Class 12th इतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024 | Class 12th History Model Question Paper 2024 PART- 2

Class 12th इतिहास  :- Here History Class 12 Important Long Answer Question Answer ( इतिहास कक्षा 12 का महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 2024 ) is given on this post If you have not read Class 12 History Long Answer Question Answer yet then all these questions are very important for your board exam so this question must watch from beginning to end.

दोस्तों यहां पर बिहार बोर्ड कक्षा 12 के लिए इतिहास का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया हुआ है यह प्रश्न उत्तर आपके इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यही सब प्रश्न आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 में आ सकते हैं इसलिए इन सभी प्रश्नों को शुरू से अंत तक जरूर देखें।

इतिहास  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) PART – 2

 12th Class History Model Question Paper 2024

[ 19 ] ‘दीन-ए-इलाही’ पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।

Ans :- अकबर ने धार्मिक सहिष्णता की नीति अपनायी थी। अकबर ने विभिन्न को विचारों को जानने के लिए सभी धर्मों के विद्वानों से विचार विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुचा की सभी धर्मों में अच्छाइयाँ हैं, मगर कोई धर्म संपूर्ण नहीं है। उसमें सभी धर्मो को अच्छ-अच्छे सिद्धांतों को मिलाकर एक नये धर्म की नींव डाली और उसका नाम दीन-चार रखा। इस धर्म में पीर, पैगम्बरों तथा देवी-देवताओं को स्थान नहीं था। इन सबका स्थान अकबर ने ही ग्रहण कर लिया था। इस धर्म के द्वारा वह हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता कायम करना चाहता था। इस धर्म को स्वीकार करनेवाला एक मात्र हिन्दू बीरबल था। दीन-ए-इलाही के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं;-

(i) ईश्वर एक है, तथा अकबर उसका पैगम्बर है। –
(ii) अनुयायियों को अकबर को साष्टांग प्रणाम करना पड़ता था।
(iii) सूर्य तथा अग्नि की उपासना अत्यावश्यक थी।
(iv) अनुयायियों को अपने जीवन काल में ही अपना मृतभोज देना होता था।
(v) मांस भक्षण का निषेध था।
(vi) अल्लाह हो अकबर तथा जल्लेह जलालहु का अभिवादन में प्रयोग करना।
(vii) वर्षगाँठ पर प्रीतिभोज का आयोजन।
(viii) सम्राट द्वारा धार्मिक दीक्षा।
(ix) बहेलियों, मछुआरों तथा कसाइयों के साथ भोजन करने की आज्ञा न थी। लेनपूल के अनुसार, अकबर का धर्म दीन-ए-इलाही या ईश्वरीय धर्म सभी धर्मों के प्रमुख तत्त्वों को लेकर बनाया गया धर्म था।


[ 20 ] भारत पर महमूद गजनवी के आक्रमणों का वर्णन करें।

Ans :- भारत पर महमूद गजनवी का आक्रमण भारतीय इतिहास में विशेष महत्व रखता है।  महमूद गजनवी मध्य एशिया में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करना चाहता था। इसी साम्राज्य विस्तार के लिए धन प्राप्ति के उद्देश्य से महमूद ने भारत पर बार-बार आक्रमण किये। इसी दौरान इसने विश्वप्रसिद्ध सोमनाथ के मंदिर को लूटा। उसे पता था कि भारत के मंदिरों में सदियों से – धन जमा होते आ रहा है। इसी कारण मंदिरों को उसने निशाना बनाया। कुछ इतिहासकार महमूद के भारत आक्रमण को धार्मिक दृष्टिकोण से देखते हैं। इनका मानना है कि महमूद ने भारत में इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए आक्रमण कर मंदिरों को लूटा एव  नष्ट किया। परंतु सच्चाई सिर्फ मंदिरों का धन लूटना था। इसके अलावा कुछ इतिहासकार महमूद के भारत आक्रमण के पीछे हस्ति सेना की प्राप्ति, यज्ञ की प्राप्ति, कुशल कारीगरों की प्राप्ति आदि को भी कारण माना है।

महमूद के भारत आक्रमण ने यह साबित कर दिया था कि भारत में राजनैतिक एकता नहीं
था। कुछ शासकों ने महमूद से लोहा लिया तो कुछ उसके गुलाम बन गए। इसी कारण आगे चलकर भारत पर विदेशी आक्रमण बढ़ गया। अंततः 1206 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना करने में भी सफलता पाई।


[ 21 ] अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण पर एक निबंध लिखें।

