History Class 12th ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) 2024 ( 15 Marks ) PART- 3 || इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 इतिहास दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर पीडीएफ 2024

History Class 12th :- दोस्तों आज के इस पोस्ट में बिहार बोर्ड कक्षा 12 इतिहास का महत्वपूर्ण लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर तथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया गया है। दोस्तों यह प्रश्न उत्तर आपके इंटर बोर्ड परीक्षा में ( 15 Marks ) के पूछे जाते हैं। तथा जितने भी क्वेश्चन दिए गए हैं सभी पिछले साल पूछे जा चुके हैं ,तो दोस्तों यह सभी प्रश्न उत्तर आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए शुरू से अंत तक दिए गए प्रश्न उत्तर को जरूर पढ़ें।

दोस्तों यहां पर बिहार बोर्ड कक्षा 12 के लिए इतिहास का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर दिया हुआ है यह प्रश्न उत्तर आपके इंटरमीडिएट बोर्ड परीक्षा 2024 के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यही सब प्रश्न आपके इंटर बोर्ड परीक्षा 2024 में आ सकते हैं इसलिए इन सभी प्रश्नों को शुरू से अंत तक जरूर देखें।

इतिहास  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर ) PART – 3

History Class 12th ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर ) 2024 ( 15 Marks ) PART- 3

Q38. अलबरूनी द्वारा वर्णित भारत की सामाजिक स्थिति का वर्णन करें।

उत्तर ⇒ जाति व्यवस्था के संबंध में अलबरूनी द्वारा दिए गए विवरण की व्याख्या निम्नलिखित है

(i) जाति व्यवस्थाको फारस के सामाजिक वर्गों के माध्यम से समझने का प्रयास अल-बरूनी ने अन्य समुदायों में प्रतिरूपों की खोज के माध्यम से जाति व्यवस्था को समझने और व्याख्या करने का प्रयास किया । उसने लिखा कि प्राचीन फारस में चार सामाजिक वर्गों की मान्यता थी, घुड़सवार और शासक वर्ग, भिक्षु, आनुष्ठानिक पुरोहित तथा चिकित्सक,
खगोल शास्त्री तथा अन्य वैज्ञानिक और अंत में कृषक तथा शिल्पकार। दूसरे शब्दों में, वह यह दिखाना चाहता था कि ये सामाजिक वर्ग केवल भारत तक ही सीमित नहीं थे। उसके साथ ही उसने यह दर्शाया कि इस्लाम में सभी लोगों को समान माना जाता था और उनमें भिन्नताएँ केवल धार्मिकता के पालन में थीं।
(II) अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकृति जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को मानने के बावजदं. अल-बरूनी ने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया।
(III) वण ⇒ व्यवस्था का उल्लेख-अल-बरूनी वर्ण व्यवस्था का इस प्रकार उल्लेख करता है

(I) ब्राह्मण ⇒ सबसे ऊँची जाति ब्राह्मणों की है जिनके विषय में हिन्दओं के ग्रंथ हमें बताते हैं कि वे महान ब्रह्म के सिर से उत्पन्न हुए थे।

(ii) क्षत्रिय ⇒ अगली जाती क्षत्रियों की है जिन का सृजन ऐसा कहा जाता है ब्रह्मा के कंधों और हाथों से हुआ था उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है
(III) वश्य ⇒ उनके पश्चात वैसे आते हैं जिनका उद्भव ब्रह्मा की जंघाओं से हुआ था
(iv) शूद्र ⇒ शूद्र जिनका सृजन उनके चरणों से हुआ था।


