी तक आप कक्षा 12 भूगोल का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को नहीं पढ़े हैं। Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 2024 | PART – 3 तो इस पोस्ट में कक्षा 12 भूगोल का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया गया है। class 12 geography question answer in hindi 2024 जो आपके परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सभी प्रश्न आपके इंटर बोर्ड परीक्षा में पूछे जा चुके हैं इसलिए इस प्रश्न को शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें।

NOTE……..

दोस्तों इस पोस्ट में कक्षा 12 भूगोल का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया हुआ है जो कि आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए अति आवश्यक है और यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024  में हमेशा पूछे जा चुके हैं इसलिए इन सभी प्रश्नों पर विशेष ध्यान दें


Class 12th Geography ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 2024 | PART – 3

Q21. भारत में गेहूँ की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर गेहूँ उत्पादन की उपयुक्त भौगोलिक दशाएँ गेहूँ शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। अतः इसकी खेती मुख्यतः कर्करेखा के उत्तर पश्चिमोत्तर भारत में होती है। गेहूँ को बोते समय 10° से 15° से ग्रेड तथा पकते समय 20° से 30° सेग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। इसके लिए 50 से 75 सेमी० वर्षा. उपयुक्त होती है। वर्षा के अभाव में सिंचाई का समुचित प्रबंध अनिवार्य हो जाता है। फसल पकते समय तेज धूप एवं शुष्क ताप आवश्यक है। गेहूँ की खेती किसी भी मिट्टी में हो सकती है, किन्तु हल्की दोमट मिट्टी तथा काली मिट्टी गेहूँ के लिए उपयुक्त मानी जाती है। गेहूँ की खेती में भी कुशल श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, किन्तु अब पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टर से जुताई तथा धैसर से दमाही होने लगी है। अब बिहार में भी इसका प्रयोग होने लगा है। भारत में गेहूँ रब्बी की फसल है। इसकी बुआई नवम्बर-दिसम्बर में होती है तथा मार्च-अप्रैल में काट ली जाती है। इस अवधि में ही भारत में गेहूँ उत्पादन की उपयुक्त दशा मिलती है। इसकी खेती में अधिक वर्षा और अधिक तापमान नुकसानदेह है। इसी कारण बंगाल-असम के महत्त्वपूर्ण धान क्षेत्र गेहूँ के प्रमुख क्षेत्र नहीं बन पाये हैं।


Q22. भारत में गेहूँ के उत्पादन क्षेत्र (वितरण) का वर्णन कीजिए।

उत्तर भारत में गेहूँ की खेती मुख्यतः सतलज के मैदान, ऊपरी और मध्य गंगा के मैदान तथा मध्यवर्ती भारत में होती है। इसके प्रमुख उत्पादक राज्य निम्नलिखित हैं

1. उत्तर प्रदेश इस राज्य में कुल कृषि भूमि के 23% क्षेत्र पर गेहूँ बोया जाता है। यह प्रदेश देश का 30% गेहूँ उत्पादित करता है। गंगा-यमुना दोआब तथा गंगा-घाघरा क्षेत्र गेहू का ऊपज के लिए प्रसिद्ध है। वैसे पठारी भागों को छोड़कर समस्त भू-भाग में गेहूँ की खेती की जाती है। मेरठ, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, इटावा, कानपुर, आगरा,
अलीगढ़ प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

2. पंजाब इस राज्य में कुल कृषि भूमि के 12.5% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। यह कुल राष्ट्रीय उत्पादन का 24% गेहूँ उत्पन्न करता है। यहाँ नहरों द्वारा सिंचाई की सुविधा है। अमृतसर, लुधियाना, पटियाला, जालंधर, फिरोजपुर इत्यादि मुख्य उत्पादक जिले हैं।
3. हरियाणा ⇒ इस राज्य की कुल कृषि भूमि के 6.17% भाग पर गेहूँ की खेती की जाती है। मुख्य उत्पादक जिले रोहतक, हिसार, गुड़गाँव, करनाल व जिन्द हैं। दक्षिणी-पूर्वी जिलों की जलवायु शुष्क है, लेकिन नहरों के विकास के कारण गेहूँ का उत्पादन बढ़ गया है।
4. मध्यप्रदेश ⇒ राज्य की कृषि भूमि के 17.7% क्षेत्र पर गेहूँ उगाया जाता है तथा यह पूरे देश का 12% गेहूँ प्रदान करता है। देश में इसका चौथा स्थान है। होशंगाबाद, सागर, ग्वालियर, नीमाढ़, उज्जैन, देवास, भोपाल और जबलपुर मुख्य उत्पादक जिले हैं। उपर्युक्त राज्यों के अलावा पूर्वी राजस्थान व विहार में गेहूँ का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। दक्षिण भारत में
महाराष्ट्र व गुजरात के लावा मिट्टी प्रदेश व तमिलनाडु के मदुराई क्षेत्र में गेहूँ का उत्पादन उल्लेखनीय है।