Ans :- अलाउदीन खिलजा दिल्ली सल्तनत का एक प्रमख सल्तान था। इसने अपने शासन काल में बाजार नियंत्रण प्रणाली विकसित की थी। यह व्यवस्था मुख्य रूप से कम वेतन भोगी पैनिकों को सभी आवश्यक वस्तुओं की समचित आपति पर आधारित थी। इसमें सैनिकों के उपयोग की अनेक वस्तुओं जैसे घोड़ा, शस्त्र, वस्त्र, खाद्यान्न आदि का मूल्य निश्चित किया गया था।
अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण का मुख्य आधार था बाजार नियम तथा उसके पालन में कठोरता। कोई भी व्यापारी बाजार मूल्य से अधिक न दाम ले सकता था तथा न ही उचित तौल से कम सामान तौल सकता था। अलाउद्दीन ने शहना-ए-मंडी को बाजार का अधीक्षक, बरीद-ए-मण्डी को नमूना नियंत्रण के लिए नियक्त किया था। कपडा बाजार सराय अदल कहलाता था। खाद्यान्न के लिए अलग बाजार था जहाँ गेहूँ, चावल, चना, उड़द और जौ की कीमतें क्रमशः 7,5,5,5,5,4 जीतल प्रतिमन तय कर दी गई थी। इससे दिल्ली की आम जनता तथा सैनिकों को सस्ती दरों पर सामान मिलने लगे।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण सैनिकों के हितों को ध्यान में रखकर किया गया था। यह पूरे सल्तनत में नहीं बल्कि दिल्ली तक ही सीमित था। इसकी मृत्यु के साथ ही यह व्यवस्था भी समाप्त हो गई।


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[ 22 ] मुहम्मद-बिन-तुगलक के विभिन्न योजनाओं का वर्णन करें।

Ans :- मुहम्मद-बिन-तुगलक दिल्ली सल्तनत का एक प्रमुख सुल्तान था। यह दिल्ली सल्तनत के सभी सुल्तानों में सर्वाधिक सुशिक्षित, योग्य और तीव्र बुद्धि वाला अनुभवी, निपुण सेनापति तथा महान विजेता था। इसके शासनकाल में पाँच योजनाएँ लागू की गई जो निम्न हैं

(i) राजधानी परिवर्तन ⇒  मुहमद बिन तुगलक ने दक्षिण भारत पर प्रभावकारी नियंत्रण हेतु अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि कर दिया। देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद किया।

(ii) सांकेतिक मद्रा का प्रचलन ⇒  मुहमद बिन तुलगक ने चाँदी और सोने की जगह ताँबे और कांसे का सिक्का जारी किया। यह सिक्का सांकेतिक था यानी यह होता था ताँबे और कांसे का परंतु इसका बाजार मूल्य सोने और चाँदी के बराबर होता था।

(iii) खरासान अभियान   मुहमद बिन तुगलक ने एक विशाल सेना का गठन कर खुरासान
अभियान की योजना बनाई परंतु यह योजना अमल में नहीं आया।

(iv) दोआब में कर वद्धि ⇒ मुहमद बिन तुगलक ने दोआब के उपजाऊ क्षेत्र पर कर वृद्धि कर उपज का पचास प्रतिशत कर दिया। परंतु यह सफल नहीं हो सका।

(v) मंगोलों को धन देकर वापस भेजना ⇒ मुहमद बिन तुगलक ने ट्रांस ऑक्सियाना के शासक तमीशीरीन के भारत आक्रमण के डर से उसे धन देकर वापस भेज दिया था।
मुहमद बिन तुगलक की ये पाँचों योजनाएँ असफल हो गई। राजधानी पुनः दिल्ली लाना पड़ा। दोआब की कर वृद्धि वापस लेनी पड़ी। इससे मुहमद बिन तुगलक की काफी आलोचना हुई।


[ 23 ] अकबर की राजपूत नीति की विवेचना करें।

Ans :- अकबर ने राजपूत शासक वर्ग के प्रति एक नई नीति अपनाई जो पहले से चले आ रहे संघर्ष के विपरीत सद्भाव मैत्री और सहयोग की भावना से प्रेरित थी। इससे मुगल साम्राज्य और राजपूत राज्यों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का एक नया अध्याय आरंभ हुआ।
अकबर के समक्ष चार प्रमुख उद्देश्य थे जिनकी प्राप्ति राजपूतों के सहयोग के बिना संभव – नहीं था।
(i) मुगलों की सत्ता को अफगानों द्वारा प्रस्तुत चुनौती का अन्त करना।
(ii) मुगल साम्राज्य का विस्तार।
(iii) मुगल सामंत वर्ग में उन्कों की उदंडता पर अकुंश लगाना।
(iv) भारत की बहुसंख्यक हिन्दु प्रजा के बीच मुगल शासन को लोकप्रिय बनाना।
उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए राजपूतों का सहयोग आवश्यक था। इन परिस्थितियों में अकबर ने राजपूतों के साथ एक नई नीति का विकास किया। इस नीति के अन्तर्गत निम्नलिखित उपाय किये।

(i) वैवाहिक संबंध ⇒ राजपूतों से सहयोग प्राप्त करने के लिए अकबर ने कई राजपत घरानों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये।

(ii) राजपूतों को उच्च पद अकबर ने राजपूतों को प्रशासन एवं सेना में उच्च पद प्रदान किये। राजा मानसिंह, बीरवल, टोडरमल आदि अकबर के राज्य में उच्च पदों पर आसीन थे।

