कक्षा 12 राजनीति विज्ञान ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 2024 ( 15 Marks ) | PART – 1

इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए यहां पर आज के इस पोस्ट में राजनीति विज्ञान ( Political Science ) का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया गया है। यह प्रश्न उत्तर इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 में ( 15 Marks ) के पूछे जाएंगे। इसलिए राजनीति विज्ञान कक्षा 12 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर को शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें।


कक्षा 12 राजनीति विज्ञान ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) 2024 ( 15 Marks ) | PART – 1

Q1. भारत के किसी एक सामाजिक आन्दोलन की विवेचना कीजिए और इसके पास उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ नर्मदा बचाओ आंदोलन मेधा पाटकर गुजरात में नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार . सरोबर बांध के निर्माण का विरोध कर रही है। उसकी माँग है कि जिन लोगों को वहाँ से हटाया जाय उन्हें कहीं और जगह देकर बसाया जाय। यह भी माँग है कि बाँध की ऊँचाई बहुत अधिक न हो। ऐसा न हो कि वह टूट जाए। यदि ऐसा हुआ तो गुजरात का काफी भाग जल-मग्न हो जायेगा। पर्यावरण संबंधी आंदोलन चलाने वाले यह भी माँग कर रहे हैं कि गंदे नालों की सफाई की जाय, मलेरिया तथा डेंगू जैसे बुखारों से बचने के लिए मच्छरों को मारा जाए, कारखानों का गंदा पानी नदियों में न छोड़ा जाए आदि। क्षेत्र में पोषणीय विकास को बढ़ावा दिया जाए।

(i) लोगों द्वारा 2003 ई० में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है।

(ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए।

(iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी मांग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ जो जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

(iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती हैं। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया।


Q2. विश्व शान्ति की स्थापना में भारत के मुख्य योगदान का वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒ भारत ने विश्व शांति की स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्व शांति । में भारत के योगदान को निम्नलिखित तरीके से स्पष्ट किया जा रहा है

विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान

1. सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the Military Alliances) − इस समय विश्व म बहुत सैनिक गुट बन रहे हैं। जैसे नाटो, सीटो सैण्टो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा ह कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शाति । अधक है। अतः भारत ने हमेशा इन सैनिक गटों की केवल आलोचना ही नहीं की बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है।

2. गानीकरण में सहायता (Support of Disarmament) − संयुक्त राष्ट्र संघ ने निशस्त्रीकरण को अधिक महत्त्व दिया है तथा इस समस्या को हल करने के लिए बहुत ही प्रयास किये ने इस समस्या का समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद की है भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की
स्थापना हो सकती है।

3. जातीय भेदभाव का विरोध − भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेद को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिणी अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाया तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है। एन. पी. टी. तथा सी० टी० बी० टी० पर हस्ताक्षर नहीं किये जाने के बावजूद अमेरिका ने भारत को शांतिपूर्ण कार्यों हेतु परमाणु कार्यक्रम चलाने की अनुमति दी तथा इसके लिए आवश्यक यूरेनियम की आपूर्ति करने का समझौता यूरेनियम आपूर्तिकर्ता देशों से करने पर सहमति हुई। यह भी निर्णय हुआ कि सामरिक दृष्टि से महत्वूर्ण परमाणु संस्थानों की निगरानी का अधिकार अमेरिका या अन्य किसी भी देश को नहीं होगा। कुछ त्रुटियों के बावजूद इस समझौते का व्यापक स्वागत किया जा रहा है। भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए इस समझौते की आवश्यकता थी।


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Q3. समानता के अधिकार की व्याख्या उन पर लगी सीमाओं के साथ करें।

उत्तर ⇒ समानता का अधिकार एक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार है जिसका वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक किया गया है। समानता का अधिकार लोकतंत्र की आधारशिला है। भारतीय संविधान में नागरिक को निम्नलिखित प्रकार की समानता प्रदान की गई है

I. कानून के समक्ष समानता (Equalitybefore Law, Art-14) − संविधान के अनुच्छेद 14 में “विधि के समझ समानता” और “कानूनों के समान संरक्षण” शब्दों का एक साथ प्रयोग किया गया है और संविधान में लिखा है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा
वंचित नहीं किया जाएगा।

कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) − इसका अर्थ यह है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं हैं। सभी व्यक्ति भले ही उनकी कुछ भी स्थिति हो, साधारण कानून के अधीन हैं और उन पर साधारण न्यायालय मेंमुकदमा चलाया जा सकता है।
कानून छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच और छुआछूत आदि से किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा।