Q39. इब्नबतूता कौन था? वह भारत की स्थिति के बारे में क्या लिखा है ? वर्णन करें।

उत्तर ⇒ इब्नबतता अफ्रिका का एक प्रसिद्ध यात्री था जो कि 1333 ई० म सुल्तान मुहम्मद-बिन-तुगलक के काल में भारत आया। वह मध्यकाल का सबसे महान यात्री था। वह मुहम्मद तुगलक के दरबार में करीब 9 वर्ष तक रहा और सुल्तान ने उसे दिल्ली का मुख्य काजी नियुक्त किया। इब्नबतूता अपने वृत्तांत में उस समय भारत के लोगों के रहन-सहन तथा
रीति-रिवाजों के बारे में बड़ा ही अनोखी बातों का वर्णन किया है। उसने हिन्दुओं में प्रचलित सती प्रथा का उल्लेख किया है। वह लिखता है कि चिल्लाती हुई विधवा स्त्री को धक्के देकर चिता में धकेला जाता था। उसने भारत में उस समय प्रचलित डाक प्रणाली का भी वर्णन किया है, वह सन्देशवाहकों की फुर्ती से डाक पहुँचाने की योग्यता को देखकर चकित रह गया। इब्नबतूता के अनुसार उस समय भारत में दास प्रथा प्रचलित थी। बड़े-बड़े सरदारों और अमीरों द्वारा लड़कों और लड़कियों को दास बनाकर रखना एक रिवाज था। वह आगे लिखता है कि उस समय गधा सवारी को लोग घृणा से देखा करते थे। इब्नबतूता सुल्तान मुहम्मद तुगलक के कठोर दंड का भी उल्लेख करता है। उसके अनुसार धार्मिक व्यक्तियों विशेषकर शेखों और काजियों को बहुत कठोर यातनायें दी गईं। इब्नबतूता सुल्तान के राजधानी परिवर्तन से लोगों को होने वाले भारी कठिनाइयों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखा है। इस प्रकार इब्नबतूता के यात्रा वृत्तांत से हमें मध्यकालीन भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।


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Q40. भारत में कृषि के व्यवसायीकरण पर प्रकाश डालें।

उत्तर ⇒ कृषि के व्यवसायीकरण का अर्थ होता है कृषि उत्पादन में उन फसलों को अधिक जो व्यवसाय में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे कपास, गन्ना, जूट 10 वीं शताब्दी में अंग्रेजी सरकार द्वारा भारतीय कृषि का भी व्यवसायीकरण किया। अंग्रेजों अमेरिका से कपास की आपूर्ति ठप हो गई तो वह भारत में कपास उत्पादन को प्रोत्साहित या यहाँ के किसान बड़े पैमाने पर कपास की खेती करने लगे तथा इंग्लैंड स्थित बड़े-बड़े माती कारखानों के लिए कच्चा माल के रूप में कपास इंग्लैंड जाने लगा। भारत में कृषि के व्यवसायीकरण का सबसे दुखद पहलू यह है कि इससे भारतीय किसानों की हालत और दयनीय हो गई। वे कर्जदारों, सूदखोरों के चंगुल में फँस गए। भारतीय कृषि का व्यवसायीकरण भारतीय किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजी कारखानों की जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई थी। भारतीय किसानों को मजबूरीवश कपास की खेती करनी पड़ती थी। कपास के उत्पादन लागत की कीमत से भी कम कीमत पर कपास अंग्रेजों के एजेंट द्वारा खरीदा जाता था। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति और दयनीय हो गई। कपास की खेती के लिए कर्ज लेकर किसान दिनोंदिन कर्जदारों के चंगुल में फँसते चले गए। … भारत में कृषि के व्यवसायीकरण से यहाँ के कुटीर उद्योगों में प्रमुख बुनकरी उद्योग भी नष्ट हो गई। बुनकरों को कच्चा माल के रूप में कपास मिलना बंद हो गया। सारा कपास इंग्लैंड निर्यात किया जाने लगा। इससे भारत में बेरोजगारी, भूखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि भारत में कृषि के व्यवसायीकरण भारत के लिए अभिशाप साबित हुआ। किसान, बुनकर बेरोजगार हो गए। इससे सिर्फ अंग्रेजों को फायदा हुआ।