(iii) राजपूतों का सम्मान ⇒ अकबर ने राजपूतों का पूरा सम्मान दिया तथा दरबार में प्रतिष्ठा प्रदान की।
(iv) धार्मिक स्वतंत्रता अकबर ने सभी हिन्दुओं को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान किया और धार्मिक आधार पर नियुक्त तथा पदोन्नति को समाप्त कर दिया।

परिणाम ⇒ अकबर की राजपूत नीति सफल रही। राजपूताना का क्षेत्र मुगलों के प्रभाव में आने पर शेष उत्तरी भारत के घनिष्ठ सम्पर्क में आया तथा राजपूताना क्षेत्र में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना हुई।


इतिहास कक्षा 12 का महत्वपूर्ण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 2024 

[ 24 ] अकबर की धार्मिक नीति की समीक्षा करें।

Ans :- अकबर अपने पूर्ववर्ती शासकों की धार्मिक विभेद की नीति के स्थान पर उदार नीति अपनाई तथा सभी धर्मों एवं सम्प्रदायों में एकता और समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। अकबर की धार्मिक नीति का विकास तीन विभिन्न चरणों में हुआ। प्रथम चरण में अकबर ने हिन्दुओं के प्रति उदार धार्मिक नीति आरंभ की। तीर्थयात्रा कर (1563) और जजिया कर (1564) समाप्त किया। बलात धर्म परिवर्तन पर रोक लगा दी गई। हिन्दुओं को मंदिर बनाने की अनुमति दी गई। दूसरे चरण में इबादतखाना की स्थापना की गई, मजहर की घोषणा की गई तथा ‘दीन-ए-इलाही’ नामक नये धर्म की स्थापना की गई। अंतिम चरण में अकबर ने हिन्दू-मुसलमान समाज एवं धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयास किया।

इबादतखाना की स्थापना ⇒ धार्मिक विषयों पर बाद-विवाद करवाने के उद्देश्य से अकबर ने 1573 में फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना (प्रार्थना भवन) बनवाने की आज्ञा दी। अकबर स्वयं इन धार्मिक वाद-विवादों में भाग लेता था। अकबर इन वाद-विवादों से यह समझा कि सभी धर्मों का सार एक है, उनमें सिर्फ बाहरी अंतर है।

दीन-ए-इलाही ⇒ धार्मिक क्षेत्र में अकबर का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था-दीन-ए-ईलाही का स्थापना। धार्मिक विभिन्नताओं एवं मतभेद को दूर करने के लिए, पूरे देश में सामंजस्य एवं एकता की भावना जगाने के उद्देश्य से अकबर ने एक ऐसे धर्म की कल्पना की, जिसमें सभी धमों का अच्छी बातों का समावेश कर इसे सर्वग्राह्य बनाया जा सके। अपने नये धर्म के द्वारा अकबर मुगल
साम्राज्य के अंतर्गत बसनेवाली सभी जातियों एवं धार्मिक संप्रदाय के लोगों को एक सूत्र में बांधकर ] अपने साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करना चाहता था।


[ 25 ] अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना करें।

Ans :- मुगल शासन प्रणाली की सबसे अद्भुत विशेषता मनसबदारी प्रथा थी। इसका निर्माता अकबर था। ‘मनसबदार’ शब्द पदाधिकारी के लिए प्रयोग किया जाता था और इस पूरी व्यवस्था को मनसबदारी प्रथा कहा जाता था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत अकबर के शासन के तीन प्रमुख अगों को अथात् सामंत, सेना एवं नौकरशाही को एक सामान्य व्यवस्था में संगठित कर दिया था। अकबर द्वारा मनसब में युगल अंक प्रदान किये जाते थे जिसे जात मनसब और सवार मनसब कहा जाता था। जात मनसब द्वारा किसी व्यक्ति का अधिकारियों के बीच स्थान या उसकी वरीयता  का निर्धारण हाता था। इसी के अनसार उसका वेतन भी निर्धारित होता था। सवार मनसब द्वारा ‘किसी व्यक्ति के सैनिक दायित्व का निर्धारण होता था अर्थात उसके अधीन सैनिकों की संख्या का निर्धारण होता था।
जात और सवार मनसब के बीच अनुपात भी निर्धारित था। सवार मनसब, की संख्या किसी भी हालत में जात मनसब से अधिक नहीं हो सकती थी। मनसबदारों के पद वंशानुगत नहीं होता था बल्कि कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता और कार्यक्षमता के अनुसार नियुक्ति और पदोन्नति पाता था। मनसबदारों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी। ,


[ 26 ] शेरशाहं के प्रशासनिक सुधारों की विवेचना करें।

Ans :- शेरशाह के शासन प्रबंध को जानने के लिए निम्न तथ्यों का अध्ययन आवश्यक है-

(i) केन्द्रीय शासन राज्य की समस्त शक्तियाँ शासक के हाथों में होती थीं। राज्य के – काम को सुचारु रूप से चलाने के लिए उसको भिन्न-भिन्न विभागों में बाँट दिया गया था। प्रत्येक विभाग का काम एक मंत्री के हाथ में होता था जिसकी सहायता के लिए कर्मचारी होते थे। मंत्री और अधिकारी पर्णतः राजा के अधीन होते थे। शेरशाह स्वयं हर विभाग का काम देखता था।