कानून के समान संरक्षण (Euqal Protection of Law) − इसका यह अभिप्राय है कि समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाए।

अपवाद (Exceptions)-इस अधिकार के निम्नलिखित अपवाद हैं

1. विदेशी राज्यों में अध्यक्ष तथा राजदूतों के विरुद्ध भारतीय कानूनों के अन्तर्गत कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।
2. अनुच्छेद 361 के अनुसार राष्ट्रपति तथा राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उनके कार्यकाल में कोई फौजदारी मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

II. भेद-भाव की मनाही (Prohibition of Discrimination, Art. 15)-अनुच्छेद 15 के अनुसार निम्नलिखित व्यवस्था की गई है

1. राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान इनमें किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
2. दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और मनोरंजन के सार्वजनिक स्थानों पर भी जाति आदि किसी आधार पर किसी नागरिक को अयोग्य व प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।
3. उन कुओं, तालाबों, नहाने के घाटों, सड़कों व सैर के स्थानों से जिनकी राज्य की र से अंशत: या पूर्णतया देखभाल की जाती है अथवा जिनको सार्वजनिक प्रयोग के लिए दिया हो, किसी नागरिक को जाने की मनाही नहीं होगी अर्थात् सार्वजनिक स्थान भी नागरिकों के ” बिना किसी भेदभाव के खुले हैं।

अपवाद (Exceptions)-अनुच्छेद 15 में दिए गए अधिकारों के दो अपवाद हैं

1. राज्य स्त्रियों और बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है।
2. राज्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के लोगों की भलाई के लिए विशेष व्यवस्थाओं का प्रबन्ध कर सकता है।

III. सरकारी नौकरियों के लिए अवसर की समानता (Equality of Opportunity in Matter of Public Employmenth, Art 16)-अनुच्छेद 16 राज्यों में सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म-स्थान, निवास या इसमें से किसी एक के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अपवाद (Exceptions)-इस अधिकार के निम्नलिखित अपवाद हैं

1. संसद किसी राज्य या केन्द्रीय प्रदेश की सरकार या स्थानीय सरकार के अधीन किसी पद की नियुक्ति के लिए निवास सम्बन्धी योग्यताएँ निर्धारित कर सकती है।
2. सरकार पिछड़े हुए नागरिकों के लिए जिन्हें सरकारी सेवाओं में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है, स्थान सुरक्षित नहीं रख सकती है।
3. यदि कोई पद किसी धार्मिक अथवा साम्प्रदायिक संस्था से सम्बन्ध रखता है तो. अनुच्छेद 16 के क्षेत्र से बाहर माना जाएगा।

IV. छुआछत की समाप्ति (Abolition of Untouchability, Art. 17)-अनुच्छेद 17. द्वारा छुआछूत को समाप्त किया गया है। किसी भी व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना या उसको अछूत समझ कर सार्वजनिक स्थानों, होटलों, घाटों, तालाबों, कुओं, सिनेमाघरों, पार्कों तथा मनोरंजन के स्थानों के उपयोग से रोकना कानूनी
अपराध है। छुआछूत की समाप्ति एक महान् ऐतिहासिक घटना है। कानून के अन्तर्गत छुआछूत को मानने वाले और उसका प्रचार करने वाले को 2 वर्ष की कैद और 1000 रुपए तक जुर्माना किया जा सकता है। जिन व्यक्तियों को इस कानून के अन्तर्गत दण्ड दिया गया हो वे व्यक्ति संसद तथा राज्य विधानमंडलों के लिए चुनाव नहीं लड़ सकते।

v. उपाधियों की समाप्ति (Abolition of Titles, An. 18)-अनुच्छेद 18 के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि

1. सेना या शिक्षा सम्बन्धी उपाधि के अतिरिक्त राज्य कोई और उपाधि नहीं देगा।
2. भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य की कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
3. कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है परन्तु भारत में किसी लाभदायक अथवा भरात के पद पर नियुक्त है, राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना किसी विदेश से उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता है
4. कोई भी व्यक्ति जो राज्य के किसी लाभदायक पद पर विराजमान है, राष्ट्रपति का के बिना कोई भेंट, वेतन अथवा किसी प्रकार का पद विदेशी राज्य से प्राप्त नहीं कर सकता है । सरकार नागरिकों को भारत रत्न (Bharat Ratna), पद्म विभूषण (Padma Vibhushan), dima Shri) आदि उपाधियाँ देती है। जिस कारण आलोचकों का कहना था कि ये उपाधियाँ अनच्छेद 18 के साथ मेल नहीं खातीं।