Q41. स्थायी बंदोवस्त के गुण-दोषों की विवेचना कीजिये।

उत्तर ⇒ कार्नवालिस ने लगान के निर्धारण एवं इसकी वसूली के लिए 1793 में एक योजना बनाई, जिसे स्थायी बंदोबस्त के नाम से जाना जाता है। स्थायी व्यवस्था से लाभ-स्थायी व्यवस्था से कंपनी और जमींदार दोनों लाभान्वित हुए। साथ ही, कृषि का विकास भी हुआ, परंतु किसानों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ा।

(i) कंपनी की आय निश्चित होना कंपनी को प्रतिवर्ष होने वाली आय का अनुमान हो गया। इससे अस्थिरता की स्थिति समाप्त हो गयी। अधिक लगान की वसूली और इसमें होनेवाले कम खर्च से कंपनी की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गयी।

(ii) जमादार वर्ग का उदय ⇒ इस व्यवस्था के परिणामस्वरूप कंपनी और किसानों के मध्य बिचौलिए के रूप में एक जमींदार वर्ग का उदय हआ। यह वर्ग अंग्रेजों का समर्थक बना रहा।

(iii) जमींदारों को लाभ ⇒ स्थायी व्यवस्था से जमींदार लाभान्वित हुए। जमीन पर उनका पैतक अधिकार हो गया। किसान उनके रैयत बन गये। वसले गये लगान में हिस्सा मिलने से उनका आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई।

स्थायी व्यवस्था से हानि

(i) कंपनी को घाटा ⇒ लगान निश्चित करते समय जमीन की माप एव उत्पादन यान नहीं दिया गया था। इसलिए उत्पादन बढने और कषि क्षेत्र के विस्तार से होने वाली आय का लाभ जमींदारों ने उठाया।

(ii) किसानों की दुर्दशा ⇒ स्थायी व्यवस्था का सबसे बुरा प्रभाव कृषका पर उनका मनमाना आर्थिक एवं शारीरिक शोषण करने लगे।

(iii) अस्थाई ⇒  व्यवस्था ने सुविधा संपन्न समय जमींदार वर्ग और सुविधा विहीन किसानों का वर्ग तैयार किया प्रथम वर्ग ने अपने हितों की रक्षा के लिए सदैव अंग्रेजों का साथ दिया इससे सामाजिक विद्वेष बढ़ा


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Q42. ब्रिटिश कम्पनी के भ-राजस्व नीति की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में भारत में भू-राजस्व की तान ना प्रान्तों में लागू की थी

(i) स्थायी बन्दोबस्त (1793) ⇒ लार्ड कार्नवालिस ने 1793 ई० में बंगाल, बिहार और उड़ासा के जमींदारों के साथ स्थायी बन्दोबस्त किया था जिसके तहत जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया और भूमि पर उनका वंशानगत अधिकार दे दिया। जमींदारों के साथ शर्त यह रखी गयी कि निश्चित समय पर निश्चित की गयी राशि सरकारी कोष में जमा करें।
निश्चित समय पर जमा नहीं करने की स्थिति में उनकी जमींदारी नीलाम कर दिये जाने का प्रावधान था। भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 19% भाग पर स्थायी बन्दोबस्त लागू किया गया था। 

(ii) रैयतवाड़ी बन्दोबस्त (1792) ⇒ इस बन्दोबस्त के जनक कर्नल रीड और टॉमस मुनरों थे। यह बन्दोबस्त बम्बई, मद्रास और असम के प्रान्तों में रैयत के साथ लागू किया गया था। इसमें जमींदारों अथवा बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं थी। किसानों को भूमि का स्वामी माना गया और निर्देश दिया गया कि निर्धारित राजस्व सीधे कम्पनी के कोष में
जमा करें। इस व्यवस्था के अन्तर्गत कुल उपज का 1/3 भाग 2/5 भाग तक राजस्व वसूला जाता था। यह बन्दोबस्त 30 वर्षों तक चली और कुल भारत की भूमि का लगभग 51% भाग इसके अन्तर्गत आत था