Q23. हरित क्रांति की व्याख्या करें। (Explain green revolution.)

उत्तर 1960 के दशक में भारत में खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि के लिए अपनायी गयी नीति को “हरित क्रांति” कहते हैं। वास्तव में, इस काल में अधिक उत्पादन देने वाली (HYV) गेहूँ (मैक्सिको) और चावल (फिलिपींस) की किस्मों को पैकेज प्रौद्योगिकी के रूप में पंजाब, : हरियाणा, पश्चिम उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश तथा गुजरात के सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में, रासायनिक खाद के साथ अपनाया गया। इस प्रौद्योगिकी की सफलता हेतु सिंचाई से निश्चित जल आपूर्ति अपेक्षित थी। हरित क्रांति ने कृषि में प्रयुक्त कृषि निवेश, जैसे—उर्वरक, कीटनाशक, कृषि यंत्र आदि कृषि आधारित उद्योगों तथा छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास को प्रोत्साहन दिया। कृषि विकास की इस नीति से देश खाद्यान्नों के उत्पादन में आत्म-निर्भर हुआ। लेकिन प्रारंभ में विशेषकर 1970 के दशक के अन्त तक “हरित क्रांति” देश में सिंचित भागों तक ही सीमित थी; इसके पश्चात् यह प्रौद्योगिकी मध्य भारत तथा पूर्वी भारत में फैली। हरित क्रांति का दूरगामी प्रभाव यह हआ कि रासायनिक खाद और अधिक सिंचाई के कारण प भूमि का निम्नीकरण हआ और उत्पादन में कमी होने लगी।


Q24. भारत में सिंचाई की आवश्यकता है। क्यों?

उत्तर भारत एक कृषिप्रधान देश है। यहाँ की जलवायु मानसूनी है, अतः यहाँ कृषि की सफलता बहत हद तक सिंचाई की समचित व्यवस्था पर निर्भर है। टूवालयन के शब्दों में “भारत में सिंचाई ही सब कुछ है। पानी भूमि से अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि जब भूमि में पानी दिया जाता है, तब भूमि की उर्वराशक्ति कम-से-कम छ: गुना बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, पानी ऐसी भूमि को भी बहुत अधिक मात्रा में उत्पादक बना देता है, जो उसके अभाव में *कुछ भी उत्पादन नहीं कर सकती थी।” इसी महत्त्व को स्वीकार करते हुए कहा गया है कि “भारत में पानी सोना है” (Water in India is gold)।

भारत में सिंचाई का महत्त्व और आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

(i) अनिश्चित व अनियमित वर्षा
(ii) वर्षा का असमान वितरण
(iii) वर्षा का जल्द समाप्त हो जाना
(iv) वर्षा का मूसलाधार होना
(v) जाड़े में वर्षा का अभाव
(vi) गहन खेती करने के लिए 


Class 12 Geography Long Answer Question Answer 2024

Q25. सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि जलवायु नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें। ये कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायता करते हैं?