Q4. राष्टीय मानवाधिकार आयोग का गठन क्यों किया गया ? इसके कार्य एवं अधिकारों का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का जब तक समाज के गरीब, पिछड़े और अशिक्षित लोगों द्वारा समान स्वतंत्र उपभोग न किया जाए, संविधान का मूल उद्देश्य ही अपूर्ण है। इसी परिप्रेक्ष्य में वर्ष 2000 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। मानवाधिकार आयोग मानव अधिकार के हनन रोकने तथा उन्हें व्यावहारिक रूप से लागू करवाने के लिए पर्याप्त कदम उठाता है। इस प्रकार मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के हनन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में एक अध्यक्ष तथा चार अन्य सदस्य होते हैं। इनकी नियुक्ति पाँच वर्ष के लिए सरकार द्वारा की जाती है। इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, उच्च न्यायालय का एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा मानवाधिकारों के सम्बन्ध में व्यावहारिक ज्ञान और अनुभव रखने वाले दो अन्य सदस्य होते हैं। आयोग को स्वयं किसी मुकदमे को सुनने का अधिकार नहीं है। यह सरकार या न्यायालय को अपनी जाँच के आधार पर मुकदमा चलाने की सिफारिश कर सकता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य एवं अधिकार- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं

1. मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायत मिलने पर उसकी जाँच-पड़ताल करना तथा सरकार को अपनी रिपोर्ट देना।
2. मानवाधिकारों की सुरक्षा से सम्बन्धित प्रावधानों की जाँच-पड़ताल करना।
3. जेलों या सुधार गृहों में बन्द व्यक्तियों की स्थिति का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सम्बन्धित सरकार को देना।
4. मानवाधिकार के क्षेत्र में हो रहे शोध कार्यों को प्रोत्साहित करना तथा विस्तारित करना।
5. मानवाधिकार से सम्बन्धित सुरक्षा प्रावधानों की जाँच-पड़ताल कर अपनी रिपोर्ट सरकार को देना।
6. न्यायालय की कोई ऐसी कार्यवाही जिसमें मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला विचाराधीन है, न्यायालय की स्वीकृति से जाँच-पड़ताल कर अपना पक्ष रखना।
7. मानवाधिकारों को लागू करने में आ रही बाधाओं का अध्ययन करना और सुझावों सहित अपनी रिपोर्ट सरकार को देना।
8. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर या मानवाधिकार के क्षेत्र में हो रहे समझौतों का अध्ययन कर उन्हें देश में लागू करवाने का प्रयास करना।


Q5. राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए।

उत्तर ⇒ प्रस्तावना (Introduction) − अनेक वर्षों की अधीनता के बाद स्वतंत्र भारत के नियोजन को अपनाने का निर्णय लिया गया। क्योंकि उस समय व्यावहारिक रूप में देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेता के पास थी। रोजगार को उत्पन्न करने के लिए भारत में राज्य क्षेत्र को विकसित किया और देश मे नए आर्थिक हितों को जन्म दिया गया। उन सभी गलत आर्थिक नीतियों को छोड़ने का प्रयास किया गया जो साम्राज्यवादियों ने अपने मातृ देश (ब्रिटेन) के हित . के लिए लिखी थी।

रोजगार बढ़ाने का प्रयास (Means to increase employment) − 1 अप्रैल 1951 से पहली योजना लागू हुई यद्यपि इस योजना में कृषि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। लेकिन सरकार ने ऐसे कार्यक्रमों को अधिक प्राथमिकता दी जिससे देश के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार न दिया जा सके क्योंकि रोजगार मिलने पर ही देश की गरीबी दूर हो सकती थी। देश के अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ यह मानते थे कि योजनाओं द्वारा निश्चित लागत से बनाये गये कार्यक्रमों से लागत हटकर हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के बारे में नहीं सोच सकते। द्वितीय पंचवर्षीय योजना स्पष्ट करती है “निम्नलिखित लागत से रोजगार अंतर्निहित है और अवश्य ही, लागत के स्वरूप को निश्चित करते समय इस सोच -विचार को एक प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस तरह की योजना में लागत की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि होगी तथा विकासवादी खर्च का अर्थ है कि वह आय में वृद्धि करेगा तथा हर क्षेत्र में श्रम की मांग में वृद्धि करेगा।

सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार (Expansion of Public Industry) − देश में भारी उद्योगों को लगाने, तेल की खोज और कोयले के विकास के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा के विकास के कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। इन सभी कार्यक्रमों को चलाने का मुख्य दायित्व देश की केन्द्रीय सरकार पर था। पहली योजना की बजाय दूसरी योजना में इस कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दिया गया। अनेक देशों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े-बड़े लौह इस्पात उद्योग शुरू किए गए।