(ii) प्रान्तीय शासन शेरशाह ने अपने राज्य को 47 सरकारों (प्रान्तों) में बाँट रखा था ‘सरकार’ का मख्य अधिकारी शिकदार कहलाता था। प्रत्येक सरकार कई परगनों में बँटी होती थी। परंगने भी कई छोटी-छोटी इकाइयों में बँटे हुए थे। जिनका प्रबंध पंचायतें करती थीं।
(iii) भमि सुधार ⇒  शेरशाह ने सारी कृषि भूमि की नाप करवाकर, किसानों से लगान उपज़ का 1/3 भाग लिया।

(iv) सैनिक सुधार ⇒ शेरशाह स्वयं सैनिकों की भर्ती करता था तथा उन्हें राज्य के प्रति निष्ठा की शपथ दिलवाता था। उसने सैनिकों का हुलिया (चेहरा) लिखने और घोड़े दागने की प्रथा चलाई जिससे कि युद्ध के समय अयोग्य और निकम्मे सैनिक और खराब नस्ल के घोड़े न प्रवेश पा सकें।

(v) न्याय और पलिस व्यवस्था ⇒ वह बिना जाति, धर्म, वर्ण या वर्ग भेद के न्याय करता था। दण्ड व्यवस्था कठोर थी। दण्ड देने में वह अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ता था।

(vi) सडकें ⇒ देश की अर्थव्यवस्था, सैनिकों की गतिविधियों, यात्रियों और व्यापारियों की सुविधा के लिए बड़ी-बड़ी सड़कों का निर्माण कराया तथा सरायें भी बनवाई गईं।

निष्कर्ष :- शेरशाह और अकबर पहले के किसी भी शासक से कानून-निर्माण और प्रजा की भलाई की भावना अधिक थी।


[ 27 ] मुगलकालीन प्रशासन का वर्णन कीजिए।

Ans :- मुगलकालीन शासन प्रणाली अति केन्द्रीकृत व्यवस्था पर आधारित थी, जिसकी धरी मुगल सम्राट था। राज्य के सारे मामले सम्राट के इर्द-गिर्द घुमा करते थे। फिर भी शासन कार्य : में सहयोग करने के लिए, एक मंत्री-परिषद थी। मंत्री-परिषद के सदस्य राजा की इच्छा तक ही अपने पद पर रह सकते थे। मंत्री-परिषद का प्रधान वजीर (प्रधान मंत्री) होता था। वजीर के अन्तर्गत राजस्व एवं वित्तीय मामलों का दायित्व था। दूसरा प्रमुख ] मंत्री मीर बख्शी, जिसपर सेना के प्रशासन एवं संगठन की जिम्मेवारी थी। तीसरा मंत्री सद्र थे, जो धार्मिक एवं न्याय विभाग का प्रमुख था। चौथा-मीर सामान थे ये मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिनके जिम्मे राज्य के कारखाने और भंडारगृह थे। इसी कारखाने से शाही आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती थी।अकबर केन्द्रीय प्रशासन को सिद्ध करने के पश्चात प्रान्तीय प्रशासन की ओर ध्यान दिया और पूरे साम्राज्य को 12 सूबों में विभाजित कर दिया। सूबेदार सूबे के सबसे बड़े अधिकारी होते थे और इनकी नियुक्ति सीधे सम्राट द्वारा की जाती थी। सूबा सरकार या जिला में विभाजित था। सरकार का सबसे बड़ा अधिकारी फौजदार होता था और यह सूबेदार के निर्देशन में कार्य करते थे


 Class 12th इतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर 2024 

[ 28 ] अकबर को एक “राष्ट्रीय सम्राट” क्यों कहा जाता है?

Ans :-अकबर मुगल वंश का सर्वोच्च सम्राट था। यह एक उच्च कोटि का राष्ट्र निर्माता । था। यह एक निर्भिक सैनिक, उपकारी तथा बुद्धिमान शासक, उच्च विचारों वाला व्यक्ति और चरित्र का ठोस निर्माता था। इसने धार्मिक संकीर्णता; जातीय द्वेष और सामाजिक पक्षपात से अपने आप को ऊपर रखा। इसने एक सच्चे राष्ट्रीय शासक के रूप में हिंदुओं तथा मुसलमानों को समान समझा। इसने हिन्दुओं के साथ समान व्यवहार करके भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा धार्मिक समरसता तथा समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया। इसके काल में पूरे साम्राज्य में एक प्रकार के नियम एक प्रकार के नाप तौल तथा सिक्के प्रचलित थे।
अकबर ने जजिया कर की समाप्ति, तीर्थ यात्राकर की समाप्ति कर एक राष्ट्रीय शासक होने का परिचय दिया। इसने भारत को अपनी मातृभूमि माना तथा देश के विकास के लिए कई जनकल्याणकारी नियम बनाये। योग्यता के आधार पर बीरबल, मान सिंह, टोडरमल आदि हिंदू लोग साम्राज्य के ऊँचे अधिकारी बने। राजपूत कन्याओं से वैवाहिक संबंध स्थापित कर समाज में समरसता का परिचय दिया। हिन्दू पर्व त्योहारों को भी राजमहल में उसी प्रकार मनाया जाता था जैसे मुस्लिम पर्व। इसीलिए अकबर को एक ‘राष्ट्रीय सम्राट’ कहा जाता है।