उत्तर सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम चौथी पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ की गई और पाँचवी योजना में इसे विस्तृत किया गया। इसका उद्देश्य सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। इसके अतिरिक्त रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए श्रम प्रधान
सार्वजनिक निर्माण कार्य, सिंचाई योजनाएँ, भूमि विकास, वन रोपण, चारागाह विकास, बिजली उत्पादन, सड़क निर्माण, विपणन, ऋण सुविधाओं और सेवाओं के विकास पर जोर दिया गया। 1967 में योजना आयोग ने 67 जिलों को सूखा संभावी जिले के रूप में पहचाना और सिंचाई आयोग ने 1972 में 30% सिंचित क्षेत्र को मापदंड मानकर सूखा संभावी
क्षेत्रों का सीमांकन किया। इन क्षेत्रों में मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, प० मध्य प्रदेश, मराठबाड़ा (महाराष्ट्र), रायलसीमा और तेलंगाना (आंध्रप्रदेश), कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि और आंतरिक भाग सम्मिलित हैं। 1981 में की गई इस योजना की समीक्षा से यह निष्कर्ष निकलता है कि यह कार्यक्रम कृषि और संबंधित सेक्टर पर विशेष ध्यान
देता है और सीमांत क्षेत्र में कृषि के विस्तार से पर्यावरण असंतुलन पैदा हो रहा है। कृषि जलवायु नियोजन कार्यक्रम-कृषि जलवाय नियोजन कषि विकास की प्रादेशिक योजना है, जिसे योजना आयोग ने प्रदेश की दृष्टि से संतुलित कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि तथा देश में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए शुरू की।
इस योजना का उद्देश्य है—सतत् पोषणीय कृषि विकास के लिए भूमि विकास और जल संचय की कार्य नीति तैयार करना, विभिन्न प्रदेशो की कृषि-जलवायु दशाओं के अनुसार फसल और गैर-फसल आधारित विकास को सुनिश्चित करना, सार्वजनिक और निजी निवेश के द्वारा भूमि जल संचय की अवसंरचना का विकास आर कृषि जलवायु प्रदेशों/उप-प्रदेशों
के सतत विकास के लिए संस्थागत सहायता, विपणन, कृषि प्रसंस्करण और अवसंरचना उपलब्ध कराना। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पूरे देश को उच्चावच और जलवायु के आधार पर 15 बड़े प्रदेशों और उच्चावच तथा वर्तमान फसल प्रतिरूपों के आधार पर 127 उपप्रदेशों में विभाजित किया गया। प्रशासन की सुविधा के लिए जिलों को अंतिम रूप में योजना
की इकाई के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। इन दोनों कार्यक्रमों से देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में सहायता मिली।


Q26. रोपण कृषि की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

उत्तर रोपण कृषि को बागाती या बागानी कृषि भी कहा जाता है। इसमें पौधे या बागान को एक बार रोप दिया जाता है और कई वर्षों तक उत्पाद प्राप्त किया जाता है। यह कृषि प्रणाली युरोपवासियों की देन है। इसका विकास उपनिवेशकाल में हुआ था । इस कृषि पद्धति का विकास यरोपवासियों ने उष्ण कटिबंधीय कृषि उत्पादों को प्राप्त करने के लिए किया था।
इसके लिए चाय, कॉफी, कोको, रबड़, गन्ना, केला, नारियल, कपास, अनन्नास इत्यादि की पौधा लगाई गई। फ्रांसवासियों द्वारा पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी और कोको की पौधा, ब्रिटेनवासियों द्वारा भारत और श्रीलंका में चाय, मलेशिया में रबड़, पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना एवं केले और स्पेन तथा अमेरिकावासियों द्वारा फिलीपाइंस में नारियल और गन्ने के बगान
लगाये गये। इसी प्रकार, एक समय इंडोनेशिया में गन्ने की कृषि में डचों का एकाधिकार था। आज भी ब्राजील में कुछ कॉफी के बागान (फेजेंडा) यूरोपवासियों के नियंत्रण में है। वर्तमान में अधिकतर देशों के बागान का स्वामित्त्व उन देशों की सरकार या नागरिकों के नियंत्रण में हैं।