नए आर्थिक हित (New Econominc interest) − देश में आर्थिक हितों को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी अपनाया गया। वस्तुतः समाजवाद और पूँजीवाद व्यवस्थाओं के सभी गुणों को अपनाने का प्रयल किया गया। देश में एक नई आर्थिक नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। रोजगार के क्षेत्र में सार्वजनिक खासकर सेवाओं (service) द्वारा रोजगार देने वाला एक विशाल उद्यम विकसित हो सका। यद्यपि देश में सरकार को आशा के अनुरूप सफ़लताएँ नहीं मिली और रोजगार के अवसर धीमी गति से ही उत्पन्न हो सके।


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Q6. नव अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर एक लेख लिखिए।

उत्तर ⇒ नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order)

1. गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध के दौरान महज मध्यस्थता करने वाले देश भर नहीं थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को ‘अल्प विकसित देश’ का दर्जा मिला था। इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। नव-स्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज़ से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था। बगैर टिकाऊ विकास के कोई देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता । उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता । इसमें वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था। जिससे राजनीतिक आजादी हासिल की गई।

2. इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस कॉनफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट-अंकटाड) में ‘टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार-प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुधारों से

(a) अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं;
(b) अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी; वे अपना सामान बंद सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमंद होगा
(c) पश्चिमी देशों से मँगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी


Q7. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

उत्तर ⇒ वैसे तो मैं कक्षा बारहवीं का विद्यार्थी हूँ लेकिन एक नागरिक के रूप में और राजनीति जान का विद्यार्थी होने के नाते मुझे प्रश्न में जो कहा गया उनके अनुसार मैं दो पहलुओं को बरकरार खना चाहँगा।

(i) सी॰टी॰बी॰टी के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखूगा।
(ii) मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग जारी रखूगा।
(iii) दो बदलने वाले पहलू निम्नलिखित होंगे

(a) मैं गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग करके संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा क्योंकि आज दुनिया में पश्चिमी देशों की तूती बोलती है और वे ही सम्पत्ति और शक्ति सम्पन्न हैं। रूस और साम्यवाद निरंतर ढलाने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।
(b) मैं पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक संधि करूँगा तो जर्मनी के बिस्मार्क की तरह अपने राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ देश के साथ ऐसी संधि करूँगा ताकि चीन 1962 की तरह भारत देश के भू-भाग को अपने कब्जे में न रखें और शीघ्र ही तिब्बत, बारमाँसा, हाँगकाँग को अंतर्राष्ट्रीय समाज में स्वायतपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न करूँगा और संभव हुआ तो नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ सामूहिक प्रतिरक्षा संबंधी व्यापक उत्तरदायित्व और गठजोड़ की संधियाँ/ समझौते करूँगा।


Q8. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है ? भारत की विदेश नीति के उदाहरण देते हुए इस प्रश्न पर विचार कीजिए।

उत्तर ⇒ हर देश का राजनैतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए नेहरूजी के सरकार के काल में गुट निरपेक्षता की नीति बड़ी जोर-शोर में चली लेकिन शास्त्रीजी ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देकर यह साबित कर दिया कि भारत की तीनों तरह की सेनाएँ हर दुश्मन को जवाब देने की ताकत रखती है। उन्होंने स्वाभिमान से जीना सिखाया। ताशकंद समझौता किया लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति को नेहरू जी के समान जारी रखा। कहने को श्रीमती इंदिरा गाँधी नेहरूजी की पुत्री थीं लेकिन भावनात्मक रूप से वह रूस से अधिक प्रभावित थीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भूतपूर्व देशी नरेशों के प्रिवीपर्स पर्स समाप्त किए, ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया और रूस से दीर्घ अनाक्रमांक संधि की। राजीव गाँधी के काल में चीन पाकिस्तान सहित अनेक देशों से संबंध सुधारे गए तो श्रीलंका – के उन देशद्रोहियों को दबाने में वहाँ की सरकार को सहायता देकर यह बता दिया कि भारत – छोटे-बड़े देशों की अखंडता का सम्मान करता है। कहने को एन० डी० ए० या बी. जे. पी. की सरकार कुछ ऐसे तत्वों से प्रभावित थी जो साम्प्रदायिक आक्षेप से बदनाम किए जाते हैं लेकिन उन्होंने भारत को चीन, रूस, अमेरिका, कस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों से विभिन्न क्षेत्रों से समझौते परक बस, रेल, वायुयान, उदारीकरण, उन्मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आतंकवादी विरोधी नीति को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पड़ोसी देशों में उठाकर यह साबित कर दिया कि
भारत की विदेश और केवल देश हित में होगी, उस पर धार्मिक या किसी राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व नहीं हो – अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति, नेहरूजी की विदेश नीति से जुदा न होकर लो को अधिक प्यारी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का विस्तार हुआ, जय जवान के साथ आप दिया नारा ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’।