[ 29 ] कृष्णदेव राय की उपलब्धियों का वर्णन करें।

Ans :- कृष्णदेव राय विजयनगर के महानतम शासकों में एक थे। इनकी उपलब्धियों का वर्णन निम्न आधार पर किया जा सकता है:-

(i) एक विजेता के रूप में ⇒ कृष्णदेव राय तुलुव वंश के सर्वश्रेष्ठ शासक थे। इनकी शक्ति का उल्लेख बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए बाबरी में किया है। इन्होंने दक्कन के अधिकांश मुस्लिम राज्यों बीदर के सुल्तान महमूदशाह, बीजारपुर के सुल्तान यूसुफ आदिलशाह को पराजित किया। इससे विजयनगर की प्रतिष्ठा काफी बढ़ी।

(ii) एक शासक के रूप में ⇒ कृष्णदेव राय एक कुशल शासक राजनीतिज्ञ तथा कला संरक्षक भी थे। इन्होंने सत्ता का विकेंद्रीकरण कर अपने साम्राज्य को अनेक भागों में विभाजित किया। प्रत्येक भाग में एक गवर्नर की नियुक्ति की। इन्होंने प्रजा की भलाई के लिए कई कार्य किए। इन्होंने व्यापार की सुविधा के लिए अनेक बंदरगाह पर अच्छी व्यवस्था की।

(iii) एक साहित्यकार के रूप में ⇒ कृष्णदेव राय स्वयं एक महान विद्वान और कवि थे। इन्होंने तेलुगु भाषा में ‘आमुक्तमाल्यदा’ नामक कविता लिखी। इनके दरबार में अनेक साहित्यकारों ] को संरक्षण प्रदान था। तेलुगु कवि अल्लसानी पेड्डना राज कवि थे।

(iv) एक कला प्रेमी के रूप में   कृष्णदेव राय महान कला प्रेमी थे। इन्होंने विरूपाक्ष मंदिर के गोपुरम की मरम्मत करवाई। इन्होंने कृष्ण स्वामी मंदिर का निर्माण करवाया। इन्होंने नागलापुर नामक नगर बसाया। सिंचाई के लिए अनेक तालाब बनवाए।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि कृष्णदेवराय एक कुशल शासक के साथ-साथ एक साहित्यकार, कला प्रेमी तथा प्रजा के हितैषी थे।


[ 30 ] विजयनगर साम्राज्य के चरमोत्कर्ष एवं पतन पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।

Ans :- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना चौदहवीं शताब्दी (1336 ई०) में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों द्वारा की गयी थी। विजयनगर जब अपने चरमोत्कर्ष पर थी उस समय उसका साम्राज्य उत्तर में कृष्णा नदी से लेकर प्रायद्वीप के सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था। कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के सबसे महानत्तम शासक और वास्तविक संस्थापक थे उसने 1509 से 1530 तक शासन किया। जिस समय कृष्णदेव राय शासन की बागडोर अपने हाथों में ली उस समय उसके सामने कई समस्यायें थी, उसने बुद्धि और बल से उन पर विजय प्राप्त की। कृष्णदेव राय ने अपने सभी शत्रुओं को पराजित कर अपने साम्राज्य को दक्षिण भारत का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य में परिणत कर दिया। कृष्णदेव राय बहमनी शासकों को पराजित अवश्य किया पर वह एक उदार और धर्म सहिष्णु शासक था। कृष्णदेव राय के दरबार में आठ महान कवि रहते थे। कृष्णदेव राय बन्दरगाहों को सुधारा और व्यापार-वाणिज्य को प्रोत्साहित किया। सिंचाई के लिए ] बड़े-बड़े जलाशय बनबा कर खेती को प्रोत्साहित किया।
विजयनगर लगभग 300 वर्षों तक उन्नति और समृद्धि के सोपान चढ़ते रहा और दक्षिण भारत के सता का शक्तिशाली केन्द्र रहा, किन्तु तालीकोटा के युद्ध के पश्चात यह छिन्न-भिन्न हो गया और पतन की तरफ अग्रसर हो गया। इसके पतन के निम्नलिखित कारण थे-

(i) कृष्णदेव राय के पश्चात् योग्य उत्तराधिकारी का अभाव हो गया।
(ii) मुस्लिम राज्यों और विजयनगर के बीच निरंतर संघर्ष से जन-धन की अपार क्षति उठानी पड़ी।
(iii) तालीकोटा का युद्ध इस साम्राज्य के विनाश का प्रत्यक्ष कारण था।
संक्षेप में विजयनगर साम्राज्य की भव्य इमारत के धराशायी हो जाने की पृष्ठभूमि में धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा सामरिक कारण विद्यमान थे जिनके कारण साम्राज्य का अन्त हो गया।