रोपण कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) रोपण कृषि के फार्म विशाल होते हैं।
(ii) इन्हें विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है।
(iii) इसमें काफी संख्या में श्रमिकों की जरूरत पड़ती है। स्थानीय श्रमिक नहीं मिलने पर _ इन्हें अन्यत्र से. बुलाया जाता है।
(iv) फार्मों की स्थापना और चलाने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
(v) उच्च प्रबन्ध एवं तकनीकी आधार और वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
(vi) यह एक फसली कृषि है, जिसमें भौगोलिक दशाओं के अनुसार किसी एक फसल के उत्पादन पर ही संकेंद्रण किया जाता है।
(vii) सभी फसलें व्यापार के लिए उपजायी जाती हैं, अतः फार्मों को या तो समुद्रतट के निकट बनाया जाता है या बागान और बाजार को सुचारू रूप से जोड़ने के लिए सड़क या रेलमार्ग का विकास किया जाता है।
(viii) कृषि उत्पादों को पूर्ण रूप से.या आंशिक रूप से फार्मों पर ही संसाधित किया जाता है।
(ix) इसने अनेक देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है।


Q27. औद्योगिक क्रांति के धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभावों का वर्णन कीजिए।

उत्तर औद्योगिक क्रांति इंगलैंड में लगभग 1750 ई० में प्रारंभ हई । इसका तात्पर्य उद्योग के क्षेत्र में उन तीव्र परिवर्तनों से है, जो इतने प्रभावशाली थे कि उन्हें क्रांति का नाम दिया गया। इस परिवर्तन के फलस्वरूप बड़े-बड़े कारखानों में हाथ के स्थान पर मशीनों का प्रयोग होने लगा। इससे कम समय में अधिक उत्पादन होने लगा। औद्योगिक क्रांति का अच्छा और बुरा दोनों प्रभाव पड़ा अच्छा या धनात्मक प्रभाव (Good or Positive Impact)-औद्योगिक क्रांति का धनात्मक प्रभाव न केवल उद्योगों पर पड़ा, बल्कि कृषि, यातायात, संचार, व्यापार और शिक्षा भी इससे प्रभावित हुए।

(i) उद्योग पर प्रभाव (Impact on Industries उद्योगों में बड़े पैमाने पर शोध कार्य हुए . और नई-नई मशीनों का आविष्कार हआ। इससे मानव श्रम की आवश्यकता कम हुई और उत्पादन की दर और मात्रा दोनों में वृद्धि हुई।
(ii) कृषि पर प्रभाव (Immuct on Agriculture) नयी नयी मशीनों के आविष्कार के कारण खेती के लगभग सभी कार्य मशीनों से होने लगे तथा सिंचाई के साधनों का विकास हुआ। उत्तम बीज तथा रासायनिक खाद का प्रयोग भी बढ़ा। इससे कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।
(iii) यातायात पर प्रभाव (Impact on Transport) ⇒ औद्योगिक क्रांति के कारण कच्च माल तथा तैयार माल को लाने-ले जाने के लिए यातायात के तीव्र साधन यथा मोटा वाहन, रेलइंजन और डिब्बे, जलयान, वायुयान इत्यादि का विकास हुआ।
(iv) संचार पर प्रभाव (Impact on Communication) औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप तार, टेलीफोन, वायरलेस, मोबाइल, इंटरनेट इत्यादि का विकास हुआ।
(v) व्यापार पर प्रभाव (Impact on Trade) औद्योगीकरण के फलस्वरूप चीजों का उत्पादन बढ़ा, लोगों की आवश्यकता बढ़ी और यातायात तथा संचार के साधनों का विकास हुआ। इससे व्यापार के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ।
(vi) शिक्षा पर प्रभाव (Impact on Education) ⇒ शिक्षा के क्षेत्र में भी नयी-नयी तकनीक और मशीनों (प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, इंटरनेट इत्यादि) का प्रयोग होने लगा। इस प्रकार औद्योगिक क्रांति ने शिक्षा पर भी अच्छा प्रभाव छोड़ा है।

बुरा या ऋणात्मक प्रभाव (Bad or Negative Impact)