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Q9. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।

उत्तर ⇒ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई. को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations) :

1. चार्टर तैयार करवाने में सहायता − संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के लागू करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री एस. राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था

2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग − संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का
सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग − भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों
के आर्थिक विकास पर बल दिया है और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

4. निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग − संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुनः पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी। संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में भारत का सहयोग भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया।

ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. कोरिया की समस्या (Korean Problems) − जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था। ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया म शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस यद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दिया के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez. Canal) − जुलाई, 1956 के मित्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस दत अधिक हानि होने का भय था अत: उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य नजराइल द्वारा मित्र पर आक्रमण करा दिया।
इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी यस किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

3.हिन्द-चीन का प्रश्न (Issuc of Indo-China) − सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

4. हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery) − जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

5. चीन की सदस्यता में भारत का योगदान − विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत
के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

6. नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) − भारत का सदा प्रयत्ल रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

7.रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) − जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

8. भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चुका है (India had worked at different posts) −  भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं। डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था। अब तक छ: बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ॰ नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चने गये। श्री के. पी. एस. मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।
निष्कर्ष (Conclusion) − भारत विश्व शांति व सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सहयोग देता रहा है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति को बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण यंत्र है। पं. जवाहरलाल ने एक बार कहा था, “हम संयुक्त राष्ट्र के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।” ..


Q10. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है ? ..

उत्तर ⇒ 1. भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalisation in India)- पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं को कच्चे माल का निर्यातक

तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के र इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद साप जाय। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमा उत्पादक चीजों को बनाना सीख सके। इस ‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कतें
पैदा हुई। कली तरक्की हुई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

2. भारत में वैश्वीकरण को अपनाना (Adoptation of Globalisation in India) 1991 नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की समानता, विदेशी पंजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्योगिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। अब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है। भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही साथ अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है।

3. भारत की वैश्वीकरण का प्रतिरोध (Resistence of Globalisation in India) वैश्वीकरण बड़ा बहसमतलब मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।

(a) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवादी की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

(b) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है। वे चाहते हैं कि कम-से-कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और ‘संरक्षणवाद’ का दौर फिर कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परम्परागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो देंगे। यहाँ हम गौर करें कि वैश्वीकरण-विरोधी आंदोलन भी विश्वव्यापी नेटवर्क में भागीदारी करते हैं और अपने से मिलती-जुलती सोच रखने वाले दूसरे देशों के लोगों से गठजोड़ करते हैं। वैश्वीकरण-विरोधी बहुत से आंदोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं। वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या हैं ?

(a) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने पास-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलन से मदद मिलती है। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई हलकों से हो रहा है। आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ वामपथी तेवर का आवाजें राजनीतिक दलों की तरफ से उठी है तो इंडियन सोशल फोरम जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों में प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतिया मसलन ‘नीम’ को अमेरिकी और यूरोपीय फर्मों ने पेटेण्ट कराने के प्रसास किए। इसका भी कड़ा विरा हुआ।

(b) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विा सास्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विभिन्न टी. वी. चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन-डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी कों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध शामिल है।


Class 12th Political Science Objective Question 2024

   S.N Class 12th Political Science Objective Question 2024
   1.   शीत युद्ध का दौर
   2.   दो ध्रुवीयता का अंत
   3.  समकालीन विश्व में अमेरिकी वर्चस्व
   4.   सत्ता के वैकल्पिक केंद्र 
   5.   समकालीन दक्षिण एशिया
   6.   अंतरराष्ट्रीय संगठन 
   7.   समकालीन विश्व में सुरक्षा
   8.   पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन
   9.   वैश्वीकरण
  10.   राष्ट्र निर्माण की चुनौतियां
  11.  एक दल के प्रभुत्व का दौर
  12. नियोजित विकास की राजनीति
 13. भारत के विदेशी संबंध
 14. कांग्रेस प्रणाली : चुनौतियां और पुनर्स्थापना
 15. लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट
 16. जन आंदोलन का उदय
 17.  क्षेत्रीय आकांक्षाएं
 18. भारतीय राजनीति : नए बदलाव