[ 31 ] विजयनगर की स्थापत्य कला की विशेषताएँ लिखें। अथवा, विजयनगर साम्राज्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन करें।

Ans :- विजयनगर के शासकों ने स्थापत्य कला के विकास में प्रशंसनीय योगदान दिया। दक्षिण भारत में मंदिर निर्माण शैली का चरमोत्कर्ष विजयनगर के शासकों के काल में ही प्राप्त हुआ । इस शैली के सर्वोत्कृष्ट उदाहरणों में देवराय द्वितीय द्वारा निर्मित ‘हजारा मंदिर’ और कृष्ण देवराय द्वारा निर्मित ‘विठ्ठल स्वामी’ के मंदिर का नाम लिया जा सकता है। ये मंदिर चोल काल में विकसित द्रविड़ शैली में ही है लेकिन इनमें कुछ नई विशेषताएँ भी शामिल है। सबसे पहले हर मन्दिर में मण्डल के अतिरिक्त एक कल्याण मण्डप का निर्माण किया गया है। इसमें अत्यन्त अलंकृत स्तम्भों का प्रयोग होता था। इस मण्डप में देवता के विवाह समारोह का त्योहार मनाया जाता था। दूसरी विशेषता अम्मान मंदिर के रूप में देखी जा सकती है। एक अतिरिक्त ] मंदिर था जिसमें देवता की पत्नी की विशेष रूप से आराधना की जाती थी। इनके अतिरिक्त मंदिर में प्रवेश द्वार बने थे। गोपुरम और मंदिर के स्तम्भों के अलंकार पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। वास्तव – में स्तम्भ की विविध तथा जटील सजावट विजयनगर शैली की सबसे बड़ी विशेषता थी। ,
विजयनगर स्थापत्य शैली की मूर्तियाँ और स्तम्भ एक ही पत्थर को काटकर निर्मित की जाती थी। विजयनगर,शैली के भवन तुंगभद्रा नदी से दक्षिण क्षेत्र में फैले हुए हैं। इनमें कांचीपूरम् का ‘एकाग्रनाथ मंदिर’ तथा ताड़पत्री स्थित ‘रामेश्वरम् मंदिर’ अपने सुन्दर गौपुरों के कारण अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
विजयनगर के शासकों द्वारा अनेक महलों एवं राजप्रासादों का भी निर्माण हुआ जिनमे से कुछ के  अवशेष साम्राज्य की राजधानी विजयनगर (हम्पी) में देखे जा सकते हैं। इन भवनों के दीवारों पर चित्रण के सुन्दर उदाहरण देखे जा सकते हैं। इनकी विशेषता यह है कि इनमें विभिन्न देशों के रहन-सहन को दर्शाया गया है। चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तियों का निर्माण भी इसी काल में हआ। ये मूर्तियाँ अधिकतर शासकों की हआ करती थी। इनका निर्माण पत्थरों को काटकर या काँसे को ढाल कर होता था। कृष्णदेव राय और उसकी पत्नियों, वेंकट प्रथम और कुछ अन्य कों की कांस्य को बनी विशाल मर्तियाँ धातकला में विजयनगर के कारीगरों का प्रवाणता का स्पष्ट करती है।


[ 32 ] विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का वर्णन कीजिए।

Ans :- विजयनगर की शासन व्यवस्था अच्छी थी इसी कारण यह साम्राज्य शताब्दियों तक स्थायी रहा। विजयनगर शासन प्रबंध की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं
(i) केंद्रीय प्रशासन ⇒ राजा साम्राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था। उसके ऊपर किसा प्रकार का अंकुश नहीं था। राजा के परामर्श के लिए एक समिति होती थी जिसमें प्रधानमंत्री, खजांची तथा मुख्य पुलिस अधिकारी होते थे। राजदरबार भव्य और शानो-शौकत से पूर्ण होती थी।

(ii) प्रांतीय शासन ⇒ समस्त राज्य प्रांतों में तथा प्रांत जिलों में विभाजित थे। प्रत्येक जिला अनेक गाँव में विभक्त था तथा प्रत्येक प्रांत की व्यवस्था की देखभाल हेतु एक गवर्नर होता था, जो राजदरबार का प्रतिनिधित्व करता था।

(iii) स्थानीय शासन ⇒ ग्राम राज्य की सबसे छोटी इकाई थी। इस समय ये पूर्णत: आत्मनिर्भर और स्वावलंबी होते थे, गाँव में न्याय के लिए पंचायते होती थीं, प्रत्येक गाँव अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुएँ उत्पन्न कर लेता था। गाँव में राजा के कुछ अधिकारी भी नियुक्त किये जाते थे।

(iv) न्याय प्रणाली ⇒ इस शासन प्रणाली में राजा ही देश की न्याय व्यवस्था का सर्वोच्च होता था, सभी मुकदमों की अंतिम अपील राजा के पास होती थी, न्याय विधान हिन्दू धर्म के नियमानुसार था। कठोर दण्ड का प्रावधान था, मृत्युदण्ड, हाथी के पैर से कुचलवा देना, अंग-भंग जैसे दण्ड विशेष परिस्थितियों में दिये जाते थे।
विजयनगर के शासकों ने प्रजाहित और राज्य में समृद्धि लाने हेतु बहुत प्रयास किये। उनके द्वारा शुरू की गयी प्रशासकीय संस्थायें विजयनगर साम्राज्य के समाप्त होने के पश्चात् भी चलती रही।


12th Class History Model Question Paper 2024

[ 33 ] विजयनगर एवं बहमनी के मध्य संघर्ष के क्या कारण थे?