(iii) महालवाड़ी बन्दोबस्त ⇒ इस व्यवस्था का जनक मार्टिन वर्ड तथा मैकेंजी था। इस व्यवस्था के अन्तर्गत पूरे गाँव या महाल को आर्थिक इकाई मान लिया गया और सामूहिक रूप से पूरे गाँव के प्रतिनिधियों के साथ यह बन्दोबस्त लागू किया गया। यह बन्दोबस्त उत्तर प्रदेश, पंजाब तथा मध्य प्रांत में लागू की गई थी। इस बन्दोबस्त के अन्तर्गत लगान
जमा करने का काम गाँव के प्रधान अथवा किसी बड़े रैयत को दिया जाता था। ये पूरे गाँव का लगान वसूल कर सरकारी कोष में जमा करते थे। यह बन्दोबस्त औपनिवेशिक भारत के 30% भाग पर लागू किया जाता था।


Q43. प्लासी की लड़ाई के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ प्लासी की लड़ाई 1757 ई० भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण लड़ाई है। इसने भारत पर अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। यह धोखे और फरेब से लड़ा गया सबसे महत्वपूर्ण युद्ध था। इसके निम्न कारण थे

(i) बंगाल की समृद्धि भारतीय प्रांतों में बंगाल सर्वाधिक समृद्धि वाला प्रांत था। ढाका का मलमल, यहाँ का नील कपास तथा जूट आदि की खेती से अंग्रेज व्यापार द्वारा काफी धन कमा रहे थे। अंतः बंगाल पर अपना दबदबा कायम करने के लिए अंग्रेजों ने यह युद्ध लड़ा।

(ii) सिराजउद्दौला का अनिश्चित उत्तराधिकार — अलीवर्दी खाँ ने सिराजद्दौला को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। परंतु शौकतजंग अंग्रेजों से मिल कर समर्थन माँगने लगा। इससे प्लासी युद्ध हुआ।

(iii) शाही फरमान का दुरुपयोगमुगल सम्राट फर्रुखसियर द्वारा 1717 ई० में एक शाही फरमान द्वारा कंपनी को बंगाल में बिना टैक्स दिये व्यापार करने का अधिकार था। अंग्रेजों द्वारा इस फरमान का उपयोग व्यक्तिगत व्यापार में भी किया जाने लगा जिससे प्लासी के युद्ध की स्थिति उत्पन्न हुई।

(iv) काल कोठरी की घटना20 जून, 1756 ई० को 146 अंग्रेज बंदियों को एक छोटी सी कोठरी में कैद कर लिया गया था। इसमें से 123 व्यक्ति दम घुटने से मर गए। यह घटना हॉलवेल नामक बचे अंग्रेज ने बताई। इससे अंग्रेज क्रोधित हो गए तथा मद्रास से क्लाइव के नेतृत्व में अंग्रेज सेना बंगाल की ओर बढ़ी।


Q44. 1857 की क्रांति के कारणों की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ 1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इसमें पहली बार अंग्रेजों का मुकाबला भारतीय राजाओं से हुआ। इस क्रांति के निम्न कारण थे

(i) विदेशी शासन के प्रति घृणा1857 की क्रांति का मुख्य कारण था लोगों में विदेशी शासन के प्रति घृणा होने लगी थी। अंग्रेजी सत्ता का विदेशीपन लोगों को भड़काने का काम किया। अंग्रेजों द्वारा सरकारी नौकरियों में भारतीयों के साथ भेदभाव किया जाना भी मख्य कारण रहा।
(ii) डलहौजी की साम्राज्यवादी नीति डलहौजी की हड़प नीति, कुप्रशासन का आरोप, दत्तक पत्र के नियम में बदलाव के कारण सतारा, नागपुर, झाँसी, अवध, आदि का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय कर लिया गया। इससे यहाँ के स्थानीय शासक और जनता अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की शुरुआत की।
(ii) भारत का आर्थिक शोषण-1857 के क्रांति का एक मुख्य कारण था भारत का आर्थिक शोषण। सैनिकों, अधिकारियों के वेतन, सस्ते कच्चे माल को ब्रिटेन भेजने, भारत के उद्योगों का विनाश करके अंग्रेजों ने भारत का दिनों-दिन आर्थिक शोषण किया। इससे लोगों ने क्रांति की।
(iv) ईसाई मिशनरियों की भूमिका भारतीयों को ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाई बनाने की मतिविधि चल रही थी। उनके इशारे पर ही शिक्षा में अंग्रेजी को प्राथमिकता दी गई। कई सामाजिक कुरीतियों जैसे सती प्रथा, विधवा पुर्नविवाह आदि के नियम बनाये गए। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के प्रति नफरत पैदा हुई।
(v) तात्कालिक कारण तात्कालिक कारण के रूप में नये चर्बी वाले कारतूस के प्रयोग से यह क्रांति शुरू हुई। चर्बी वाले कारतूस को बनाने में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग होता था। इससे सेना के हिन्दू और मुस्लिम विरोध करने लगे तथा 10 मई, 1857 को मेरठ से इस क्रांति की शुरुआत हुई।