(i) बेरोजगारी (Unemployment) औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप मशीनों के प्रयोग बढ़ने से विश्व के लगभग सभी देशों में बेरोजगारी बढ़ी है।
(ii) उपनिवेशीकरण (Colonisation) पाश्चात्य विकसित देशों ने कच्चा माल के लिए एशिया के बहुत से देशों को अपना उपनिवेश बनाया, जहाँ उन्हें कच्चा माल आसानी से मिल जाता था और तैयार माल की बिक्री हो जाती थी।
(iii) औद्योगिक देशों के बीच संघर्ष (Conflict among Industrial countries) तैयार माल की बिक्री और कच्चा माल की प्राप्ति के लिए यूरोपीय और औद्योगिक देशों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा और संघर्ष ने जन्म लिया।
(iv) सैन्यवाद और शस्त्रीकरण (Militarisation and Armament) ⇒ साम्राज्यवादी देशों के बीच प्रतिस्पर्द्धा और नये-नये अस्त्र-शस्त्रों के आविष्कार ने सैन्यवाद और शस्त्रीकरण को जन्म दिया, जिसके फलस्वरूप प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध हुए।


Geography Class 12 Important Questions and Answers

Q28. उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों की विवेचना कीजिए। [2018]

उत्तर उद्योगों के स्थानीयकरण के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी हैं
(i) कच्चा-माल (Raw Materials) ⇒ सभी उद्योगों में कच्चा-माल का प्रयोग होता है, जिसे सस्ते दर पर उपलब्ध होना चाहिए। भारी वजन, सस्ते मूल्य एवं भार ह्रासमूलक कच्चा-माल पर आधारित उद्योग कच्चा-माल के स्रोत के समीप ही स्थित होते हैं, जैसे—लोहा-इस्पात, सीमेट और चीनी उद्योग।
(ii) बाजार (Markets) उद्योगों से उत्पादित माल की माँग और वहाँ के निवासियों की क्रयशक्ति को बाजार कहा जाता है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया वैश्विक बाजार हैं। द० पू० एशिया के घने बसे क्षेत्र भी व्यापक बाजार हैं। ये सभी उद्योगों की स्थापना को सहायता पहुँचाते हैं।
iii) श्रम (Labour) उद्योगों की अवस्थिति के लिए कशल एवं अकशल श्रमिक भी आवश्यक हैं। मुम्बई और अहमदाबाद के सूती वस्त्रोद्योग मुख्यतः बिहार और उत्तर प्रदेश से आये श्रमिकों पर आधारित हैं। स्विट्जरलैंड का घड़ी उद्योग और सूरत का हीरा तराशने का उद्योग कशल श्रमिकों पर आश्रित हैं।
(iv) ऊर्जा के स्रोत (Sources of power) ⇒ जिन उद्योगों में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, वे ऊर्जा के स्रोतों के समीप ही लगाये जाते हैं, जैसे पिट्सवर्ग और जमशेदपुर में लोहा-इस्पात उद्योग। आजकल विद्युत-ग्रिड द्वारा जल विद्युत और पाइपलाइन द्वारा खनिज तेल दूर तक पहुँच जाते हैं और इनके उत्पादन के समीप उद्योगों
को लगाना आवश्यक नहीं है।
(v) जल (Water) सूती वस्त्रोद्योग में कपड़ा की धुलाई, रंगाई इत्यादि के लिए तथा लोहा-इस्पात उद्योग में प्रक्रमण, भाप निर्माण और लोहे को ठंढा करने के लिए जल आवश्यक है। अतः इनकी स्थापना जल स्रोत के समीप ही होती है।
(vi) परिवहन एवं संचार (Transport and Communication) कच्चे-माल को कारखाने तक लाने और तैयार माल को बाजार तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ आवश्यक हैं। ‘. .
(vii) प्रबंधन (Management) यह जानना आवश्यक है कि उद्योग के लिए चुने गए स्थल अच्छे प्रबंधकों को आकर्षित करने योग्य हैं या नहीं।
(viii) पूँजी (Capital) यद्यपि बैंकिंग सेवाओं के माध्यम से देश के भीतर अब पूँजी अधिक गतिशील हो गई, फिर भी अशांत और खतरनाक क्षेत्र में उत्पादन अनिश्चित होता है और ये पूँजी के लिए कम आकर्षक होते हैं।
(ix) सरकारी नीति (Government Policy) ⇒ संतुलित आर्थिक विकास हेतु सरकार कुछ निश्चित क्षेत्रों में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करती है। देश के संसाधनों के प्रयोग से सर्वोत्तम लाभ के लिए भी विशिष्ट क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जाती है।
(x) पर्यावरण (Environment) उद्योगों की स्थापना, उद्योगकर्मी के रहन-सहन इत्यादि की सुविधा के लिए उपयुक्त, भूमि, जलवायु और पर्यावरण के अन्य तत्त्व आवश्यक हैं।


Q29. उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग से आप क्या समझते हैं? ये उद्योग अधिकतर देशों में प्रमुख महानगरों के परिधि क्षेत्रों में ही क्यों विकसित हो रहे हैं?