Ans :- विजयनगर एवं बहमनी साम्राज्य के मध्य संघर्ष के निम्नलिखित कारण थे
(i) रायचर दोआब का क्षेत्र ⇒ विजयनगर और बहमनी दोनों रायचूर दोआब के उपजाऊ क्षेत्र पर अपना अधिकार करना चाहते थे। यह क्षेत्र कृष्णा और तुंगभद्रा नदी के मध्य स्थित था।

(ii) हीरे की खाने ⇒ बहमनी राज्य के गोलकुंडा क्षेत्र में हीरे की खानें थी तथा विजयनगर के शासक उस पर अपना अधिकार करना चाहते थे।
(iii) साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा   विजयनगर एवं बहमनी दोनों राज्यों के शासक सामावाली एवं महत्ववकांक्षी थे। इसीलिए इन दोनों के बीच हमेशा संघर्ष हुआ।

(iv) विदेशी व्यापार पर कब्जा करना ⇒ विजयनगर अपने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए तथा अपनी सेना के लिए बढ़िया नस्ल के घोड़ों को प्राप्त करने के लिए गोवा पर अधिक करना चाहता था। यह क्षेत्र बहमनी साम्राज्य के पश्चिमी क्षेत्र पर स्थित था।

(v) पथक धार्मिक परंपराएँ   विजयनगर हिन्दू राज्य था जबकि बहमनी मुस्लिमों के अधीन । अतः दोनों एक दूसरे पर आक्रमण कर उस पर अपना अधिकार प्राप्त करना चाहते हो – इस प्रकार कहा जा सकता है कि विजयनगर और बहमना क बीच संघर्ष के था इनके बीच सबसे प्रमुख युद्ध 1565 ई० का तालीकोटा या राक्षसी तेगड़ी का युद्ध था।


[ 34 ] भक्ति आंदोलन के प्रभावों का वर्णन करें।।

Ans :- मध्यकालीन भारत में भक्ति आंदोलन की शुरुआत हुई। इसका प्रभाव भारतीय जनमानस पर काफी हुआ जो निम्नलिखित हैं :
(i) एकेश्वरवाद पर बल ⇒ अधिकांश भक्ति आंदोलन के संतों के एकेश्वरवाद पा ताल दिया। इनका मानना था कि ईश्वर को चाहे जिस नाम से पुकारा जाए लेकिन उसका स्वरूप ही होता है। इन्होंने, राम, रहीम, कृष्ण, विष्णु एवं अल्लाह को ईश्वर का समान रूप बताया।

(ii) धार्मिक सरलता पर बल ⇒ भक्ति आंदोलन के संतों ने धर्म को अंधविश्वास, रूढिवादी कर्मकांडों तथा ढकोसलों से अलग करने की प्रेरणा दी। इनके अनुसार सच्चा धर्म सरल ] मानव कल्याण तथा नैतिकता पर आधारित होता है। इन्होंने लोगों में सच्चाई, ईमानदारी, न्याय, सहयोग दया का गुण अपनाने का संदेश दिया।

(iii) गुरु की भक्ति एवं मूर्तिपूजा का विरोध⇒ भक्ति संतों ने गुरु की महिमा को गोविंद से भी बढ़कर बतलाया। इन्होंने मूर्तिपूजा का भी जोरदार खंडन किया।

(iv) जनसाधारण की भाषा का विकास ⇒ भक्ति संतों ने अपने प्रचार-प्रसार के लिए आम लोगों की भाषा अपनाई। इससे कई स्थानीय भाषाओं जैसे अवधी, मागधी, ब्रजभाषा का विकास हुआ।

(v) आत्म समर्पण की भावना का प्रसार ⇒ भक्ति संतों ने लोगों को काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार को त्यागकर भाईचारे का संदेश दिया। ईश्वर के प्रति सच्चा समर्पण के लिए लोगों को शुद्ध नैतिकता का पाठ पढ़ाया।

(vi) समाज सधार ⇒ अधिकांश भक्ति संत समाज सुधारक थे। इन्होंने जाति-प्रथा, अस्पृश्यता, सतीप्रथा, दासप्रथा, कन्यावध, आर्थिक विषमता आदि का विरोध किया।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि भक्ति आंदोलन के प्रभाव से समाज में समन्वय की स्थापना हुई। गंगा-यमुनी संस्कृति का विकास हुआ। बाह्य आडंबर, जाति प्रथा, अस्पृश्यता आदि पर काफी प्रहार हुआ। नए क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ।