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Q45. 1857 के विद्रोह के परिणामों का उल्लेख करें।

उत्तर ⇒ 1857 के क्रांति के निम्नलिखित परिणाम हुये

(i) मुगल शासन की समाप्तिबहादुर शाह को गद्दी से हटाकर रंगुन भेज दिया गया और उनके उत्तराधिकारियों की हत्या करा दी गई। अतः बहादुरशाह के साथ ही भारत में मुगलों का शासन समाप्त हो गया।

(ii) कंपनी शासन का अंतविद्रोह ने भारत में कंपनी शासन को भी समाप्त कर दिया। 1000 + आधनियम द्वारा भारत का प्रशासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश ताज के प्रतिनिधि भारतीय राज्य सचिव को सौंप दिया गया। उसे प्रशासन में सहायता के लिए 15 सदस्यीय इंडिया कौंसिल बनाया गया।

(iii) गवर्नर जनरल की स्थिति में परिवर्तन विद्रोह के बाद गवर्नर जनरल को वायसराय जा ताज का व्यक्तिगत प्रतिनिधी कहा जाने लगा। इनप्रशासनिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप अब भारत का शासन सीधा इंग्लैंड से नियंत्रित हो गया

(iv) जातीय विभेद को बढ़ावा —  विद्रोह के बाद अंग्रेजी सरकार ने हिन्दू-मुसलमानों में उनका एकता को तोड़ दिया। मुसलमानों के साथ अधिक अनुदारता दिखायी गयी। अतः हिन्दू-मुस्लिम वैमनस्य बढ़ा।

(v) सेना का पुनर्गठनविद्रोह के बाद सेना का पुनर्गठन किया गया। अब भारतीय सिपाहियों की संख्या घटा दी गयी और उन्हें महत्त्वपूर्ण स्थानों से हटा दिया गया।


Q46. 1857 के विद्रोह की विफलता के कारणों का उल्लेख करें। [2018AL

उत्तर ⇒ 1857 की क्रान्ति दिसम्बर, 1858 तक दबा दिया गया। विद्रोही अपने प्रयास में सफल नहीं हो सके। यही कारण अंग्रेजों की सफलता के कारण बन गये।

(i) योग्य नेतृत्व का अभावविद्रोही नेता संघर्ष को एक संगठित और योजनाबद्ध स्वरूप प्रदान नहीं कर सके। विद्रोह के नेता बहादुर शाह जफर बृद्ध, कमजोर और असहाय थे। अन्य नेतागण अपने-अपने क्षेत्र में ही अंग्रेजों से अलग-अलग संघर्ष करते रहे। साहसी और वीर होते हुए भी नेताओं में सेनापतित्व के गुण और कूटनीतिज्ञता का अभाव था। इसके विपरीत अंग्रेजों के पास, निकॉलसन, जेम्स आउटम, हैवलॉक जैसे कुशल सेनापति थे।

(ii) देशी राजाओं द्वारा अंग्रेजों की सहायताविद्रोहियों को साथ देने के बजाय सिंधिया होल्कर, हैदराबाद के निजाम आदि ने सेना और धन से कंपनी की सहायता की। सिख और गोरखा सैनिकों ने तो विद्रोह को दबाने में प्रमुख भूमिका निभायी। सामन्तों के एक बड़े वर्ग ने भी सरकार का साथ दिया।