उत्तर उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग नवीनतम उद्योग है, जिसमें उन्नत वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग उत्पादों का निर्माण गहन शोध एवं विकास के प्रयोग द्वारा किया जाता है। इन उद्योगों के उत्पादों की गुणवत्ता में निरन्तर परिष्कार होता रहता है। यही कारण है कि इस उद्योग में अत्यंत कुशल, प्रशिक्षित और प्रतिभाशाली व्यक्तियों को ही काम मिलता है। इन्हें प्रायः स्वच्छंद उद्योग (Foot loose Industry) कहा जाता है; क्योंकि इनका स्थानीयकरण परंपरागत कारकों पर आधारित नहीं होता है। उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग प्रायः महानगरों के उपान्त क्षेत्र में स्थापित होते हैं। ये स्थान नगर के आंतरिक भागों की तुलना में कई प्रकार के लाभ प्रदान करते हैं –

(i) एक मंजिले कारखानों तथा भविष्य में विस्तार के लिए स्थान,
(ii) नगर-परिधि पर सस्ता भू-मूल्य,
(iii) मुख्य सड़क तथा वाहन मार्गों तक गम्यता,
(iv) प्रदूषण रहित पर्यावरण तथा हरित क्षेत्र का अतिरिक्त लाभ और,
(v) निकटवर्ती आवासीय क्षेत्रों एवं पड़ोसी ग्रामों से प्रतिदिन आने-जाने वाले लोगों से श्रम की आपूर्तिी


Q30. “संसार के अधिकांश लोहा तथा इस्पात उद्योग केंद्र समुद्रतटीय भागों में स्थित है।” इस कथन की समीक्षा करें।

उत्तर उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करने वाले तत्त्वों में कच्चा माल की उपलब्धि, ऊर्जा और यातायात के साधन महत्त्वपूर्ण हैं। लोहा तथा इस्पात उद्योग का मुख्य कच्चा माल कोयला और लौह-अयस्क है। कोयला ऊर्जा का भी एक साधन है। इस्पात निर्माण के लिए लौह-अयस्क से लगभग ढाई गुना अधिक कोयला की आवश्यकता पड़ती है। कोयला एक भारी खनिज है और इतनी अधिक मात्रा में इसे लौह-अयस्क के क्षेत्र में पहुँचाने में काफी खर्च पड़ता है और इस्पात का उत्पादन मूल्य बढ़ जाता है। अत: लोहे को कोयला क्षेत्र में पहुँचाकर लोहा तथा इस्पात उद्योग की स्थापना की जाती है। संसार के मुख्य कोयला क्षेत्र अटलांटिक, प्रशांत एवं अन्य समुद्रतटीय भागों में पाए जाते हैं।
ये ही कोयला प्रदेश लोहा तथा इस्पात के केंद्र बन गए हैं। समुद्रतटीय भाग जल यातायात के दृष्टिकोण से. भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं । समुद्री यातायात स्थलीय यातायात से काफी सस्ता और सरल है। इस कारण समुद्रतटीय भागों में स्थापित लोहा एवं इस्पात उद्योग को कच्चा माल मंगाने और तैयार माल बाजार में भेजने में काफी आसानी होती है और खर्च कम पड़ता है। यही कारण है कि संसार के अधिकांश लोहा एवं इस्पात केंद्र समुद्रतटीय भागों में स्थित हैं।

बिहार बोर्ड कक्षा 12 भूगोल का लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024

S.N  भूगोल ( लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 20 Marks 
1 Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 1
2. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 3
4. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 5
6. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 6
7. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 7
8. Geography ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 8