[ 35 ] सूफीवाद पर संक्षिप्त लेख लिखें।

Ans :- इस्लामी इतिहास में सूफी रहस्यवाद की उत्पत्ति 10वीं शताब्दी के आस-पास हुई थी। सूफी मत इस्लाम में रहस्यवादी विचारों तथा उदार प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। कुरान के उपदेशों की उदार व्याख्या का आधार तरीकत है, जो सूफी मत का आधार है। कालांतर में सूफी मत अनेक सम्प्रदायों में बँट गया तथा इन सम्प्रदायों ने संगठित होकर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया

सूफी मत के सिद्धान्त

(i) सूफी मत के लोग रहस्यवादी थे और अल्लाह के रहस्यों की खोज करना अपना मुख्य उद्देश्य समझते थे।
(ii) सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी सांसारिक भोग-विलास तथा वैभव के घोर विरोधी थे तथा सादगी पर बल देते थे।
(iii) सूफी लोग मनुष्य के कर्म, शुद्ध तथा सरल जीवन और संयम को ईश्वर की प्राप्ति का मुख्य साधन मानते थे।
(iv) सूफी सम्प्रदाय एकेश्वरवादी था, वह अल्लाह की एकता में विश्वास रखता था तथा मुक्ति का उपदेश देता था। सूफी सम्प्रदाय के अनुयायी मानवता की सेवा पर विशेष जोर देते थे, उनका विश्वास था कि मानवता की सेवा से ईश्वर की प्राप्ति होती है।


[ 36 ] भक्ति आंदोलन के कारणों की विवेचना करें।

Ans :- भक्ति आंदोलन मानव और ईश्वर के मध्य रहस्यवादी संबंधों को स्थापित करने पर  बल दिया। इसमें मानव के मोक्ष के लिए ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति पर बल दिया गया। यह मुख्य रूप से रूढ़िवादी सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरूद्ध हृदय की प्रतिक्रिया तथा भावों का उद्गार था। इसके निम्न कारण थे।
(i) हिन्दू धर्म की बुराइयाँ ⇒ भक्ति आंदोलन की शुरुआत हिन्दू धर्म के कुछ बुराइयों के कारण हुई थी। वर्णव्यवस्था, अस्पृश्यता, छुआछुत आदि के कारण लोग मुस्लिम धर्म के प्रति आकृष्ट होने लगे थे। इसी कारण भक्ति आंदोलन हुआ।

(ii) हिन्दू मुस्लिम समन्वय भक्ति आंदोलन का एक प्रमुख कारण था हिन्दू मुस्लिम समन्वय पर बल देना। दोनों संप्रदायों ने राम और रहीम को एक बताया।

(iii) मुस्लिम राजसत्ता की स्थापना ⇒ भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना से भी भक्ति आंदोलन को बल मिला। मुस्लिम शासकों द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन करने से लोगों में भक्ति के प्रति अभिरुचि बढ़ने लगी।
(iv) सूफी संतों का प्रभाव मुस्लिम उदारवादी शाखा जिसे सूफी कहते हैं के कारण भी भारत में भक्ति आंदोलन को बल मिला। इससे सगुण भक्ति को अपनाने की प्रेरणा मिली।

(v) भक्त संतों का योगदान ⇒ भक्ति आंदोलन को लाने तथा उसे प्रसारित करने में भक्त संतों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसमें रामानुज, रामानंद, चैतन्य, कबीर, गुरुनानक, दाद, बल्लभाचार्य, रैदास आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।


Bihar Board Inter Exam 2024 Question Answer

S.N PART – A   ( पुरातत्व एवं प्राचीन भारत )
1. प्रारंभिक नगरों की कहानी हड़प्पा सभ्यता का पुरातत्व
2. मौर्य काल से गुप्त काल तक का राजनीति एवं आर्थिक इतिहास
3. सामाजिक इतिहास : भारत के विशेष संदर्भ में
4. बौद्ध धर्म एवं साँची स्तूप के विशेष संदर्भ में प्राचीन भारतीय धर्मो का इतिहास
S.N PART – B  ( मध्यकालीन भारत )
5. आईन – ए – अकबरी : कृषि संबंध
6. मुगल दरबार : इतिवृत द्वारा इतिहास का पूर्ण निर्माण
7. नूतन स्थापत्य कला – हम्पी
8. धार्मिक इतिहास : भक्ति सूफी परंपरा
9. विदेशी यात्रियों के विवरणों के अनुसार मध्यकालीन समाज
S.N PART – C ( आधुनिक भारत )
10. उपनिवेशवाद एवं ग्रामीण समाज
11. 1857 के आंदोलन का प्रतिनिधित्व
12. नगरीकरण नगर योजना तथा स्थापत्य
13. महात्मा गांधी समकालीन दृष्टि से
14. भारत का विभाजन एवं अलिखित स्रोतों से अध्ययन
15. भारतीय संविधान का निर्माण