(iii) निश्चित उद्देश्य का अभाव विद्रोहियों का कोई निश्चित उद्देश्य अथवा योजना नहीं था। अतः वे लम्बे समय तक सुनियोजित संघर्ष नहीं चला सके।

(iv) जनसमर्थन का अभावविद्रोह को भारत के सभी वर्गों का समर्थन नहीं मिल सका। सामंतों के अतिरिक्त शिक्षित मध्यम वर्ग, कृषकों की बड़ी संख्या, सेठ-साहूकार इससे अलग रहे। विद्रोह के प्रसार के साथ इसमें असामाजिक तत्त्वों के प्रवेश से भी विद्रोही जनसमर्थन खो बैठे।

(v) विद्रोहियों के पास सीमित संसाधनविद्रोहियों के अंग्रेजों के मुकाबले में पेशेवर सिपाहियों, धन, अस्त्र-शस्त्र का अभाव था। संचार व आवागमण के उचित साधन और उचित । गुप्तचर व्यवस्था का भी अभाव था। इसके लाभ अंग्रेजों ने उठाया।


Q47. 1857 के विद्रोह के स्वरूप की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ 1857 की क्रान्ति का वास्तविक स्वरूप क्या था इस विषय पर इतिहासकारों में पर्याप्त मतभेद है । अनेक अंग्रेज इतिहासकारों ने इसे मात्र सैनिक विद्रोह मानते हैं, कुछ इसे हिन्दू-मुस्लिम षड्यंत्र के रूप में देखते हैं । कुछ भारतीय और पाश्चात्य लेखकों ने इसे राष्ट्रीय विद्रोह अथवा भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना है । इस प्रकार इस क्रान्ति के स्वरूप
को लेकर विभिन्न लोगों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये हैं जो इस प्रकार हैं

(i) यह एक सैनिक विद्रोह थाअधिकांश ब्रिटिश लेखकों एवं कतिपय भारतीय लेखकों ने इसे सैनिक विद्रोह कहा है। जॉन लारेन्स ने इसे सैनिक विद्रोह एवं उसका कारण चबी वाला कारतूस बताया है। चर्बी वाले कारतूस को लेकर मंगल पांडे द्वारा आरम्भ किये गये बगावत को सैनिकों ने विद्रोह का स्वरूप दे दिया। इस तर्क के विरोध में कहा जा सकता है
कि इसम सभी सैनिकों ने भाग नहीं लिया, बल्कि सिख और गुरखा सैनिकों ने विद्रोह को दबाने में मदद भी पहुँचायी।
(ii) यह एक सामंती विद्रोह था इस क्रान्ति में कंपनी शासन द्वारा सताये गये देशी नरशा और जमींदारों तथा तालुकदारों की मुख्य भूमिका थी। सैनिकों के साथ मिलकर नाना साहब, कुल सिंह, बेगम हजरत महल, झांसी की रानी इत्यादि ने अंग्रेजों से संघर्ष किया और अपने-अपन की में विद्रोहियों का नेतृत्व संभाला। परन्तु अनेक राजाओं और जमींदारों ने
कंपनी का साथ दिया अतः यह विद्रोह पूर्णतः सामंती स्वरूप का नहीं था।
(iii) हिन्दू-मुस्लिम षड्यंत्रजेम्स आउट्रम और टेलर जैसे अंग्रेजों ने इसे हिन्दू-मुस्त षड्यंत्र के रूप में देखते हैं, परन्तु यह धारणा गलत है।इससे हिंदू मुसलमानों ने समान रूप से भाग लिया और दंड भी भुगता।

(iv) सभ्यता एवं बर्बरता के मध्य संघर्ष होम्स महोदय ने इसे सभ्यता एवं बर्बरता के बतलाया। वे अंग्रेजों को सभ्य एवं भारतीयों को बर्बर मानते हैं। इसमें उन्होंने उन गों का जिक्र किया है जो भारतीयों ने क्रान्ति के दौरान किया था परन्तु उन्होंने अंग्रेजों वापर्वक दमन का जिक्र नहीं किया है। इसलिए यह विचार एकपक्षीय है।

(v) प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  इंग्लैण्ड के कंजरवेटिव दल के नेता डिजरैली ने इसे राष्ट्रीय विदोह बताया है। वी०डी० सावरकर महोदय ने इसे भारत की स्वतंत्रता के लिए सुनियोजित संग्राम कहा है। इस प्रकार 1857 की क्रान्ति का स्वरूप मिश्रित था। न तो यह पूर्णतः सिपाही विद्रोह, सामंती विद्रोह अथवा स्वतंत्रता संग्राम था। इसका आरंभ सिपाही विद्रोह से हुआ बाद में कम्पनी शासन से उत्पीडित अन्य वर्गों ने भी इसमें भाग लेकर कंपनी शासन को समाप्त करने का व्यापक प्रयास किया।


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Q48. 1857 के विद्रोह में वीर कुंअर सिंह की भूमिका की विवेचना करें।

उत्तर ⇒ 1857 के विद्रोह में बिहार के बाबू वीर कुँअर सिंह की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही। इन्होंने क्रांति के दौरान आखिरी साँस तक अंग्रेजों का लोहा लेते रहे। अंतिम साँस तक जगदीशपुर को स्वतंत्र बनाए रखी। वीर कुँअर सिंह 1857 के विद्रोह के सबसे बड़े योद्धा थे। फ्रेडरिक ऐग्लिस ने उनके छापामार युद्ध की मुक्त कंठ से प्रशंसा की है। कुँअर सिंह ने 1857 के विद्रोह के दौरान आरा शहर में अपनी सत्ता कायम की। कैप्टन डनबर सहित कई अंग्रेज मारे गए। बाद में मेजर आयर ने आरा पर कब्जा कर लिया। कुँअर सिंह रीवा, बांदा, कालपी, कानपुर पहुँचे। कानपुर से लखनऊ गए जहाँ बेगम हजरत महल ने इनका स्वागत किया। इसी के साथ आजमगढ़ का अधिकार पत्र भी इन्हें मिला। आजमगढ को अंग्रेजों से मुक्त किया। आजमगढ से पुनः शाहाबाद और जगदीशपुर मुक्त कराने के लिए चले। अपने छापामार युद्ध शैली को अपनाते हुए शिवपुर घाट पर गंगा नदी का पार कर अपने गृह जनपद लौटे। हाथ में गोली लगने पर उन्होंने जख्मी हाथ को खुद काट कर गंगा मईया को चढ़ा दिया। 23 अप्रैल, 1858 को पुनः जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया तथा 26 अप्रैल को जगदीशपुर में ही स्वर्गवासी हो गए। बाबू वीर कुँअर सिंह एक अप्रतीम योद्धा के साथ-साथ गरीबों के मसीहा भी थे। उन्होंने अपना जनता को परिवार के समान माना था। यही कारण था कि उनके एक इशारे पर यहाँ की जनता विद्रोह में शामिल हो गई थी।


Q49. संविधान सभा ने दलित वर्गों के अधिकारों के प्रश्न किस प्रकार सुलझाने का प्रयास किया?

उत्तर ⇒ संविधान सभा में भारतीय समाज के शोषित तथा दबे-कुचले तबके की समस्याओं पर भी व्यापक विचार विमर्श हुआ। सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर तबकों, आदिवासियों आदि की चर्चा करते हुए समाजवादी किसान नेता एन० जी० रंगा ने कहा कि इस देश में सिख, मुसलमान, ईसाई अल्पसंख्यक नहीं है, वास्तविक अल्पसंख्यक इस देश के गरीब किसान, मजदूर तथा शोषित आदिवासी हैं। दलित जातियों में एक वर्ग आदिवासियों का मुद्दा उठाते हुए इस समूह के प्रतिनिधि जयपाल सिंह ने कहा था कि भले ही जनसंख्या की दृष्टि से आदिवासी अल्पसंख्यक न हो, परन्तु फिर भी उनकी स्थिति खराब है, जिसे सुधारने के लिए कुछ विशेष प्रावधानों तथा प्रयासों की आवश्यकता है। हालांकि जयपाल सिंह पृथक प्रतिनिधित्व की माँग नहीं की, परन्तु उन्होंने इस बात को अवश्य कहा कि आदिवासियों के लिए कुछ निश्चित सीटों पर आरक्षण की व्यवस्था आवश्यक है। इससे पहले भीमराव अम्बेडकर ने दलितों के आरक्षण का प्रश्न उठाया था तथा इस माँग को सरकार ने 1932 में ही साम्प्रदायिक निर्णय की घोषणा द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों के साथ-साथ दलितों के लिए भी कौंसिल में अलग से स्थान सुरक्षित कर दिये थे। इसी विषय पर संविधान सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए मद्रास की दक्षायणी वेलायुधान ने कहा था-हमें आरक्षण से अधिक आवश्यकता है सामाजिक विषमता को दूर करने की। कुछ इसी प्रकार के विचार मद्रास से सदस्य जे० नागप्पा ने व्यक्त करते हुए कहा कि हरिजनों को बकायदा समाज और राजनीति में हाशिए पर रखा जाता है। उनकी दुर्दशा का कारण उनकी संख्यात्मक महत्त्वहीनता नहीं अपितु उनमें शिक्षा का अभाव तथा शासन में भागीदारी न होना है। . इस समस्त विचार-विमर्श के पश्चात् संविधान सभा में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये थे अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाये, हिन्दु मन्दिरों को सभी जातियों के लिए खोल दिया जाय तथा दलित जातियों को विधायिकाओं और नौकरियों में आरक्षण दिया जाय। उपरोक्त सारे निर्णय दलित जातियों के उत्थान के लिए किये गये थे। परन्तु सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए केवल संवैधानिक उपाय ही पर्याप्त नहीं है इसके लिए लोगों को शिक्षित करना और उनकी मानसिकता बदलने की जरूरत थी।


Bihar Board Inter Exam 2024 Question Answer

S.N PART – A   ( पुरातत्व एवं प्राचीन भारत )
1. प्रारंभिक नगरों की कहानी हड़प्पा सभ्यता का पुरातत्व
2. मौर्य काल से गुप्त काल तक का राजनीति एवं आर्थिक इतिहास
3. सामाजिक इतिहास : भारत के विशेष संदर्भ में
4. बौद्ध धर्म एवं साँची स्तूप के विशेष संदर्भ में प्राचीन भारतीय धर्मो का इतिहास
S.N PART – B  ( मध्यकालीन भारत )
5. आईन – ए – अकबरी : कृषि संबंध
6. मुगल दरबार : इतिवृत द्वारा इतिहास का पूर्ण निर्माण
7. नूतन स्थापत्य कला – हम्पी
8. धार्मिक इतिहास : भक्ति सूफी परंपरा
9. विदेशी यात्रियों के विवरणों के अनुसार मध्यकालीन समाज
S.N PART – C ( आधुनिक भारत )
10. उपनिवेशवाद एवं ग्रामीण समाज
11. 1857 के आंदोलन का प्रतिनिधित्व
12. नगरीकरण नगर योजना तथा स्थापत्य
13. महात्मा गांधी समकालीन दृष्टि से
14. भारत का विभाजन एवं अलिखित स्रोतों से अध्ययन
15. भारतीय संविधान का निर्माण
S.N 12th History Subjective Question Answer 2024
1. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
2. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 2
3. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
4. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART – 4
5. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 5
6. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6
7. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 7
8. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 8
9. 12th History  ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 9
10. 12th History  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
11. 12th History  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2
12. 12th History  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
13. 12th History  ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 4

 

S.N Class 12 History Model Paper 2024
1.   class 12th History Model Paper – 1
2.   class 12th History Model Paper  – 2
3.   class 12th History Model Paper – 3
4.   class 12th History Model Paper – 4
5.   class 12th History Model Paper – 5